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लीवर फेलियर के लिए मात्र शराब ही जिम्मेदार नहीं: डॉ प्रवीण झा

लीवर की बीमारी होने में मात्र बहुत ज्यादा शराब का सेवन ही जिम्मेदार नहीं है। दरअसल बहुत से लोग जिन्हें लीवर की बीमारी है, वे बिल्कुल भी शराब का सेवन नहीं कर रहे होते हैं।

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April 13 2022 Updated: April 14 2022 03:46
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लीवर फेलियर के लिए मात्र शराब ही जिम्मेदार नहीं: डॉ प्रवीण झा प्रतीकात्मक

लीवर की बीमारी होने में मात्र बहुत ज्यादा शराब का सेवन ही जिम्मेदार नहीं है। दरअसल बहुत से लोग जिन्हें लीवर की बीमारी है, वे बिल्कुल भी शराब का सेवन नहीं कर रहे होते हैं। लीवर फेलियर (Liver Failure) के कुछ प्रारंभिक लक्षण और संकेतों में आपकी त्वचा तथा आंखों की पुतलियों का पीला हो जाना, आपके ऊपरी दाहिने पेट में दर्द होना, पेट में सूजन, मतली, उल्टी, अस्वस्थ महसूस करने की सामान्य भावना, नींद में रहना या भ्रम होना या मीठी गंध महसूस होना और कंपकंपी लगना शामिल हो सकता है।

रीजेंसी सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल, (Regency Superspeciality Hospital) लखनऊ के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी- कंसल्टेंट, डीएम, एमडी डॉ प्रवीण झा के अनुसार इस तथ्य को भूल जाना चाहिए कि लीवर फेलियर की घटना जानलेवा होती है। अगर कोई आँखों या त्वचा में अचानक से पीलापन, ऊपरी पेट में कोमलता; या कोई असामान्य मानसिक स्थिति, व्यक्तित्व या व्यवहार में बदलाव  महसूस करता है, तो तुरंत डॉक्टर से मदद लेनी चाहिए।

बहुत ज्यादा एसिटामिनोफेन (टाइलेनॉल, पेरासिटामोल, आदि) का सेवन कई देशों में एक्यूट लीवर फेलियर का सबसे बड़ा कारण होता है। भारत में पेरासिटामोल सबसे ज्यादा ज्ञात एसिटामिनोफेन का रूप है। अध्ययन से पता चला है कि कई दिनों तक एसिटामिनोफेन के बहुत ज्यादा सेवन के कारण या कई दिनों तक हर दिन ओवर डोज से लीवर फेलियर की घटना हो सकती है। कावा, एफेड्रा, स्कलकैप और पेनिरॉयल जैसी हर्बल दवाएं और सप्लीमेंट एक्यूट लीवर फेलियर के लिए जिम्मेदार होते हैं। हालांकि ऐसे केसेस बहुत कम देखे जाते हैं। हमारे पास इस तरह के कारणों पर बहुत ही कम डेटा मौजूद है। इसलिए जब हर्बल सप्लीमेंट लेने की बात आती है, तो इसके बारे में विधिवत जानकारी बढ़ाना और जड़ी-बूटियों तथा हर्बल उत्पादों के संभावित खतरों के बारे में जन जागरूकता फैलाना जरूरी है।

हेपेटाइटिस A, हेपेटाइटिस B, और हेपेटाइटिस C से एक्यूट लीवर फेलियर हो सकता है। इन सभी बीमारियों में वायरस मुख्य रूप से हमारे लीवर पर हमला करते है, जिससे लीवर में चोट और सूजन आ जाती है। हेपेटाइटिस C सबसे गंभीर होता है और इस केस में लीवर की सूजन इतनी अधिक होती है कि इससे लीवर आसानी से खराब हो सकता है। एपस्टीन-बार वायरस, साइटोमेगालोवायरस और हर्पीज सिम्प्लेक्स इसी तरह के अन्य वायरस हैं जिससे लीवर ख़राब हो सकता है।

एंटीबायोटिक्स, नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स और एंटीकॉन्वेलेंट्स आदि प्रिस्क्रिप्शन दवाओं से एक्यूट लीवर फेलियर की घटना हो सकती है। आमतौर पर  दवा से होने वाली लीवर  की चोट थेरेपी को रोकने के कुछ दिनों से लेकर एक हफ्ते में ठीक होना शुरू हो जाती है। कुछ केसेस (एसिटामिनोफेन, नियासिन) में यह बहुत तेजी से ठीक होता है लेकिन ज्यादातर केसेस में चोट कई हफ्तों या महीनों तक पूरी तरह से ठीक नही हो पाती है।जिन टॉक्सिन से एक्यूट लीवर फेलियर हो सकता हैं उनमें जहरीला जंगली मशरूम अमानिता फालोइड्स शामिल है। इन्हे अगर कभी-कभी खाया जाए तो यह  सुरक्षित हो सकता है। कार्बन टेट्राक्लोराइड, जो वार्निश, वैक्स और अन्य सामग्रियों में पाया जाता है, एक तरह का टॉक्सिन है जो एक्यूट लीवर फेलियर के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर (Non-alcoholic fatty liver disease) बीमारी कई लोगों में लीवर खराब होने का एक प्रमुख कारण होता है। होने नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर पर लीवर की कोशिकाओं में बहुत ज्यादा फैट जमा हो जाता है। नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर होने के प्रमुख कारकों में मोटापा, गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी, हाई कोलेस्ट्रॉल और टाइप 2 डायबिटीज हैं।

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