पारूल ने अपनी मम्मी को लंदन से जन्मदिन की बधाई वाट्सएप पर दी। मैसेज सेंड करने के बाद वह लगातार ब्लू टिक की प्रतीक्षा करती रही। जब आधा घंटा हो गया तो उसने झल्लाकर अपने हस्बेंड से कहा-यार, मम्मी तो वाट्सएप पर आ ही नहीं रही हैं। आधा घंटा हो गया। उन्होंने मेरा मैसेज तक नहीं देखा है। मम्मी मुझसे प्यार नहीं करती।
यह कह कर वह जोर-जोर से रोने लगी। पारूल के हस्बेंड ने समझाया कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मम्मी जी किसी काम में फंस गई होंगी। इसलिए उन्होंने नहीं देखा। इसका अर्थ यह थोड़े ही हुआ कि वह तुम्हें प्यार नहीं करती। पारूल ने कहा, तुम नहीं जानते। मम्मी चाहती ही नहीं थी कि मैं इस दुनिया में आऊं...वह फिर सुबकने लगी।
ठहरिये दोस्तों। पारूल सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसी हजारों पारूल हैं अपने देश में या दुनिया भर में जो वाट्सएप मैसेज भेजने के बाद तब तक उसे देखती रहती हैं जब तक ब्लू टिक न आ जाए। अगर किसी ने ब्लू टिक न दिखने का आप्शन बंद कर रखा हो और दो मिनट के भीतर कोई रिप्लाई (Reply) न करे तो लोग फोन करने लग जाते हैं कि भई, तुम्हें मैसेज दिया था। अब तक तुमने देखा ही नहीं।
असल में, आज की तारीख में सोशल मीडिया हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है। क्या फेसबुक, क्या ट्विटर, क्या वाट्सएप, क्या इंस्टाग्राम...सब लोकप्रिय हैं और सभी में आज के नौजवान लोग बिजी रहते हैं। ये एक किस्म का एडिक्शन ही है जो आपको कभी बेहद उत्तेजित कर देता है, कभी एकदम शांत। आप किसी के मरने की खबर पाकर रोने लगते हैं, कभी किसी की शादी की फोटो देख कर गुनगुनाने लगते हैं, फोन करने लगते हैं, दोस्तों को इन्फार्म करने लगते हैं कि देखो, साले ने शादी कर दी। इंस्टा पर फोटो शेयर किया है....दरअसल, ये उत्तेजना, ये शिथिल हो जाना ही एक किस्म की दिमागी समस्या है। ये मानसिक बीमारी के लक्षण हैं।
कई लोगों को आपने देखा होगा कि वे आफिस में या घर पर भी आपसे बात कर रहे होते हैं तो कभी आपकी तरफ देखेंगे, कभी मोबाइल की तरफ। बिना मतलब के भी ये मोबाइल को स्क्राल (Scroll) करते रहते हैं। ये मानसिक रुप से अस्वस्थ लोगों की शुरुआती निशानियां हैं।
एक दौर था, जब लोग सुबह उठते थे और भगवान का नाम लेकर शौच आदि से निवृत्त होकर अपनी दिनचर्या प्रारंभ करते थे। आज के दौर में कई लोग ऐसे हैं जो सुबह उटते ही कम से कम 1 घंटा इंस्टा पर टाइम स्पेंड करने के बाद ही फ्रेश होते हैं। कुछ लोग तो ऐसे हैं जो उठते ही फोन उठाएंगे और खामखा सभी का स्टेटस (Status) चेक करने लगेंगे। कुछ लोग भजन लगा लेंगे और भजन सुनने के साथ ही फेसबुक भी देखेंगे। फेसबुक से मन भर जाएगा तो मैसेंजर पर जाएंगे। वहां भी लोगों को चेक करेंगे।
सच-सच बताएं, क्या आपमें भी यही आदत है? एकबारगी आप इसे बेहद सामान्य बात कह कर उड़ा देंगे पर ये सामान्य बात नहीं है। सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल हमारे मानसिक स्वास्थ्य (Mental health) से जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र की एक मनोचिकित्सक तीथी कुकरेजा कहती है कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सोशल मीडिया ने हमें हमारे मित्रों, परिजनों आदि से दूर कर दिया है। हर कोई अपनी कोठरी में अकेला है। यह अकेलापन अवसाद पैदा करता है जो सीधे-सीधे मानसिक बीमारी है। अब हम आत्मचिंतन नहीं करते। हम अपने एकाकीपन को भरने के लिए फोन के भरोसे हैं। यह बेहद खतरनाक है।
उपाय क्या है
सोशल मीडिया से जुड़े रहें पर उतना ही, जितने की जरूरत है। माता-पिता, घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार, इन सभी से मिलें। बातें करें। पुराने मुद्दों पर बात करें। नए मुद्दों पर बात करें पर चुप न रहें। घूमते-फिरते रहें। परिवार के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें। कोशिश करें कि सभी के साथ आमने-सामने बातें हों। जब बातचीत चल रही हो तो सोशल मीडिया का जिक्र न हो। अच्छी बातें करें। इससे आपकी तंत्रिका तंत्र और बढ़िया तरीके से फंक्शन करेगी।
लेखक - आनंद सिंह
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