थायरॉयड एक बड़ी ग्रंथि है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों के गले में स्थित होती है। यह अंतःस्रावी तंत्र (endocrine system) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा निकाले गए थायरॉयड उत्तेजक हार्मोन (TSH) द्वारा नियंत्रित होता है। थायराइड विकास को नियंत्रित करता है, हार्मोन के निकलने, और एक मानव शरीर की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। थायरॉयड (thyroid) द्वारा स्रावित हार्मोन चयापचय (metabolism) को भी नियंत्रित करते हैं। यदि किसी व्यक्ति को पाचन (digestion) में परेशानी होती है, अकारण थकावट (tiredness) होती है, मांसपेशियों की कसावट (loses muscle tone) कम होने लगती है, मिजाज हमेशा बदलता रहता है, या उनके वजन में अचानक परिवर्तन (loses muscle tone) होता है, तो थायरॉयड कार्यप्रणाली का परीक्षण किए जाने वाले महत्वपूर्ण जांचों में से एक है।
यह एक तथ्य है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को थायरॉयड के सही से काम नहीं करने का अधिक खतरा रहता है। हालांकि, महिलाओं इससे अधिक प्रभावित क्यों होती है इसका कारण ज्ञात नहीं है। महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और रजोनिवृत्ति के दौरान हार्मोन के उच्च प्रवाह का अनुभव होता है।
एक और महत्वपूर्ण कारक आनुवंशिक प्रवृत्ति है। प्रत्येक 5 महिलाओं में से 1 को टीएसएचबी जीन के आनुवंशिक उत्परिवर्तन के परिणामस्वरुप थायरॉइड होता है। अधिकांशतः असामान्य थायरॉयड कार्यप्रणाली एक स्वप्रतिरक्षा स्थिति है।
प्रत्येक व्यवहार्य गर्भावस्था में कम से कम एक बार गर्भ धारण के बाद थायराइड (post-conception thyroid ) कार्यप्रणाली की जाँच करना आम बात है, खासकर गर्भाधान (pregnancy) के तुरंत बाद। इसका माहवारी (menstruation) खत्म होने की शुरुआत में भी जाँच की जानी चाहिए। स्क्रीनिंग में टीएसएच (thyroid stimulating hormone) और T4 के लिए जाँच शामिल हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ क्लिनिकल एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (ssociation of Clinical Endocrinologists) और अमेरिकन थायराइड एसोसिएशन (ATA) द्वारा सुझाए गए मानकों के अनुरूप हैं। दिशानिर्देश थायराइड नोडुलर रोग, ग्रेव्स रोग (Graves' disease), गोइटर (goiter), हाशिमोटो बीमारी (Hashimoto's disease) की बुनियादी नैदानिक और चिकित्सीय जानकारी देता है।
महिलाओं में पाया जाने वाला सबसे आम थायरॉयड रोग हाइपोथायरायडिज्म है:
हाइपरथायरायडिज्म की तुलना में हाइपोथायरायडिज्म कहीं अधिक आक्रामक होता है। यह 50 वर्ष से अधिक आयु की सभी महिलाओं को 15-20% तक प्रभावित करता है। यह थायरोक्सिन की कम उत्पादकता के कारण होता है और नींद, थकान, ठंडे हाथ पैर और कब्ज जैसे पाचन विकारों जैसे लक्षण पाए जाते हैं। इसे हाइपरथायरायडिज्म (hyperthyroidism) से भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है जो किसी भी उम्र की महिलाओं में हो सकती है।
हाइपरथायरायडिज्म थायरोक्सिन (thyroxine) के अत्यधिक उत्पादन के कारण होती है। हाइपरथायरायडिज्म 1% से भी कम महिलाओं में देखा जाता है और पुरुषों में उससे भी कम मामले पाए जाते हैं। हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण अचानक वजन घटने, अनियमित माहवारी चक्र, त्वचा, नाखूनों और बालों के पतले होने के कारण गिरने से परेशानी हो सकती है। ज्यादा पसीना आना और बढ़ी हुई दिल की धड़कन भी देखी जाती है। लक्षण आमतौर पर 20 और 40 की उम्र के बीच देखे जाते हैं।
थायराइड रोग भ्रामक है क्योंकि लक्षण विभिन्न कारणों से प्रकट हो सकते हैं। अक्सर यह महिलाओं में पता नहीं चलने वाला और निदान नहीं हो सकने वाला हो जाता है। इस कारण से, ATA 35 साल की उम्र के बाद हर 5 साल में महिलाओं को TSH स्तर के जाँच की सिफारिश करता है।
निम्नलिखित स्थितियों का अनुभव करने वाली महिलाओं के लिए एक विशेष, नियमित स्वास्थ्य जांच आवश्यक है:
गर्भवती महिलाओं और गर्भावस्था को लेकर विचार करने वाली महिलाओं को नियमित आधार पर टीएसएच के स्तर के लिए भी एक जाँच करवानी चाहिए।
थायराइड विकार का उपचार:
थायराइड विकारों का उपचार अक्सर दीर्घकालिक होता है और सरल और सस्ता होता है। थायरोक्सिन को प्रतिदिन लेने की सलाह आमतौर पर जीवन भर के लिए की जाती है। रोगी को थायरोक्सिन की गोलियां रोजाना खाली पेट दिन के समय में लेनी चाहिए।
दवा के अलावा हाइपरथायरायडिज्म के लिए कुछ और उपचार उपलब्ध हैं, जो रेडियोआयोडीन थेरेपी और शल्यचिकित्सा है। उपचार के साधन का चयन रोगी की आयु, गर्भावस्था और विकार की प्रकृति पर निर्भर करता है।
कुछ मामलों में थायरॉयड ग्रंथि के थायरॉयड नोड्यूल में सूजन हो जाती है। ज्यादातर ये नोड्यूल गैर घातक स्थिति में होते हैं लेकिन कभी-कभी ये नोड्यूल कैंसर भी हो सकते हैं। इसलिए इन नोड्यूल्स का मूल्यांकन महत्वपूर्ण है। थायरॉइड कार्यप्रणाली जाँच, अल्ट्रासाउंड थायरॉयड और एफएनएसी जैसे जांच की सिफारिश की जाती है। छोटे आकार के गैर घातक/कोलाइड नोड्यूल्स की वृद्धि की निगरानी की जाती है और उन्हें शल्यचिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती है। यदि परीक्षण कैंसर का संकेत देते हैं, तो रोगी को शल्यचिकित्सा की आवश्यकता होती है।
लेखक - डॉ रघु, एमएस, सलाहकार – एंडोक्रिनोलॉजी , नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, मैसूर
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