स्वैक्षिक गर्भपात की समस्या अब केवल शहरों तक ही सीमित नहीं रही। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका प्रसार तेजी से बढ़ा है। गर्भपात चाहे स्वैक्षिक हो या मेडिकल इमरजेंसी दोनों ही हालातों में इसका दुष्प्रभाव महिला के शरीर पर पड़ता है। इस प्रकार के जोखिम का निर्णय केवल विशेषज्ञ चिकित्सक ही ले सकता है। जहाँ इसके कानूनी पहलू को भी ध्यान में रखा जाता है।
भारत में गर्भपात के आंकड़े डराने वाले हैं। कुछ आंकड़े बतातें हैं कि देश में हर साल करीब 60 लाख गर्भपात होते हैं। इनमें से 2 लाख गर्भपात (abortion) अपने-आप होते हैं और 4 लाख गर्भपात प्रेरित होते हैं। प्रेरित गर्भपातों में से करीब 5 से 6 लाख वैध होते हैं और शेष अवैध गर्भपात (illegal abortions) होते हैं। यूनाइटेड नेशन पॉपूलेशन फंड (United Nations Population Fund) की साल 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 67% अबॉर्शन असुरक्षित तरीके से होते हैं और असुरक्षित अबॉर्शन (unsafe abortion) के कारण हर दिन भारत में आठ महिलाओं की मौत होती है।
गर्भपात कराने के नुकसान - Disadvantages of abortion
बार-बार गर्भपात करवाने से विकलांग बच्चे को जन्म देने का खतरा भी बढ़ जाता है।गर्भपात एक आप्रकृतिक क्रिया है जिसका खामियाज़ा गर्भपात करने वाली महिला के साथ साथ उसके परिवार को भी भुगतना पड़ता है।गर्भपात करवाने से महिला के शरीर को निम्नलिखित नुकसान पहुंच सकता है।
गर्भपात के समय इन्फेक्शन होने पर पीआईडी यानी पेल्विक इनफ्लेमेटरी डिजीज, एक जानलेवा बीमारी है, का होने का खतरा बढ़ जाता है।
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