डॉ. एस एस शाही गोरखपुर के एक प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट हैं। वर्तमान में वे आईएमए गोरखपुर के अध्यक्ष भी हैं। गोरखपुर के तारामंडल कॉलोनी में उनका शाही ग्लोबल नामक अस्पताल है। डॉ. शाही अपने चिकित्सीय कार्यों के साथ-साथ सामजिक कार्यों में भी बराबर सहभागिता करतें हैं। उनके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों और समसामयिक विषयों पर हेल्थ जागरण के संपादक ने उनसे चर्चा किया। प्रस्तुत है, बातचीत के प्रमुख अंश।
बातचीत में डॉ. शाही ने कहा कि हम प्रकृति के साथ जीवन व्यतीत नहीं कर रहे हैं। हम लगातार नेचर के विरुद्ध जा रहे हैं। इसका दुष्परिणाम हमें देखने को मिल रहा है। हम जब तक प्रकृति के साथ नहीं चलेंगे, प्रकृति से दोस्ती नहीं करेंगे, हमारा स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं होगा।
जब उनसे यह पूछा गया कि धड़ाधड़ मेडिकल कालेज खोले जा रहे हैं, जबकि उस अनुपात में शिक्षक नहीं हैं तो यह मेडिकल कालेज खोलना कितना फलीभूत होगा, डा. शाही ने कहा कि देखिए आबादी बढ़ती जा रही है। विकास की दौड़ में सभी दौड़ रहे हैं। सरकार पर भी WHO के मानकों का दबाव है। तो, मेडिकल कालेज खोलना कहीं से खराब नहीं है। हां, शिक्षकों की बात है तो धीरे-धीरे शिक्षकों की जो कमी आज दिख रही है, वह भी दूर हो जाएगी। सरकार अपने हिसाब से काम कर रही है और इसे लेकर गंभीर है।
डा. शाही ने बताया कि डब्ल्यूएचओ का मानक यह कहता है कि प्रति 10 हजार लोगों पर एक डाक्टर होना चाहिए। अभी हम इस मानक से काफी दूर हैं। हां, सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है। आप गोरखपुर का ही उदाहरण ले लें। मान लें कि गोरखपुर शहरी क्षेत्र की आबादी 20 लाख है। अब 20 लाख की आबादी का अर्थ यह हुआ कि गोरखपुर में कम से कम 200 डाक्टर चाहिए। ये वास्तव में डाक्टर हों, झोलाछाप नहीं। तो, इसमें अभी बहुत मेहनत करने की जरूरत है। इसीलिए डाक्टर बनाने के लिए मेडिकल कालेज खोले जा रहे हैं।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि किडनी जैसे रोग का होम्योपैथ-आयुर्वेद में इलाज है पर शोध के अधिकतम कार्य एलोपैथ में किए गए। आयुर्वेद तो हमारी सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है। उसमें प्रायः हर मर्ज का ट्रीटमेंट है। अब केंद्र-राज्य सरकारों ने आयुर्वेद पर ध्यान देना शुरू किया है। लेकिन, एलोपैथ पर शोध काफी तेजी से हो रहे हैं। भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में। एलोपैथ का रिजल्ट जल्दी मिल जाता है। आयुर्वेद और होम्योपैथ में थोड़ा वक्त लगता है।
डा. शाही ने इस बात पर घोर चिंता जताई कि आज डाक्टरों पर हिंसक कार्रवाई हो रही है। उन्हें मारा जा रहा है, पीटा जा रहा है। उन्हें इतना प्रताड़ित किया जा रहा है कि वे आत्महत्या कर रहे हैं। आप राजस्थान के दौसा की चिकित्सक डा. अर्चना शर्मा को कैसे भूल सकते हैं। डाक्टर भी इंसान होता है। उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी होती है मरीज को ठीक करने की। वह मरीजों की जान बचाता है।
कई बार मरीज की जान नहीं बचती। अब के दौर में लोग कहते हैं कि मरीज बच गया, भगवान की कृपा से। मरीज मर गया, डाक्टर ने मार डाला। ये सब बंद होना चाहिए। डाक्टर सिर्फ प्रयास कर सकता है, करता है। उसे सफलता भी मिलती है। कई बार वह असफल भी होता है। इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि आप उसे मारें, गालियां दें, उसके अस्पताल को तोड़ दें। यह बिल्कुल गलत है। सभ्य लोगों के साथ असभ्य आचरण नहीं होना चाहिए।
प्यार की थेरेपी
डा. शिव शंकर शाही कितने भी व्यस्त हों, मुस्कुराते हुए ही आपसे बात करेंगे। गुरुवार की रात जब उनका साक्षात्कार लिया जा रहा था, उसी दरम्यान एक इमरजेंसी आई। एक महिला थी। कोई परेशानी थी। डा. शाही उनके पास गए। महिला से पूछा, क्या तकलीफ हो गई आपको? परेशान मत हों। सब ठीक हो जाएगा। ये सब चलता रहता है। मस्त रहिए। प्रसन्नचित्त चेहरा लेकर लौटे। कहा, मरीज है। इनसे प्यार से बातें करें तो इनकी 50 प्रतिशत बीमारी तो ऐसे ही दूर हो जाती है। मरीज अगर खुश हो गया तो समझिए उसकी आधी बीमारी दूर हो गई।
एक कलाकार आए। उनके साथ उनके पिता भी थे। पिता ने कहा, डाक्टर साहब। मुझे पथरी है। प्रोस्टेट भी बढ़ा हुआ है। हाई बीपी है। शुगर भी है। क्या होगा मेरा? डाक्टर शाही ने कहा, कुछ नहीं होगा। पहले तो दिमाग से ये सब बातें निकाल दें कि आपको ये है, वो है। जो है, वो रिपोर्ट में देख रहे हैं। परेशान होंगे तो कैसे काम चलेगा? आप हमारे पास आ गए हैं तो एकदम निश्चिंत रहिए। फिट करके ही आपको भेजूंगा। आप इनके पिता हैं तो मेरे भी तो पिता हुए। मस्त रहिए। ये दवा लिख दिया है। ले लीजिएगा। फिर दो दिनों के बाद आइएगा। जब आप कहेंगे, तभी आपरेशन करेंगे। आप जैसा कहेंगे, जैसे निर्देशित करेंगे, आपकी आज्ञा से ही सारा कुछ होगा।
हेल्थ जागरण के संपादक इस पूरी बातचीत को सुन रहे थें और पेशेंट को अपलक निहारे जा रहा था। लगभग 60 साल के उस पेशेंट के चेहरे के भाव शुरू से लेकर आखिरी तक बदलते गए। जब जाने लगे तो चेहरे पर संतोष दिखा, तनाव नहीं। डा. शाही बोलेः यही मेरी कमाई है आनंद जी। मरीज को हम लोग सांत्वना देते हैं। डराते नहीं हैं। प्यार से बात करते हैं। आधी बीमारी तो उसी में दूर हो जाती है।
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