मेरठ। युवा पीढ़ी के जीवन का बहुमूल्य हिस्सा है मोबाइल और इसके बिना इक पल भी चैन नहीं पड़ता है। एक मिनट में 60 बार मोबाइल चेक करने की आदी बन चुकी युवा मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से होने वाले नुक़सान से अंजान है और अंजाम की परवाह किए बिना लगातार मोबाइल में बिजी हैं। मेरठ मेडिकल कॉलेज और मनोरोग विभाग, जिला अस्पताल की यह रिपोर्ट युवाओं को सोचने पर मजबूर कर देगी।
मेरठ मेडिकल कॉलेज (Meerut Medical College) और मनोरोग विभाग, जिला अस्पताल (Department of Psychiatry, District Hospital) ने जनवरी से जून के बीच आएं 2653 मरीजों की पड़ताल की जिनमें आधे मरीजों की उम्र 25 से 45 के बीच थी। पता चला कि ये युवा अवसाद, चिड़चिड़ापन और तनाव की समस्याओं से जूझ रहे थे। भागदौड़ भरी जिंदगी और मोबाइल में डूब कर एकाकी जीवन बिताने से इनमें मनोरोग घर कर गया था। पड़ताल में पता चला कि इन सबकी दिनचर्या काफी गड़बड़ थी और इनका ज्यादातर समय मोबाइल पर बीत रहा था।
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मोबाइल की लत (addiction of mobile) लगने से युवा रात भर जागते रहते हैं और अच्छी नींद नहीं मिलने से मनोरोगी (psychopaths) बन रहे हैं। मोबाइल की लत अकेलेपन को बढ़ावा देती है और अवसाद, चिड़चिड़ापन मनोरोग को निमंत्रण देने लगता है।
मेरठ मेडिकल कॉलेज की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक युवाओं में मोबाइल की आदत (habit of mobile) इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वे मोबाइल की दुनिया में खोए रहते हैं और असल जिंदगी से उनकी दूरी बढ़ती जा रही है। कुछ युवा कैरियर को लेकर चिंतित मिलें और चिंता से बचने का उपाय उन्होंने मोबाइल में खोज लिया। आभासी दुनिया इस कदर युवाओं पर हावी हो गई है कि उन्हें असली दुनिया नजर ही नहीं आ रही है। अपने आप में खोए रहना, परिजनों से बेबात झगड़ना, झुंझलाना इस बात की निशानी है कि ऐसे युवा मनोरोगी बन रहे हैं।
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मनोवैज्ञानिकों (Psychologists) का कहना है कि रात भर जाग कर गेम्स खेलना, वेवसाईट देखना, फिल्म देखना युवाओं की दिनचर्या को प्रभावित कर रहा है। युवा अपनी दिक्कत परिवार से बताते नहीं है और घुटन मनोरोग का शिकार बना देती है। परेशान करने वाली बात यह है कि बहुत से युवा ऐसी स्थिति में आगे चलकर आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं।
मेरठ मेडिकल कॉलेज की यह रिपोर्ट युवाओं को सोचने पर जरुर मजबूर करेगी कि मोबाइल साधन मात्र है साध्य या लक्ष्य नहीं।
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