नयी दिल्ली। भारत में पिछले एक दशक में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रबन्धन में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रबन्धन के बारे में जागरूकता बढ़ी है। सैनिटरी पैड जैसे मासिक धर्म उत्पादों की उपलब्धता सुलभ हुई है लेकिन अभी भी विकलांग लड़कियाँ व महिलाएँ इन सुविधाओं से वंचित हैं। इन लोगों को लिंग-भेद और विकलांगता के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ((UNFPA) ने 'मासिक धर्म स्वास्थ्य व स्वच्छता पर समावेशी कार्रवाई' पर जारी एक रिपोर्ट में उक्त बातें कहीं हैं।
‘Menstrual Health and Hygiene Management for Persons with Disability’ नामक इस रिपोर्ट को वाटर एड इण्डिया (जल सेवा चैरिटेबल संस्थान) के सहयोग से भारत में जारी किया गया है। इस रिपोर्ट में, विकलांगों व उनकी देखभाल करने वाले लोगों के लिये मासिक धर्म सम्बन्धी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता में सुधार के समाधान लागू करने की रूपरेखा दी गई है।
रिपोर्ट की लेखिकाओं में से एक, वॉटर एड की अंजलि सिंघानिया कहती हैं, “विकलांगगण, एक विषम समूह है, वो शहरी, ग्रामीण और यहाँ तक कि सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय आधार पर अलग-अलग वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं।"
इसी को ध्यान में रखते हुए, "वॉटर एड संस्थान ने भारत में यूएनएफ़पीए के सहयोग से, मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिये अच्छी प्रथाओं और अन्तर्दृष्टि पर प्रमुख रिपोर्ट तैयार की है।.”
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 2 करोड़ 70 लाख लोग यानि भारतीय जनसंख्या का 2.2% हिस्सा विकलांग हैं। हालाँकि समावेशी शिक्षा और रोज़गार सुगम बनाने के प्रयास जारी हैं लेकिन फिर भी इस आबादी के स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकारों को नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है।
सम्वेदनशीलता
रिपोर्ट के अनुसार विकलांगों की प्रजनन शरीर रचना (reproductive anatomy) और क्षमताओं के बारे में अन्तर्निहित पूर्वाग्रहों और ग़लत धारणाओं के परिणामस्वरूप उन्हें अलैंगिक विवाह के लिये अनुपयुक्त और बच्चे पैदा करने व पालने में असमर्थ माना जाता है। इन सामाजिक व शारीरिक बाधाओं के कारण, उन तक यौन व प्रजनन स्वास्थ्य (sexual and reproductive health) की जानकारी एवं सेवाओं तक पहुँच हासिल नहीं होती। ऐसी परिस्थितियों में विकलांग महिलाओं और लड़कियों (women and girls with disabilities) के शारीरिक और यौन शोषण (sexual abuse) का शिकार होने की सम्भावना तीन गुना अधिक हो जाती है।
रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों (public health emergencies) और मानवीय संकटों (humanitarian crises) के दौरान ग़रीब लड़कियों और विकलाँग महिलाओं को ख़राब स्वास्थ्य के जोखिम का सामना करना पड़ता है। कोविड-19 (COVID-19) के शुरुआती दिनों में एक सर्वेक्षण ने उजागर किया कि हाशिये पर धकेले हुए इस समूह के बीच इस बात का पहले से डर था कि सेवाओं तक उनकी सीमित पहुँच है, महामारी के कारण स्थितियाँ और खराब हो सकतीँ हैं।
भारत में यूएनएफ़पीए (UNFPA) की प्रतिनिधि,एण्ड्रिया वोजनार कहती हैं, “मासिक धर्म स्वास्थ्य (Menstrual health) प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, चाहे उसकी लिंग पहचान, क्षमता या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। हालाँकि भारत में, मासिक धर्म स्वास्थ्य को लेकर पूर्वाग्रहों को दूर करने और स्वच्छता उत्पादों (hygiene products) तक पहुँच बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि कोई भी पीछे न छूट जाए।
समाधानों की रूपरेखा
अंजलि सिंघानिया बताती हैं कि विकलांगों के लिये प्रबन्धन की रिपोर्ट में मानसिक स्वास्थ्य और स्वच्छता की सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला में विकलांग सम्बन्धी चार क्षेत्रों दृष्टिहीन (blind), मूक व बधिर (deaf and dump), और बौद्धिक एवं शारीरिक अक्षमता वाले लोगों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
रिपोर्ट में, विकलांग व्यक्तियों और उनकी देखभाल करने वाले लोगों के लिये मासिक धर्म स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताएँ और समाधान (solutions) पेश किये गए हैं। इनमें, विकलांगों के लिये अलग-अलग जरूरतों और कार्य क्षमताओं के अनुरूप, मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर सुलभ तरीक़े से सूचना, शिक्षा व संचार (education and communication), मासिक धर्म उपयुक्त सामाजिक मानदण्ड स्थापित करना, उचित व सुरक्षित मासिक धर्म उत्पादों को बढ़ावा देना, व उनका स्वच्छ उपयोग, साथ ही, समावेशी जल, स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई (WASH) की सुविधाएँ प्रदान करना, समाधानों में शामिल है।
इसके अलावा, विकलांगजन की देखभाल करने वालों, परिवारों और संस्थानों को भी इन कार्यक्रमों में शामिल करने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया गया है। विकलांगों के लिये मासिक धर्म स्वच्छता पर जारी इस रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि ख़ासतौर पर मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्रवाई सम्बन्धी सरकारी नीतियों (government policies) में, विकलांगता समावेशी दृष्टिकोण शामिल करने और विकलांगता केन्द्रित कार्यक्रमों व योजनाओं को लागू करना अति आवश्यक है।
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