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योग जीवन पद्धति के साथ स्वास्थ्य सुधार का माध्यम भी है 

यद्यपि योग मुख्यतः एक जीवन पद्धति है, तथापि, इसके प्रोत्साहक, निवारक और रोगनाशक अन्तःक्षेप प्रभावोत्पादक है। योग के ग्रंथो में स्वास्थ्य के सुधार, रोगों की रोकथाम तथा रोगों के उपचार के लिए कई आसानों का वर्णन किया गया है।

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June 21 2022 Updated: June 21 2022 21:46
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योग जीवन पद्धति के साथ स्वास्थ्य सुधार का माध्यम भी है  प्रतीकात्मक चित्र

योग मुख्यतः एक जीवन पद्धति है, जिसे महर्षि पतंजलि ने क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया था। इसमें यम, नियम, आसन,प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि आठ अंग है। योग के इन अंगों के अभ्यास से सामाजिक तथा व्यक्तिगत आचरण में सुधार आता है, शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त के भली-भॉति संचार होने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, इंद्रियां संयमित होती है तथा मन को शांति एवं पवित्रता मिलती है। योग के अभ्यास से मनोदैहिक विकारों या व्याधियों की रोकथाम, शरीर में प्रतिरोधक शक्ति की बढोतरी तथा तनावपूर्ण परिस्थितियों में सहनशक्ति की क्षमता आती है। ध्यान का, जो आठ अंगो में से एक है, यदि नियमित अभ्यास किया जाए तो शारीरिक अहितकर प्रतिक्रियाओं को घटाने की क्षमता बढती है, जिससे मन को सीधे ही अधिक फलदायक कार्यो में संलग्न किया जा सकता है। 

यद्यपि योग (Yoga) मुख्यतः एक जीवन पद्धति है, तथापि, इसके प्रोत्साहक, निवारक और रोगनाशक अन्तःक्षेप प्रभावोत्पादक है। योग के ग्रंथो में स्वास्थ्य के सुधार, रोगों की रोकथाम तथा रोगों के उपचार के लिए कई आसानों का वर्णन किया गया है। शारीरिक आसनों का चुनाव विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए। रोगों की रोकथाम, स्वास्थ्य की उन्नति तथा चिकित्सा के उद्देश्‍यों की दृष्टि से उनका सही चयन कर सही विधि से अभ्यास करना चाहिए । 

अध्ययनों से यह प्रदर्शि‍त होता है कि योगिक अभ्यास से बुद्धि तथा स्मरण शक्ति बढती है तथा इससे थकान एवं तनावो को सहन करने, सहने की शक्ति को बढाने मे तथा एकीकृत मनोदेहिक व्यक्तित्व के विकास में भी मदद मिलती है। ध्यान एक दूसरा व्यायाम है, जो मानसिक संवेगों मे स्थिरता लाता है तथा शरीर के मर्मस्थलों के कार्यो को असामान्य करने से रोकता है । अध्ययन से देखा गया है कि ध्यान न केवल इन्द्रियों को संयमित करता है, बल्कि तंत्रिका तंत्र को भी नियंमित करता है। 

 

योग के वास्तविक प्राचीन स्वरूप की उत्पत्ति औपनिषदिक परम्परा का अंग है। तत्व ज्ञान एवं तत्वानुभूति के साधन के रूप में योग का विकास किया गया।

''योगशिचत्तवृत्ति निरोधः''
(शरीर एवं मन को स्वस्थ रखने के लिए अष्टाडंग योग की व्याख्या की गई जो निम्न प्रकार है।)

यम -  ''अंहिसासत्यास्तेयब्रहचर्यापरिग्रहा यमाः'' 
(अहिंसा, सत्य, अस्तेय,ब्रहचर्य और अपरिग्रह को यम कहा गया है।

नियम - '' शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्‍वरप्रणिधानानि नियमाः''
(शौच, संतोष, तप स्वाध्याय और ईश्‍वर प्रणिधान ये पांच नियम कहे है।

आसन - '' स्थिर सुखमासनम्‌''
(जो स्थिर एवं सुखदायक हो वह आसन कहा है।

 

मोटे तौर पर योगासनों को तीन वर्गो में बांटा जा सकता है।

ध्यानात्मक आसन - यथा सिद्धासन, पद्मासन भद्रासन स्वस्तिकासन आदि।

विश्रांतिकर आसन-  शवासन, दण्डासन, मकरासन आदि।

शरीर संवर्धनात्मक आसन -  सिंहासन, गोमुकासन धनुरासन आदि

 

प्राणायाम - ''तस्मिन्‌ सति श्वासप्रश्‍वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः'' 

आसन के स्थिर हो जाने पर श्वास प्रश्‍वास की गति को रोकना प्राणायाम कहा गया है। 

यह बाह्‌यवृति, आभ्यान्तरवृति और स्तम्भवृति तीन प्रकार का कहा गया है।

प्रत्याहार -'' स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्य स्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः''

अपने विषयो के साथ सम्बन्ध न होने पर चित्त के स्वरूप का अनुसरण करना इन्द्रियों का प्रत्याहार कहलाता है।
धारणा -'' देशबन्धशिचत्तस्य धारणा''

चित्त (मन) का वृत्ति मात्र से किसी स्थान विशेष में बांधना धारणा कहलाता है।
ध्यान - ''तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्‌''

उस (धारणा) में वृत्ति का एक सा बना रहना ध्यान कहलाता है।
समाधि - '' तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः'' 

जब केवल ध्येय ही अर्थ मात्र से भासता है और उसका स्वरूप शून्य हो जाता है वह ध्यान ही समाधि कहलाता है।

 उपरोक्त प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि उत्तरोत्तर श्रेष्ठतर अवस्थाएं है।

 

 

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