लखनऊ। स्ट्रोक भारत और दुनिया में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। अधिकांश स्ट्रोक मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में रुकावट के कारण और शेष मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण होते हैं।
स्ट्रोक के कई जोखिम कारक हैं, जिनमें मधुमेह (diabetes), उच्च रक्तचाप (high blood pressure), हृदय रोग, डिस्लिपिडेमिया, मोटापा, तनाव, धूम्रपान और तंबाकू का उपयोग और एक सुस्त जीवन शैली प्रमुख हैं। यह जानकारी एसजीपीजीआई लखनऊ के न्यूरोसर्जरी विभाग के अध्यक्ष (Chairman of Neurosurgery Department of SGPGI) व एपेक्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख प्रो. राज कुमार (Head of Apex Trauma Center Prof. Raj Kumar) ने दी।
प्रो. राजकुमार ने बताया कि स्ट्रोक (stroke) के क्षेत्र में हुई नई प्रगति ने मस्तिष्क रक्त वाहिकाओं (brain blood vessels) में रुकावटों को खोलना संभव बना दिया है। लेकिन यह उपचार स्ट्रोक की शुरुआत के तुरंत बाद सबसे प्रभावी होते हैं, इसलिए स्ट्रोक के चेतावनी संकेतों (warning signs of stroke) के बारे में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि उपरोक्त लक्षण दिखने पर तुरन्त चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
इमरजेंसी मेडिसिन (Department of Emergency Medicine) के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.के. सिंह ने स्ट्रोक की चेतावनी के बारे में बताया कि मरीज को स्ट्रोक के बाद तीन से 3.5 घंटे के भीतर ऐसे अस्पताल में पहुंचना चाहिए, जो स्ट्रोक के उपचार के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो। न्यूरोलॉजी विभाग (Department of Neurology) द्वारा न्यूरोलॉजी ओपीडी में अस्पताल प्रशासन विभाग के सहयोग से एक सार्वजनिक व रोगी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत न्यूरोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डाक्टर विनीता एलिजाबेथ मणि द्वारा स्वागत भाषण से हुई। इसके बाद न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष, प्रो. संजीव झा द्वारा स्ट्रोक और इसके जोखिम कारकों का परिचय करवाया गया। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर गौरव अग्रवाल ने स्ट्रोक का जल्द पता लगाने की आवश्यकता के विषय में जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया।
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