नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों (gay marriages) को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा कि ऐसे जोड़ों को शादी करने का कोई मौलिक अधिकार (fundamental right) नहीं है। कोर्ट ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए मंगलवार को कहा कि कोर्ट इस मुद्दे पर कानून नहीं बना सकता है, सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकता है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक लोगों को अधिकार मिलने चाहिए और उन्हें साथी चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कई अहम निर्देश जारी किए। उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा समलैंगिकता (homosexuality) सिर्फ शहरी विचार नहीं है और ऐसे समुदाय के जो लोग हैं वे अभिजात्यवादी (elitist) नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि ये विचार उन लोगों में भी हैं जो अलग-अलग शहरों या गांव में रहते हैं। सीजेआई (CJI) ने कहा कि 'क्वीयरनेस' (queerness) प्राचीन भारत से ज्ञात है। सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं। कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा अगर अदालत एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के लोगों को विवाह का अधिकार देने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act) की धारा 4 को पढ़ती है या इसमें कुछ शब्द जोड़ती है तो वह विधायी क्षेत्र में प्रवेश कर जाएगी।
बच्चा गोद लेने का अधिकार - Right to adopt a child
करीब 45 मिनट तक अपना फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा समलैंगिक जोड़े संयुक्त रूप से बच्चा गोद ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा वह संसद या राज्य की विधानसभा को विवाह की नयी संस्था बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। कोर्ट का कहना है कि स्पेशल मैरिज एक्ट को सिर्फ इसलिए असंवैधानिक नहीं ठहरा सकते हैं क्योंकि वह सेम सेक्स शादी को मान्यता नहीं देता है।
कोर्ट ने कहा कि क्या स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव की जरूरत इसकी पड़ताल संसद को करनी होगी और अदालत को विधायी क्षेत्र में दखल देने में सावधानी बरतनी होगी।
कोर्ट ने कहा जीवन साथी (life partner) चुनना किसी के जीवन की दिशा चुनने का एक अभिन्न अंग है। कुछ लोग इसे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय मान सकते हैं। यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ तक जाता है।
एक बंटा हुआ फैसला - A divided decision
भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर 3:2 के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया। इस बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएम नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं।
जस्टिस कौल ने कहा समलैंगिक और विपरीत लिंग वाली शादियां को एक ही तरीके से देखना चाहिए। उन्होंने कहा सरकार को इन लोगों को अधिकार देने पर विचार करना चाहिए।
केंद्र और राज्यों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश - Supreme Court's instructions to Center and States
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के कुछ निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने कहा समलैंगिक जोड़ों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा समलैंगिक लोगों को लेकर केंद्र और राज्य सरकार लोगों को जागरुक करें। समलैंगिक लोगों के लिए हेल्पलाइन नंबर (Helpline numbers) जारी किए जाएं।
कोर्ट ने कहा समलैंगिक जोड़ों (gay couples) को पुलिस स्टेशन में बुलाकर या उनके निवास स्थान पर जाकर, केवल उनकी लिंग पहचान या यौन अभिविन्यास के बारे में पूछताछ करके उनका उत्पीड़न नहीं किया जाएगा। सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। ऐसे जोड़ों के लिए सेफ हाउस बनाए जाएं। ऐसे जोड़ों को उनकी मर्जी के बिना परिवार के पास लौटने को मजबूर नहीं किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार समलैंगिकों की व्यावहारिक चिंताओं, जैसे राशन कार्ड, पेंशन, ग्रेच्युटी और उत्तराधिकार के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक कमेटी के गठन के साथ आगे बढ़ने को कहा।
समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर 10 दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।
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