लखनऊ| थैलेसीमिया बच्चों में होने वाली एक गंभीर बीमारी है | इस रोग के प्रति जागरूक करने, इस रोग के साथ जीने के तरीके बताने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देने, टीकाकरण के बारे में गलत धारणाओं का निराकरण करने तथा ऐसे व्यक्ति जो इस रोग से ग्रसित हैं और शादी से पहले डाक्टर से परामर्श के महत्व पर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है | इस वर्ष की थीम है-
“Addressing Health Inequalities Across the Global Thalassemia Community”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार थैलीसिमिया से पीड़ित अधिकांश बच्चे कम आय वाले देशों में पैदा होते हैं |
संजय गाँधी परास्नातक चिकित्सा संस्थान की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य बताती हैं कि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक बीमारी है और माता-पिता इसके वाहक होते हैं | तीन से चार फीसद माता - पिता इसके वाहक हैं और हर साल हमारे देश में लगभग 10 हजार थैलेसिमिक बच्चे जन्म लेते हैं।
डा. पियाली भट्टाचार्य
यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है | हीमोग्लोबिन आयरन व ग्लोबिन प्रोटीन से मिलकर बनता है | ग्लोबिन दो तरह का होता है – अल्फ़ा व बीटा ग्लोबिन | थैलेसीमिया के रोगियों में ग्लोबीन प्रोटीन या तो बहुत कम बनता है या नहीं बनता है | इस कारण लाल रक्त कोशिकाएं शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाती हैं और व्यक्ति को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ब्लड ट्रांस्फ्युजन की प्रक्रिया जनसँख्या के एक छोटे अंश को ही मिल पाती है, बाकी रोगी इसके अभाव में अपनी जान गँवा देते हैं |
डा. पियाली के अनुसार थैलेसीमिया तीन प्रकार का होता है –मेजर, माइनर और इंटरमीडिएट थैलेसीमिया | पीड़ित बच्चे के माता और पिता दोनों के ही जींस में थैलेसीमिया है तो मेजर, यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक के जींस में थैलेसीमिया है तो माइनर थैलेसीमिया होता है | इसके अलावा इंटरमीडिएट थैलेसीमिया भी होता है जिसमें मेजर व माइनर थैलेसीमिया दोनों के ही लक्षण दिखते हैं |
सामान्यतयः लाल रक्त कोशिकाओं की आयु 120 दिनों की होती है लेकिन इस बीमारी में इनकी आयु घटकर 20 दिन ही रह जाती है। यह त्रुटिपूर्ण हीमोग्लोबिन के कारण होता है| खून न बनने से व्यक्ति एनीमिया व कई तरह की गंभीर समस्याओं से ग्रसित हो जाता है।
थैलेसीमिया के लक्षण:
इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं | कुछ बच्चों में 5 -10 साल के मध्य दिखाई देते हैं |
1. थकान व कमजोरी
बीमारी की शुरुआत में इसके प्रमुख लक्षण कमजोरी व थकान होती है |
त्वचा, आँखें, जीभ व नाखून पीले पड़ने लगते हैं | प्लीहा और यकृत बढ़ने लगते हैं, दांतों को उगने में काफी कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है |
2. गाढ़े रंग का पेशाब आना|
3. हड्डियों में दर्द होना और चेहरे की हड्डियों का विकृत होना (थैलेसिमिक फेसीज)।
थैलीसिमिया की कम गंभीर अवस्था: (थैलेसीमिया माइनर) में पौष्टिक भोजन और विटामिन, बीमारी को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं। परंतु गंभीर अवस्था (थैलेसीमिया मेजर) में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है |
बार-बार खून चढ़ाने से रोगी के शरीर में आयरन की मात्रा अधिक हो जाती है | करीब 10 बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के बाद आयरन को नियंत्रित करने वाली दवाएं शुरू हो जाती हैं जो कि जीवन पर्यंत चलती हैं |
रोग से बचने के उपाय:
• खून की जांच करवाकर रोग की पहचान करना |
• शादी से पहले लड़के व लड़की के खून की जांच करवाना |
• नजदीकी रिश्तेदारी में विवाह करने से बचना |
• गर्भधारण से 4 महीने के अन्दर भ्रूण की जाँच करवाना |
कोरोना संक्रमण में थैलीसीमिया से ग्रसित बच्चों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता तो कमजोर होती है साथ ही उनका हार्ट व लिवर भी कमजोर होता है | ऐसे में अन्य संक्रमण की सम्भावना भी बढ़ जाती है |
डा. पियाली कहती हैं कि जिन लोगों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता है उन्हे विशेष असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कॉरोना काल में लोग रक्तदान नहीं कर रहे हैं। अतएव इस समय थैलेसीमिया के रोगी को संक्रमण से बचने के लिए घर पर ही रहना चाहिए और कोविड से बचाव के समस्त प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए।
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