लखनऊ। माहवारी में स्वच्छता बनाये रखने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले सभी विकल्पों की जानकारी होना ज़रूरी है। सभी विकल्पों की खामियों और ख़ूबियों से पूरी तरह परिचित होकर अपने लिए बेहतर विकल्प चुनना भी महिलाओं के लिए लाभदायक होगा।
नेशनल फेमिली एंड हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 15-24 वर्ष की 47.1 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के दौरान सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। शहरी लड़कियों में यह आंकड़ा 68.6 प्रतिशत है और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली लड़कियों का आंकड़ा 39.9 है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि महिलाओं की बड़ी संख्या माहवारी में स्वच्छता व उसके प्रबंधन को लेकर औपचारिक ज्ञान व जागरूकता का अभाव रखती है।
ग्रामीण परिवेश में महिलाएं और भी कई तरह की समस्याओं से जूझती हैं जैसे साफ़ पानी का अभाव, निजी शौचालयों की कमी, माहवारी से जुड़ी कई तरह की प्रचलित भ्रांतियां, घर के इस्तेमाल किये गए कपड़े को धुप में सुखाने में हिचकिचाहट। इससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में माहवारी के सभी विकल्पों की जानकारी बेहद आवश्यक है। साथ ही यह महिलाओं का अधिकार भी है ताकि वह अपनी परख से, अपनी ज़रुरत और आमदनी के अनुरूप बेहतर विकल्प चुन सकें।
सैनिटरी नैपकिन
माहवारी के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले सेनेटरी पैड प्लास्टिक के बने होते हैं और इन्हें बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री गैर-बायोडिग्रैडबल होती है। सैनिटरी नैपकिन को हर चार से छह घंटे बाद बदलना चाहिए। पैड को लंबे समय तक पहने रहने से त्वचा पर रैशेज और संक्रमण भी हो सकते हैं। हर बार टॉयलेट जाने के बाद जननांगों को अच्छी तरह से धोकर पोछ लेना चाहिए ताकि सैनिटरी नैपकिन गीला न हो। सैनिटरी नैपकिन को किसी पेपर में लपेटकर ही डस्टबिन में डालना चाहिए। इन्हें टॉयलेट में नहीं बहाना चाहिए अन्यथा वह जाम हो सकता है। इसकी कीमत प्रति पैड 3 से 10 रुपये तक होती है।
उत्तर प्रदेश में 2018 के पांच जिलों में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) पर डेवलपमेंट सोल्युशंस एण्ड वाटर सप्लाई एण्ड सेनिटेशन कोलाबोंरेटीव काउन्सल (डब्ल्यूएसएससीसी) द्वारा एक बेसलाइन असेसमेंट किया गया। इस अध्ययन में पाया गया कि 50% से अधिक लड़कियों और महिलाओं ने अपना सेनेटरी पैड तब बदला जब ज्यादा ब्लीडिंग हुयी। वहीं मात्र 1% लड़कियों ने दिन में चार बार बदले।
कपड़े के सेनेटरी पैड्स
माहवारी के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले कपड़े के पैड कॉटन के कपड़े से बने होते हैं। इन पैड्स को धुलकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए जब कपड़ा खून से गीला हो जाए तो इसे साफ करके सुखा लेना चाहिए। यह डिस्पोज़ेबल पैड की अपेक्षा में कम कीमत के होते हैं।
मेंस्ट्रुअल कप
मेंस्ट्रुअल कप मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन से बना होता है और इसे योनि के अंदर लगाया जाता है। यह कप माहवारी वाले खून को इकट्ठा करता है। मेंस्ट्रुअल कप भर जाने पर 6 से 8 घंटे में इसे टॉयलेट में जाकर खाली कर देना चाहिए और पानी से धोकर अच्छी तरह से साफ करके दोबारा इस्तेमाल करना चाहिए। मेन्सट्रूयल कप्स खून को एकत्रित करते हैं जबकि सैनिटरी नैपकिन खून को अवशोषित करते हैं। इसके अलावा हर मासिक चक्र में इसे लगाने से पहले और लगाने के बाद पानी में उबालकर साफ कर लेना चाहिए। मेंस्ट्रुअल कप को दस सालों व उससे भी लम्बे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी कीमत प्रति मेंस्ट्रुअल कप 300 से लेकर 3600 रुपये तक होती है।
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