मोबाइल फोन, लैपटॉप और टैब की स्क्रीन पर अत्यधिक समय देने से लोगों में मोटापा बढ़ा रहा है। इसके अलावा इन गैजेटस की स्क्रीन मनोवैज्ञानिक के अलावा जैविक कार्य पर भी प्रभाव डाल रही है। इन उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी मनुष्य के बुनियादी जैविक कार्यों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। यह निष्कर्ष मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आए। हालांकि यह अध्ययन मक्खियों पर किया गया है। लेकिन इसके चौंकाने वाले परिणाम आए हैं कि इंसानों पर इसी तरह का प्रभाव दिखाई दे सकता है।
अध्ययन के मुताबिक टीवी, लैपटॉप (laptops) और मोबाइल फोन (mobile phones) जैसे रोजमर्रा के उपकरणों की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी के संपर्क में अधिक रहने से त्वचा और न्यूरॉन्स (neurons) पर इसका असर पड़ सकता है। इसी के साथ कोशिकाओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी (Oregon State University) में इंटीग्रेटिव बायोलॉजी विभाग में प्रोफेसर डॉ. जादविगा गिबुल्टोविक्ज ने बताया कि शायद यह पहली बार देखा गया है कि विशिष्ट मेटाबोलाइट्स कोशिकाओं के सही ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक हैं लेकिन ये नीली रोशनी के संपर्क में आने से प्रभावित होते हैं।
शोध (study) में समझाया गया कि दो सप्ताह तक नीली रोशनी के संपर्क में आने वाली मक्खियों के मेटाबोलाइट्स के स्तर की तुलना पूर्ण अंधेरे में रखी मक्खियों से जब की गई तो पता चला कि इस एक्सपोजर ने मक्खियों की कोशिकाओं में मेटाबोलाइट्स के स्तर में बहुत बड़ा अंतर पैदा किया। दरअसल एलईडी डिस्प्ले (LED display) स्क्रीनों से युक्त मोबाइल फोन, डेस्कटॉप और टीवी से हम सब नीली रोशनी के संपर्क में आते हैं। चूंकि मक्खियों और मनुष्यों की कोशिकाओं में संकेत देने वाले रसायन एक समान ही होते हैं। इसलिए मनुष्यों पर नीली रोशनी के नकारात्मक प्रभावों की संभावना अब अधिक जताई जा रही है। दुनिया में लोगों में तेजी से बढ़ रहा मोटापा भी इसी का ही कारण माना जा रहा है।
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