देश का पहला हिंदी हेल्थ न्यूज़ पोर्टल

लेख

वैदिक विज्ञान में माइक्रोबायोलॉजी और मानव स्वास्थ्य

वेदों में इन जैव सूक्ष्माणुओं को पदार्थ विद्या के अंतर्गत मरुत गणों के नाम से बताया गया है। वेदों के अनुसार मरुत गणों में वे अब गुण पाए जाते हैं जो आधुनिक सूक्ष्म विज्ञान में सूक्ष्माणुओं (माइक्रोब) में पाए जाते हैं।

लेख विभाग
February 09 2023 Updated: February 09 2023 22:44
0 74211
वैदिक विज्ञान में माइक्रोबायोलॉजी और मानव स्वास्थ्य प्रतीकात्मक चित्र

पृथ्वी पर समस्त जीवन का आधार ही सूक्ष्म जीवाणु हैं और सारे सूक्ष्म जीवाणु केवल रोगों के लिए जि़म्मेदार नहीं हैं। रोगाणुओं से अधिक महत्व और संख्या जीवनदायिनी सूक्ष्माणुओं जिन्हें आज प्रोबायोटिक्स कहा जाता है, की है। वेदों में इन जैव सूक्ष्माणुओं को पदार्थ विद्या के अंतर्गत मरुत गणों के नाम से बताया गया है। वेदों के अनुसार मरुत गणों में वे अब गुण पाए जाते हैं जो आधुनिक सूक्ष्म विज्ञान (माइक्रोबायोलोजी) में सूक्ष्माणुओं (माइक्रोब) में पाए जाते हैं।

 

भारतीय परम्परा (Indian tradition) में यह विश्वास पाया जाता है कि मानव को श्रेष्ठ जीवन पद्धति से जीने के लिए सृष्टि के आदिकाल में वेदों (Vedas) का ज्ञान परमेश्वर ने हमें दिया था। इसमें समस्त ज्ञान विज्ञान पर आधारित परा यानी आत्मज्ञान और अपरा यानी सांसारिक ज्ञान का उपदेश था। वेदों में प्रकृति के समस्त रहस्यों (secrets of nature) पर आधारित मानव के हित में जीवन शैली का पूर्ण उपदेश मिलता है। पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से वैदिक परम्परा को अंधविश्वास और अश्रद्धा के कारण आज का मानव प्रकृति के रहस्यों को अपने प्रयास से पुन: खोजने का प्रयास कर रहा है।

 

इसे आधुनिक वैज्ञानिक परम्परा का नाम दिया जाता है। आधुनिक विज्ञान (modern science) की परम्परा जो केवल गत तीन चार शताब्दि से प्रकृति के मूल सिद्धांतो के रहस्य का अनुसंधान करने में जुटी है, परंतु अंतिम सत्य तक कब पहुंचेगी यह भविष्य ही बताएगा। अनेक ऐसे उदाहरण अब दिए जा सकते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि वैदिक ज्ञान ही अंतत: अत्याधुनिक विज्ञान सिद्ध होता है।

 

उदाहरण के लिए आधुनिक भौतिकी विज्ञान (modern physics) की यात्रा को इतिहास में न्यूटोनियन यांत्रिकी, डेसकार्टेस की ‘यंत्रवत' दुनिया से आइंस्टीन के सापेक्षता तक एक सतत विकास के रूप में देखा जाता है। इसी तरह जैव विज्ञान की यात्रा को कृषि, खाद्य पदार्थ इत्यादि के विकास के रूप में मिट्टी में अकार्बनिक रासायनिक उर्वरकों से आगे चल कर सूक्ष्म जीवाणुओं (micro-organisms organic), जैविक खाद (fertilizers) इत्यादि के विकास के क्रम के रूप में भी देखा जाता है।

 

चिकित्सा के क्षेत्र (field of medicine) में इसी प्रकार आरम्भ में सब जैव सूक्ष्माणुओं को विभिन्न रोगों के लिए जि़म्मेदार समझा जाता था परन्तु बाद में यह पाया गया कि पृथ्वी पर समस्त जीवन का आधार ही सूक्ष्म जीवाणु हैं और सारे सूक्ष्म जीवाणु केवल रोगों के लिए जि़म्मेदार नहीं हैं। रोगाणुओं से अधिक महत्व और संख्या जीवनदायिनी सूक्ष्माणुओं जिन्हें आज प्रोबायोटिक्स (probiotics) कहा जाता है, की है। मनुष्य की पाचन क्रिया (digestion) और स्वास्थ्य (health) तो इन्हीं जीवनदायिनी सूक्ष्माणुओं प्रोबायोटिक्स पर निर्भर है। अब रोगाणुओं से अधिक महत्व जीवनदायिनी सूक्ष्माणुओं प्रोबायोटिक्स को दिया जा रहा है। आज समस्त बुद्धिजीवी व जागरूक लोग स्वच्छ जैविक अन्न ही मांग रहे हैं।

रोगों के उपचार के रूप में दवाओं की खोज (discovery of drugs) से बीमारी से लडऩे के उपकरण के रूप में एंटीबायोटिक (antibiotics) दवाओं और टीकों (vaccines) का आविष्कार किया गया। परंतु वायरस से लडऩे के लिए अभी तक कुछ भी नहीं मिला था। अब बेक्टीरियोफेज के रूप में बेक्टीरिया को खा जाने वाले बेक्टीरिया (bacteria) से भी सूक्ष्म तत्व पाए गए हैं। इस प्रकार सूक्ष्माणुओं का जैविक विज्ञान में जो स्थान है, वही अणुओं परमाणुओं का भौतिक विज्ञान में है। सूक्ष्माणुओं की संख्या भी परमाणुओं की तरह असंख्य बताई जाती है।

 

वेदों में इन जैव सूक्ष्माणुओं (micro-organisms) को पदार्थ विद्या (material science) के अंतर्गत मरुत गणों के नाम से बताया गया है। वेदों के अनुसार मरुत गणों में वे अब गुण पाए जाते हैं जो आधुनिक सूक्ष्म विज्ञान (microbiology) में सूक्ष्माणुओं (माइक्रोब) में पाए जाते हैं। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं।

1. वेदों के अनुसार गौ में रोगाणुओं को रुलाने की विश्व में सब से अधिक क्षमता है। गौमाता को वेदों मे ‘माता रुद्राणाम्' कहा गया है। आज वैज्ञानिक अनुसन्धान से यह पाया गया है कि गौ प्रजाति में विश्व के सब प्राणियों से अधिक जैविक रोग निरोधक और रोगनाशक शक्ति है।

2. ये रुद्र मरुत गण इतने सूक्ष्म भी होते हैं कि इन्हें अतिसूक्ष्म तत्व वायरस जैसा बताया जाता है। इन्हें आधुनिक विज्ञान बैक्टीरियोफेज -बैक्टीरिया खा जाने वाले – नाम देता है। बैक्टीरियोफेज अतिसूक्ष्म तत्व वायरस की तरह अति सूक्ष्म और संक्रामक होते हैं यानी ये बैक्टीरिया से भी जल्दी स्वयं फैल जाते हैं और अब रोगो को नष्ट कर देते हैं। बैक्टीरियोफेज इतने प्रभावशाली पाए गए हैं कि जो रोगाणु अब आधुनिक एन्टीबायोटिक से भी नष्ट नहीं हो पाते, वे बैक्टीरियोफेज से नष्ट हो जाते हैं। पवित्र गंगा जल और स्वच्छ मट्टी में भी वैज्ञानिकों को यह बैक्टीरियोफेज मिले हैं। आधुनिक विज्ञान की विदेशों में खोज पर ध्यान दें तो वहां गौ माता के पंचगव्य, गंगा जल और मिट्टी के द्वारा हर उस रोग का निदान सम्भव है जो किसी एन्टीबायोटिक से भी ठीक नहीं हो पाता। अब अमेरिका की व्यापारिक संस्थाएं गंगा जल के अनुसंधान से एंटीबायोटिक से भी अधिक प्रभावशाली ओषधियां बना कर उन्हें भारतवर्ष में ही बेचने का कार्य कर रही हैं। हमारा दुर्भाग्य यह है कि पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव में भारतीय जीवन शैलि की अवहेलना और वैदिक मान्यताओं के प्रति अश्रद्धा के कारण आज भारत वर्ष में हमने पवित्र गंगा माता में समस्त मल मूत्र इत्यादि छोड़ कर एक भयंकर रोगाणुओं से लदा गंदा नाला बना दिया है। अमेरिका की वैज्ञानिक शोध के अनुसार भारतवर्ष की गंगा यमुना इत्यादि समस्त नदियों में कैंसर के रोगाणु पल रहे हैं। इन नदियों के जल पर आधारित समस्त कृषि और मछलियां इत्यादि समस्त भारतवर्ष में कैंसर जैसे रोगों की महामारी के वाहक की भूमिका निभा रहे हैं।

3. इसी प्रकार वर्षा विज्ञान को एक समय केवल जल का पृथ्वी से सूर्य के ताप वाष्पीकरण द्वारा मेघ बन आकाश में ऊपर उठ कर ठंडा होने से पृथ्वी पर गिरना एक भौतिक क्रिया के रूप में देखा जाता था परंतु अब यह समझ में आ रहा है कि पृथ्वी पर होने वाली हरियाली में सडऩे वाले उर्वरक में एक सूक्ष्माणु स्यूडोमोनास सिरिंगे अग्निहोत्र की ऊष्णता के कारण आकाश में उड़ कर जाता है और मेघों को वर्षा करने के लिए प्रेरित करता है। अग्निहोत्र के लाभ के रूप में अनेक स्थलों पर यह विज्ञान वेदों में दिया गया है, जैसे यजुर्वेद 17.3। जहां हरियाली न हो वहां वर्षा कम होने लगती है और वह प्रदेश मरुस्थल बन जाता है।

आधुनिक माइक्रोबाइलोजी से सम्मत वेदों के मरुत गण विषय पर कुछ और उदाहरण

  • वेद में मरुत गण एक सेना का रूप हैं जो एक संगठित सेना की तरह संचालित होते हैं। माइक्रोब भी अकेले नहीं परंतु एक विशाल समूह के रूप में काम करते हैं।
  • नवीन उर्वरक मृदा विज्ञान: यजुर्वेद के एक मंत्र 17/1 में जैविक उपजाऊ भूमि की संरचना में मरूत गणों का दायित्व बताया गया है। वहां कहा गया है कि हे मरुत गण, पर्वतों की चट्टानों में भिन्न भिन्न खनिज पदार्थों के बने पत्थरों को विदीर्ण करके नूतन उपजाऊ मृदा (वर्जिन सोइल) बनाओ, खनिज पदार्थों का रस बना कर पेड़-पौधों की जड़ों से वनस्पतियों की वृद्धि कर उनमें ओषधीय गुण प्रदान करो। यह वेद मंत्र एक अत्यंत आधुनिक उपजाउ मृदा संरचना का ज्ञान देता है। आधुनिक विज्ञान भी नूतन उपजाऊ मिट्टी के गठन के लिए चट्टानों के अपक्षय और विघटन में माइक्रोब (सूक्ष्माणुओं) की महत्वपूर्ण भूमिका मानता है।
  • सूक्ष्माणुओं की संख्या: वेद मरुत गणों को इस सजीव सृष्टि की अट्टालिका में ईंटों की तरह देखते हैं। यजुर्वेद के सत्रहवें अध्याय के दूसरे मंत्र में मरुत गणों की संख्या 1032 तक बताई गई है। आधुनिक माइक्रोबायलोजी के अनुआर भी सूक्ष्माणुओं की अनुमानित संख्या 1032 है।
  • यजुर्वेद के सत्रहवें अध्याय के चौथे मंत्र में बताया गया है कि मरुत गण समुद्र के तल पर होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट के आसपास के क्षेत्र में बहुत उच्च तापमान पर भी मौजूद है। समुद्र के फर्श, पर उनकी मौजूदगी से खेलते भूमिकाओं कि संकेत मिलता है। इन्हें थर्मोफिलिक माइक्रोब कहा जाता है।
  • यजुर्वेद (Yajurveda) के सत्रहवें अध्याय के पांचवें मंत्र में बताया गया है कि मरुत गण बहुत कम तापमान में बर्फ के नीचे दबे हुए हैं। आधुनिक विज्ञान की भाषा में इन्हें क्रायोफिलिक माइक्रोब कहते हैं।
  • इस प्रकार वेदों में मरुत गण का वर्णन केवल जैव प्रौद्योगिकी, सूक्ष्म जीव विज्ञान, रोगाणुओं के विषय को ही विस्तृत रूप से प्रकट नहीं करता है, बल्कि आधुनिक विज्ञान की एक रहस्यमयी पहेली को भी सुलझाता है। वेद मरुत गणों का निर्जीव पदार्थ और सजीव पदार्थ (organic and inorganic) दोनों से सम्बंध भी दिखाते हैं जहां आधुनिक विज्ञान की पहुंच अभी नहीं है। वेद प्राण द्वारा हवा में मरुत गण से ही ‘जीवनÓ की उपलब्धता बताते हैं। इस पर शोध किया जाना चाहिए।
  • वेदों के अनुसार मरुत गण कई विभिन्न किस्मों, आकृति, आकार और रंग के हैं। यह भी माक्रोबयलोजी की आधुनिक विज्ञान में उपलब्ध जानकारी के अनुसार सही है।
  • वेदों के अनुसार मरुत गणों का जन्मस्थान बाह्य अंतरिक्ष में है। माइक्रोबायलोजी में भी माइक्रोब का जन्म स्थान यही मानती है। मरुत   और माइक्रोब आकाश यानी कि अंतरिक्ष से पृथ्वी पर वायुमंडल द्वारा प्रवेश करते हैं।
  • वेद बताते हैं कि मरुत गण जन्म से ही युवा या वयस्क रूप में पैदा होते हैं। वे बचपन और बुढ़ापा आदि चरणों से नहीं गुजऱते और एक साथ ही मर जाते हैं। माइक्रोबायलोजी भी माइक्रोब्स के बारे में यही कहती है।
  • वैज्ञानिकों ने पाया है कि माइक्रोब को देखने में चमकदार, बहुरंगे और अलग-अलग आकृति व आकार के हैं। वैदिक मरुत गण भी इसी तरह के हैं। वेदों के अनुवाद में ग्रिफि़थ मरुतो को दुश्मनों से लडऩे के लिए, अपने हथियार के साथ देदीप्यमान बहुरंगी पदकों के साथ दर्शाता है।
  • वेदों के अनुसार मरुत गण शंखनाद में भी होते हैं, जो बुरे रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए स्थान को शंख ध्वनि से शुद्ध रखते हैं।
  • मरुत गण आग, शारीरिक घर्षण, विद्युत चिंगारी के दौरान पैदा होते हैं और संचालित होते हैं।
  • यजुर्वेद में कहा गया है कि मरुत गण पकाए गए भोजन का भक्षण करके शीघ्र गति से अपनी संख्या बढ़ाते हैं। इस प्रक्रिया को आज हम किण्वन (फर्मेंटेशन) के नाम से जानते हैं।
  • यजुर्वेद में रुद्र के रूप में मरुत गण हानिकर जीवों को नष्ट करके सीवेज और दूषित पानी का भी प्रबंधन करते हैं। आज भी सीवेज और दूषित पानी का प्रबंधन करने के लिए माइक्रोब का प्रयोग किया जाने लगा है।
  • मरुत गण पृथ्वी पर बादल से बारिश लाने (स्यूडोमोनास सिरिंगे) के द्वारा कृत्रिम बारिश का उत्पादन कर सकते हैं। इस वृष्टि यज्ञ द्वारा इच्छानुसार वर्षा कराई जाती है। आज वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि पृथ्वी पर होने वाली हरियाली में सडऩे वाले पदार्थ में एक सूक्ष्माणु स्यूडोमोनास सिरिंगे होता है जो एक खास तापमान पर आकाश में ऊपर पहुंच जाता है और यही सूक्ष्माणु बादलों को संघनीभूत करके बारिश करवा सकता है।
  • मरुत गण धरती के नीचे तेज आवाज़ पैदा करते हैं। पृथ्वी से उठ रहे शोर से पशु, पक्षी पृथ्वी में भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्व अनुमान लगा लेते हैं। (वेद की इस जानकारी से पृथ्वी में एम्बिएंट नॉइज मानिटरिंग द्वारा बड़े भूकंपों का जल्दी पता लगाने की एक विधि का पता चलता है। आधुनिक विज्ञान में इस पर शोध किया जाना चाहिए।)
  • मरुत गण गौ के द्वारा भूमि की उर्वरकता की रक्षा इस प्रकार करते हैं कि किसी रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार जैविक कृषि में किसी कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं रहती।
  • गौ आधारित कृषि और जीवन शैली से मरुस्थल नहीं बनते। सब स्थान समय पर उचित वर्षा पाते है। कृषि के लिए कृत्रिम सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं रहती। अभी गत पचास वर्षों में एलन सेवोरी द्वारा अफ्रीका में नष्ट हो रहे वन प्रदेशों को गौओं द्वारा पुन: हरा भरा कर के यह सिद्ध किया है कि वैदिक परम्परा में ऊसर भूमि को गौओं द्वारा पुन: हरा भरा करना एक वैज्ञानिक तथ्य है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि वेदों में आधुनिक ही नहीं, अत्याधुनिक विज्ञान भी उपलब्ध है। इनमें उपलब्ध अनेक जानकारियों की खोज आज के विज्ञान ने कर ली है, परंतु अनेक जानकारियों पर अभी और भी शोध किए जाने की आवश्यकता है। यदि हम पुन: पाश्चात्य परम्परा के स्थान पर वैदिक ज्ञान (Vedic knowledge) और जीवनशैली (lifestyle) के आधार पर प्रेरित समाज बना पाएंगे तो आधुनिक जीवन की समस्त भौतिक व्याधियां यथा कैंसर, डायबीटिज़, हृदयरोग इत्यादि दूर की बात होंगी।

लेखक – इं. सुबोध कुमार, इलैक्ट्रीकल इंजीनियर और वेदों के अध्येता

 

 

WHAT'S YOUR REACTION?

  • 1
  • 0
  • 0
  • 0
  • 0
  • 0
  • 0

COMMENTS

राष्ट्रीय

कोरोना संक्रमण अंतिम दौर में, 24 घंटे में सिर्फ 2,503 नए मरीज़ मिले

एस. के. राणा March 15 2022 11758

देश में कोरोना के मामलों को लेकर बड़ी राहत देखने को मिली है। बीते 24 घंटे में कोरोना के सिर्फ 2,503

उत्तर प्रदेश

डाबर ओडोमॉस का मेकिंग इंडिया डेंगू फ्री अभियान शुरू

हुज़ैफ़ा अबरार November 02 2022 14858

इस अभियान के तहत ओडोमॉस 70 शहरों के 20 लाख लोगों तक पहुंचेगा और उन्हें डेंगु और मलेरिया के बारे में

उत्तर प्रदेश

मेदांता हॉस्पिटल में कटे हुए बाजू को जोड़कर युवक को दिया नया जीवन

रंजीव ठाकुर July 20 2022 51178

सौरभ को जब मेदांता हॉस्पिटल लाया गया तो उसका दाहिना हाथ केवल एक नर्व से लटक रहा था। सौरभ के दाएं हाथ

उत्तर प्रदेश

लखनऊ में बढ़ रहा है कोरोना संक्रमण का प्रकोप

हुज़ैफ़ा अबरार June 18 2022 12156

डॉ मनोज अग्रवाल ने बताया कि वायरस से बचाव के लिए मास्क लगाएं। बारी आने पर कोरोना वायरस से बचाव की व

स्वास्थ्य

नाक बंद, सिर दर्द, सर्दी-जुकाम से हैं परेशान, तो अपनाएं ये घरेलू नुस्खे

लेख विभाग December 17 2022 16456

ठंड में चलने वाली हवा कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बनती है। कई बार तो इससे सिर में दर्द तक ह

शिक्षा

BNYS: प्राकृतिक चिकित्सा और योग विज्ञान से स्नातक करके लाखोकमायें

अखण्ड प्रताप सिंह November 05 2021 81977

इस कोर्स को Bachlor In Nautropathy and Yoga sciences या शार्ट में BYNS कहतें हैं। यह  योग और नेचुरोप

उत्तर प्रदेश

बिना इलाज अस्पताल से ना लौटें डेंगू के मरीज: डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक

admin November 02 2022 14056

उपमुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि अस्पताल आने वाला डेंगू पीड़ित कोई भी मरीज बगैर उपचार

राष्ट्रीय

दुनियाभर में बढ़ रहा संक्रमितों का आंकड़ा।

एस. के. राणा July 19 2021 22278

दुनियाभर में संक्रमितों का आंकड़ा बढ़कर 18.99 करोड़ से अधिक हो गया है जबकि‍ अब तक इस महामारी से 40.8

अंतर्राष्ट्रीय

अमेरिका में कोविड पब्लिक ‘हेल्थ इमरजेंसी’ को खत्म करने की तैयारी

हे.जा.स. February 02 2023 13032

व्हाइट हाउस ने घोषणा की है कि कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए देश में बड़े पैमाने पर महामार

राष्ट्रीय

राजधानी के अस्पताल में खुला स्किन बैंक

आरती तिवारी June 22 2023 22089

दिल्ली का सफदरगंज अस्पताल में स्किन बैंक उद्घाटन किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट के मुताब

Login Panel