नई दिल्ली। भारत दुनिया के नक्शे पर सबसे बड़ा मेडिकल टूरिज्म का हब बनने वाला है। इस सम्बन्ध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल टूरिज्म का पूरा ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। मेडिकल वैल्यू ट्रैवल प्लान के तहत दुनिया के 61 देशों को चुना गया है, ताकि वहां के मरीज भारत में आकर बेहतरीन चिकित्सा सुविधा प्राप्त कर सकें। इसके अलावा सिंगल विंडो कॉन्सेप्ट से दुनिया के अलग-अलग देशों से आने वाले मरीजों को सारी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की भी तैयारी की गई है। पिछले महीने धर्मशाला में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आला अधिकारियों ने मेडिकल टूरिज्म का पूरा ड्राफ्ट प्लान साझा किया।
क्या है मेडिकल वैल्यू ट्रैवल प्लान?
मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 'हील इन इंडिया' (Heal in India) कार्यक्रम के तहत पूरी तैयारियां कर ली गई हैं। इस पूरे मेडिकल टूरिज्म (Medical Tourism) ड्राफ्ट में कई पहलुओं को ध्यान में रखकर मेडिकल वैल्यू ट्रैवल प्लान तैयार किया गया है। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने देश के अलग-अलग राज्यों के अस्पतालों का चयन किया है। जहां पर दुनिया के अलग-अलग मुल्कों से आने वाले मरीजों का इलाज किया जाएगा। फिलहाल शुरुआती योजना के मुताबिक मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 12 राज्यों के 17 शहरों के प्रमुख अस्पतालों को शॉर्टलिस्ट किया गया है। जिसमें दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और आसाम के प्रमुख चिकित्सा संस्थान (medical institutions) शामिल करने का प्रस्ताव बनाया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मेडिकल वैल्यू प्लान (Medical Value Plan) के तहत दुनिया के 61 देशों को टारगेट लिस्ट में रखे जाने की योजना बनाई गई है। यह वो देश है जहां पर मरीजों का इलाज बहुत महंगा है। सूत्रों के मुताबिक जिन 61 देशों को इस लिस्ट में शामिल किए जाने का प्रस्ताव बनाया गया है, उसमें यूरोप (Europe) के 11 देश शामिल किए गए हैं। इसके अलावा अमेरिका (America), ऑस्ट्रेलिया, रूस (Russia), कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और आर्मेनिया को शामिल किया गया है। इसके अलावा मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए अफ्रीका के 8 देश, गल्फ के 8 देश और लैटिन अमेरिका के 19 देशों के अलावा साउथ ईस्ट एशिया और ईस्ट वेस्ट एशिया के देशों को शामिल किया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इन देशों को मेडिकल टूरिज्म के तहत इलाज मुहैया कराने की कई कारण भी हैं। पहली वजह यह है कि इन देशों में इलाज के लिए बहुत लंबी वेटिंग है। इसके अलावा वहां इलाज भी महंगा है। तीसरी और सबसे अहम वजह इन देशों से भारत की एयर कनेक्टिविटी बहुत बेहतर और सुगम है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हील इंडिया कार्यक्रम के तहत मेडिकल टूरिज्म को तीन अहम क्षेत्रों में बांटने की योजना बनाई है। इसमें मॉडर्न मेडिकल ट्रीटमेंट, ट्रेडिशनल मेडिकल थेरेपी समेत वैलनेस और रिजुविनेशन शामिल हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अभी भी भारत में मेडिकल टूरिज्म के लिहाज से सार्क (SAARC) देशों से सबसे ज्यादा मरीज पहुंच रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2019 और 2020 में 553605 मेडिकल वीजा जारी किए गए थे। अनुमान है कि हील इंडिया कार्यक्रम के तहत यह संख्या कई गुना बढ़ने वाली है, बल्कि मेडिकल टूरिज्म के लिहाज से चिकित्सा क्षेत्र में भी बड़ा उछाल आने वाला है। आंकड़े बताते हैं कि 2020 तक तकरीबन पचास हजार करोड़ का मेडिकल टूरिज्म हुआ है। नई पॉलिसी और योजनाओं के तहत 2026 तक इसको एक लाख करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा जाना है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने बाकायदा दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में अलग-अलग बीमारियों में खर्च होने वाली कीमत और इलाज का पूरा आंकड़ा भी तैयार किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के तैयार किए गए ड्राफ्ट के मुताबिक भारत में दुनिया के अन्य मुल्कों की तुलना में 65 से 95 फ़ीसदी सस्ता इलाज मिलता है। अमेरिका की तुलना में भारत में हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट (Heart valve replacement) 97 फ़ीसदी सस्ता है। जबकि बाईपास सर्जरी (bypass surgery) 96 फीसदी सस्ती है। इसके अलावा हिप रिप्लेसमेंट 96 फ़ीसदी सस्ता है। घुटनों के बदलने की कीमत में भी 88 फ़ीसदी कम लागत आती है। स्पाइन के इलाज में भारत और अमेरिका की तुलना में 94 फ़ीसदी सस्ता इलाज यहां मिलता है। हील इंडिया कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय में दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में मिलने वाले इलाज की तुलना भारत से की है। जिसमें सबसे सस्ता इलाज भारत में ही मिल रहा है।
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