बेंगलुरु। विश्व मधुमेह दिवस यानि वर्ल्ड डायबिटीज़ डे से पहले इंटरनेशनल डायबिटीज़ फेडरेशन द्वारा जारी नए आंकड़ों के अनुसार अब दुनिया भर में 537 मिलियन लोग डायबिटीज़ से पीड़ित हैं, 2019 के पिछले आंकड़ों की दृष्टि से इसमें 16 फीसदी (74मिलियन) की बढ़ोतरी हुई है। आईडीएफ डायबिटीज़ एटलस के 10वें संस्करण के परिणाम 6 दिसम्बर को को प्रकाशित किए जाएंगे। जिसके अनुसार भारत में 74 मिलियन से अधिक यानि हर 12 में से एक वयस्क डायबिटीज़ का शिकार है भारत डायबिटीज़ से पीड़ित मरीज़ों की संख्या की दृष्टि से चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
प्रोफेसर शशांक जोशी, चेयरपर्सन, आईडीएफ साउथ-ंईस्ट एशिया क्षेत्र ने कहा। इस साल इंसुलिन की खोज हुए 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह उपलब्धि डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, साथ ही बीमारी से पीड़ित लाखों लोगों की देखभाल में सुधार लाने का आह्वान करती है।‘‘हमें भारत एवं दुनिया भर में डायबिटीज़ से पीड़ित हर व्यक्ति के लिए किफ़ायती उपचार को सुलभ बनाना होगा। नीति निर्माताओं एवं स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने वालों को डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए कदम उठाने होंगे ताकि जिन लोगों में इसकी संभावना है, उनमें रोग को बढ़ने से रोका जा सके।’’
प्रो. जोशी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा। चीन में इन मरीज़ों की संख्या 141 मिलियन है। इसके अलावा भारत में 40 मिलियन वयस्क इम्पेयर्ड ग्लुकोज़ टॉलरेन्स का शिकार हैं, जिनमें टाईप 2 डायबिटीज़ की संभावना है। इस दृष्टि से भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है।भारत में डायबिटीज़ से पीड़ित आधे-ं यानि 53.1 फीसदी लोगों में इसका निदान नहीं होता है।
डायबिटीज़ का निदान न करने या ठीक से उपचार न करने पर यह जानलेवा एवं गंभीर जटिलताओें का कारण बन सकता है जैसे हार्ट अटैक,स्ट्रोक, किडनी फेलियर, अंधापन और कभी-ं कभी टांग काटने तक की नौबत आना। इसके परिणामस्वरूप मरीज़ के जीवन की गुणवत्ता गिर जाती है और ऐसी स्थिति में पहुंचने के बाद इलाज की लागत भी बढ़ जाती है। साथ ही मरीज़ को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है।
‘‘भारत में डायबिटीज़ के मामलों की बढ़ती संख्या इस बात को दर्शाती है कि यह रोग आज देश में आम लोगों एवं उनके परिवारजनों के लिए स्वास्थ्य की बड़ी चुनौती बन गया है।’’ दुनिया भर में 90 फीसदी लोग टाईप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित हैं। टाईप 2 डायबिटीज़ के ब-सजय़ते मामलों में सामाजिक-ंउचयआर्थिक, जनसांख्यिकी, पर्यावरणी एवं आनुवंशिक कारकों का योगदान है। शहरीकरण, आबादी की बढ़ती उम्र, शारीरिक व्यायाम, वज़न बढ़ना और मोटापा इसके मुख्य कारण हैं। डायबिटीज़ के प्रभाव को कम करने के लिए काफी प्रयास किए जा सकते हैं। अध्ययनों से साफ है कि टाईप 2 डायबिटीज़ को रोका जा सकता है। साथ ही जल्दी निदान एवं सही देखभाल के द्वारा रोग के लक्षणों को जटिल होने से बचाया जा सकता है।
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