बीजिंग (एपी)। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह पता लगाने के लिए अगले चरण की जांच के लिए योजनाएं बनायी है कि कोरोना वायरस महामारी कैसे शुरू हुई लेकिन इस बीच कई वैज्ञानिकों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र की यह एजेंसी इस काम के लिए उचित नहीं है और उसे इसकी जांच नहीं करनी चाहिए।
डब्ल्यूएचओ से मजबूत संबंध रखने वाले विशेषज्ञों समेत कई विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच राजनीतिक तनाव ने एजेंसी के लिए विश्वसनीय जवाब ढूंढने के उद्देश्य से जांच करना असंभव बना दिया है।
कोविड-19 की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए डब्ल्यूएचओ-चीन के संयुक्त अध्ययन के पहले हिस्से का मार्च में निष्कर्ष निकला था कि यह वायरस संभवत: पशुओं से मनुष्यों में आया और इसके प्रयोगशाला से लीक होने की ‘‘संभावना बेहद कम है।’’
जांच के अगले चरण में मनुष्यों में इस वायरस के पहले मामले की विस्तार से या इसके लिए कौन-से पशु जिम्मेदार है, यह पता लगाने की कोशिश की जाएगी। ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस संभवत: चमगादड़ों से फैला। इस महामारी के प्रयोगशाला में शुरू होने की संभावना ने हाल ही में तब गति पकड़ी जब राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका की खुफिया सेवा को 90 दिनों के भीतर इसकी पड़ताल करने का आदेश दिया।
इस महीने की शुरुआत में डब्ल्यूएचओ के आपात संबंधी कामों के प्रमुख डॉ. माइकल रयान ने कहा कि एजेंसी अपनी जांच के अगले चरण की जानकारियों को अंतिम रूप देने पर काम कर रही है और चूंकि डब्ल्यूएचओ ‘देशों से अनुरोध करने’ के आधार पर काम करता है तो उसके पास चीन को जांच में सहयोग करने के लिए विवश करने की शक्ति नहीं है।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यही कारण है कि डब्ल्यूएचओ की अगुवाई वाली जांच का विफल होना तय है। जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में जन स्वास्थ्य कानून और मानवाधिकारों पर डब्ल्यूएचओ के सहयोग केंद्र के निदेशक लॉरेंस गोस्टिन ने कहा, ‘‘हम विश्व स्वास्थ्य संगठन पर निर्भर रहते हुए कभी इसकी उत्पत्ति का पता नहीं लगा पाएंगे। डेढ़ साल से चीन उन्हें अनसुना करता रहा है और यह स्पष्ट है कि वह कभी इसकी तह तक नहीं पहुंच पाएंगे।’’
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