- डॉ किरण मिश्रा
होली ऋषि और कृषि से जुड़ा पवित्र उत्सव है, जो कदाचित सृष्टि के आदिकाल से ऋषियों और कृषकों द्वारा मनाया जाता रहा है। आश्रमों में ऋषि और बटुक फागुन में ‘सामवेद’ के मंत्रों का गान करते थे वहीं नई फसल के पक जाने पर किसान चटकीले फागुन में रंग-बिरंगी ‘होली’ खेलते थे। शास्त्र परंपरा ने होली को ‘अग्नि’ से मिलाया। अग्नि जो पवित्र है शुद्ध है। अग्नि को समर्पित ये उत्सव कहीं इसलिए तो नही कि मनुष्य, वस्तुत: एक यज्ञाग्नि है। वाणी उस अग्नि का ईंधन है; सांस, धुआं है, जिह्वा इस अग्नि की ज्वाला है। आंखे कोयला है; और कान चिंगारियां है। इसीलिए खेतों में चमचमा रही जौ-गेहूं की बालियों को सबसे पहले ‘अग्नि देवता’ को समर्पित किया जाता है। फिर होली की अग्नि-ज्वाला में नवीन धान्य को पकाकर उन पकी हुई बालियों को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है। अन्य रचनाओं में 'रंग' नामक उत्सव का वर्णन है जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिका व रत्नावली तथा कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम शामिल हैं। कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही 'वसन्तोत्सव' को अर्पित है। भारवि, माघ और अन्य कई संस्कृत कवियों ने वसन्त की खूब चर्चा की है। चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है। भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर ,जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों को यह विषय प्रिय रहा है।
वास्तव में होली खुलकर और खिलकर कहने की परंपरा है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं। यही कारण है कि जोगीरे की तान में आपको सामाजिक विडम्बनाओं और विद्रूपताओं का तंज दिखता है। होली की मस्ती के साथ वह आसपास के समाज पर चोट करता हुआ नज़र आता है।
कौन काठ के बनी खड़ौआ, कौन यार बनाया है,
कौन गुरु की सेवा कीन्हो, कौन खड़ौआ पाया,
चनन काठ के बनी खड़ौआ, बढ़ई यार बनाया हो,
हम गुरु की सेवा कीन्हा, हम खड़ौआ पाया है,
जागी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।
जोगीरे होते क्या हैं इसके बारे में सही-सही नहीं कहा जा सकता। शायद इसकी उत्पत्ति योगियों की हठ-साधना, वैराग्य और उलटबाँसियों का मजाक उड़ाने के लिए हुई हो। मूलतः यह समूह गान है। प्रश्नोत्तर शैली में एक समूह सवाल पूछता है तो दूसरा उसका जवाब देता है जो प्रायः चौंकाऊ होता है। प्रश्न और उत्तर शैली में निरगुन को समझाने के लिए गूढ़ अर्थयुक्त उलटबाँसियों का सहारा लेने वाले काव्य की प्रतिक्रिया में इन्हें रोजमर्रा की घटनाओं से जोड़कर रचा गया है।
परम्परागत जोगीरा काम-कुंठा का विरेचन है। एक तरह से उसमें काम-अंगों, काम-प्रतीकों की भरमार है। सम्भ्रान्त और प्रभु वर्ग को जोगीरा के बहाने गरियाने और उनपर अपना गुस्सा निकालने का यह अपना ही तरीका है।
केकर बाटे कोठी कटरा
के सीचेला लॉन,
के नुक्कड़ पर रोज बिकाला,
केकर सस्ती जान
जोगीरा सा रा रा रा...
.नेता जी के कोठी कटरा,
अफसर सींचे लॉन,
हर नुक्कड़ मजदूर बिकाला,
फाँसी चढ़े किसान
जोगीरा सा रा रा रा
फाग उत्तर भारत का एक लोकप्रिय लोकगीत है। इसमें होली खेलने का वर्णन होता है। यह हिंदी के अतिरिक्त राजस्थानी, पहाड़ी, बिहारी, बंगाली आदि अनेक प्रदेशों की अनेक बोलियों में गाया जाता है। इसमें देवी देवताओं के होली खेलने से अलग अलग शहरों में लोगों के होली खेलने का वर्णन होता है। देवी देवताओं में राधा-कृष्ण, राम-सीता और शिव के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं।इसके अतिरिक्त होली की विभिन्न रस्मों की वर्णन भी होली में मिलता है।
राग रंग ही नही इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।।
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी पन्द्रह दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है।
दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया, जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के शृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमें अनेक समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है।
इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। बूंदी से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।
होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं। जो भी हो लेकिन होली रंग- उमंग का पर्व है चाहे इसमे कथा प्रह्लाद की हो या राक्षसी ढुंढी की, राधा कृष्ण के रास हो या कामदेव के पुनर्जन्म के किस्से कुल मिलाकर ये तो मानव का प्रकृति के रंग में मिलकर हर्ष उल्लास को व्यक्त करने का पर्व है तो बुरा न मानो होली है।
- लेखिका इग्नू में अकादमिक परामर्शक हैं
सौंदर्या राय May 06 2023 0 44499
सौंदर्या राय March 09 2023 0 51779
सौंदर्या राय March 03 2023 0 50133
admin January 04 2023 0 49407
सौंदर्या राय December 27 2022 0 40011
सौंदर्या राय December 08 2022 0 31801
आयशा खातून December 05 2022 0 83028
लेख विभाग November 15 2022 0 52948
श्वेता सिंह November 10 2022 0 50562
श्वेता सिंह November 07 2022 0 48275
लेख विभाग October 23 2022 0 38939
लेख विभाग October 24 2022 0 37715
लेख विभाग October 22 2022 0 47877
श्वेता सिंह October 15 2022 0 48825
श्वेता सिंह October 16 2022 0 51491
महानिदेशक घेबरेयेसस ने मंगलवार को स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान एक उच
देश में कोरोना महामारी का प्रसार तेजी से कम होता जा रहा है। संक्रमितों की संख्या में जहां भारी कमी ह
हर साल भारत में मुंह के कैंसर से हजारों जानें जा रही हैं। पिछले 10 सालों में मुंह के कैंसर के मामलों
एम्स ने नए और अनुवर्ती मामलों के ओपीडी पंजीकरण के लिए आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अकाउंट आईडी के उपयोग क
दुनिया भर के विशेषज्ञों के साथ विचार करके विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकीपॉक्स को 'एमपॉक्स' नाम दिया ह
एचआईवी संक्रमण का फ़िलहाल कोई उपचार उपलब्ध नहीं है मगर कारगर एचआईवी रोकथाम उपायों, निदान, उपचार व दे
ओरल सेक्स में साथी के जननांगों या जननांग क्षेत्र को उत्तेजित करने के लिए मुंह का उपयोग किया जाता है।
देश के सबसे अमीर उद्योगपति गौतम अदाणी लखनऊ के सरोजनीनगर में रहने वाली चार साल की मासूम मनुश्री के इल
एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर रे ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत कहा कि अमेरिकी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्
COMMENTS