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किडनी ट्रांसप्लांट से दो युवकों को बचाया हिम्स अस्पताल ने: आचार्य मनीष

हिम्स अस्पताल ने हाल ही में गुर्दे की गंभीर बीमारियों से पीड़ित और लंबे समय से डायलिसिस पर चल रहे दो युवकों का आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और पंचकर्म विज्ञान के माध्यम से सफलतापूर्वक इलाज किया है।

हुज़ैफ़ा अबरार
September 22 2022 Updated: September 22 2022 14:30
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किडनी ट्रांसप्लांट से दो युवकों को बचाया हिम्स अस्पताल ने: आचार्य मनीष प्रतीकात्मक चित्र

लखनऊ। हिम्स अस्पताल ने हाल ही में गुर्दे की गंभीर बीमारियों से पीड़ित और लंबे समय से डायलिसिस पर चल रहे दो युवकों का आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और पंचकर्म विज्ञान के माध्यम से सफलतापूर्वक इलाज किया है।

 

हॉस्पिटल एंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड मेडिकल साइंसेस (HIMS) ने गुर्दे की गंभीर बीमारियों (chronic kidney diseases) से पीड़ित और लंबे समय से डायलिसिस पर चल रहे कुशल तिवारी और गुरसेवक सिंह का आयुर्वेद (Ayurveda), प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy) और पंचकर्म (Panchakarma) विज्ञान के माध्यम से सफलतापूर्वक इलाज किया है।

हिम्स के आचार्य मनीष ने कहा कि वयस्क गुर्दे (adult kidneys) लगातार बढ़ते हैं और खुद को फिर से तैयार करते हैं इसीलिए उनमें रीजेनेरेशन (regeneration) और हीलिंग (healing) की क्षमता होती है यही कारण है कि हमारे उपचार में डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplant) पर जोर देने के बजाय गुर्दे के रीजेनेरेशन (kidney regeneration) पर ध्यान दिया जाता है।

 

उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) रिसर्च स्टडीज (research studies) और अमेरिका व इजरायल के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए कुछ अन्य अध्ययनों द्वारा गुर्दे के रीजेनेरेशन के दावे का समर्थन किया। इनमें से एक अध्ययन चूहों पर किए गए प्रयोगों को दर्शाता है, जिसमें कहा गया है कि गुर्दे लगातार नई कोशिकाओं (kidneys make new cells) का निर्माण करते हैं।

 

24-वर्षीय कुशल तिवारी पुराने गुर्दा रोग से पीड़ित थे और लंबे समय से डायलिसिस पर थे। उनकी ग्लोबल जीएफआर (global GFR) 0.391 मिली/मिनट थी, यानी उन्हें ईएसआरडी (end stage renal disease) थी अर्थात कोई अन्य इलाज कारगर नहीं था। उन्होंने कई डॉक्टरों से परामर्श किया जिनकी राय थी कि उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट कराना होगा जो केवल 4-5 साल ही काम करेगा।

 

18-वर्षीय गुरसेवक सिंह भी गुर्दे की पुरानी बीमारी से पीड़ित था और लगातार डायलिसिस (dialysis) पर था। जब वो हिम्स पहुंचा तब व्हील चेयर पर था और उसका हार्ट भी कम काम कर रहा था। 27 नवंबर 2021 को उसका जीएफआर 8.9 था। हिम्स में महज 3 महीने इलाज कराने के बाद 21 फरवरी 2022 तक उसका जीएफआर बढ़कर 18.2 हो  गया और डायलिसिस भी बंद हो गया।

 

आचार्य मनीष ने कहा कि हिम्स अस्पताल में ग्रेड थेरेपी (gravity resistance) (diet) का प्रयोग होता है, जिससे 27 प्रमुख आपात स्थितियों और जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली स्थितियों का खुद से प्रबंधन करने में मदद मिलती है। यहां जीवन शैली में परिवर्तन (change lifestyle) करके प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और पंचकर्म के जरिए रोगों का इलाज किया जाता है।

 

हिम्स का मुख्य उद्देश्य लोगों को उनके स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार हेतु पारंपरिक उपचार लेने में सहायता प्रदान करना है और यही तरीका हाल ही में दो गुर्दा रोगियों (kidney patients) के साथ भी अपनाया गया।

 

आचार्य मनीष ने बताया कि हिम्स अस्पताल में डॉ पांडेय, डॉ बिस्वरूप रॉय चौधरी, डॉ आजाद और उनकी टीम गुर्दे की बीमारी के मूल कारण पर काम करती है और आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा तथा पंचकर्म की मदद से लोगों को गुर्दे की पुरानी बीमारियों से उबरने में मदद करती है।

 

कुशल तिवारी और गुरसेवक सिंह की तरह उन्होंने गुर्दे की विफलता और गुर्दे की पुरानी बीमारियों से पीड़ित अन्य कई रोगियों का भी इलाज किया है जो दशकों से डायलिसिस पर थे और हिम्स में इलाज के कुछ ही महीनों के भीतर ठीक हो गए।

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