कोरोना का ओमिक्रॉन वैरिएंट दुनियाभर के स्वास्थ्य संगठनों और वैज्ञानिकों के लिए गंभीर चिंता का कारण बना हुआ है। अब तक हुए अध्ययनों में वैज्ञानिक इस वैरिएंट को काफी संक्रामक मान रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई देशों में ओमिक्रॉन वैरिएंट ने दोबारा से लॉकडाउन जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट से बचाव के लिए सभी लोगों को विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है, यह उन लोगों को भी संक्रमित कर सकता है जिनका पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है।
इस बीच ओमिक्रॉन वैरिएंट की संक्रामता और गंभीरता को लेकर अध्ययन कर रही वैज्ञानिकों की एक टीम ने बड़ा खुलासा किया है। अध्ययन के अनुसार, कोरोना का ओमिक्रॉन वैरिएंट, डेल्टा और मूल कोविड-19 स्ट्रेन की तुलना में 70 गुना अधिक तेजी से संक्रमण फैला सकता है, हालांकि इससे बीमारी के गंभीर रूप लेने का खतरा काफी कम देखा गया है। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जानने की कोशिश की है कि यह नया वैरिएंट शरीर के किन अंगों को ज्यादा प्रभावित कर सकता है, आइए इस बारे में आगे की स्लाइडों में विस्तार से जानते हैं।
बेहद संक्रामक है कोरोना का ओमिक्रॉन वैरिएंट
हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट की संक्रामता और गंभीरता को जानने के लिए अध्ययन किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि अध्ययन में इस वैरिएंट को अब तक के तमाम कोरोना वैरिएंट्स से कहीं अधिक संक्रामक पाया गया है। यह मनुष्यों के ब्रोन्कस में डेल्टा और अन्य वैरिएंट्स की तुलना में 70 गुना अधिक तेजी से अपने आप को बढ़ा सकता है। ब्रोन्कस, निचले श्वसन पथ में स्थित एक वायुमार्ग है जिससे फेफड़ों में हवा का संचालन होता है।
ओमिक्रॉन वैरिएंट का फेफड़ों पर असर
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना के डेल्टा और अन्य वैरिएंट्स की तुलना में ओमिक्रॉन वैरिएंट का असर फेफड़ों पर कम देखा गया है, यही कारण है कि इससे होने वाला संक्रमण ज्यादा गंभीर रूप नहीं ले रहा है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने श्वसन पथ के एक्स-विवो कल्चर को लेकर अध्ययन किया जिससे यह पता लगाया जा सके कि अन्य वैरिएंट्स की तुलना में ओमिक्रॉन वैरिएंट का संक्रमण और रोग की गंभीरता भिन्न क्यों है?
ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण की गंभीरता कम
हांगकांग विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर माइकल चैन ची-वाई और उनकी टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन में ओमिक्रॉन वैरिएंट को संक्रामक तो अधिक पाया गया लेकिन इसे बहुत खतरनाक नहीं माना जा रहा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि संक्रमण के 24 घंटे बाद, ओमिक्रॉन वैरिएंट, डेल्टा और मूल सार्स-सीओवी-2 वायरस की तुलना में लगभग 70 गुना अधिक तेजी से अपने आप को बढ़ाना शुरू कर देता है। फिलहाल अच्छी बात यह है कि अन्य वैरिएंट्स की तुलना में मानव फेफड़े के ऊतकों को यह 10 गुना कम प्रभावित करता है, जिसके कारण बीमारी के गंभीर रूप लेने का जोखिम भी कम पाया गया है।
क्या है अध्ययन का निष्कर्ष?
अध्ययन के निष्कर्ष में प्रोफेसर माइकल चैन कहते हैं, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मनुष्यों में बीमारी की गंभीरता न केवल वायरस प्रतिकृति द्वारा निर्धारित की जाती है, बल्कि संक्रमण के लिए होस्ट इम्यून रिस्पॉस का ध्यान रखना भी आवश्यक है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि भले ही कोई वायरस स्वयं में कम रोगजनक हो लेकिन अधिक लोगों को संक्रमित करने से वह अधिक संक्रामक बीमारी और मृत्यु का कारण बन सकता है। ओमिक्रॉन वैरिएंट की गंभीरता भले ही कम है लेकिन इसका तेजी से बढ़ना गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसपर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है।
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