लखनऊ। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत अब गर्भवती के टीबी प्रबन्धन की पूरी तैयारी है। इसके तहत गर्भवती के प्रसव पूर्व जाँच में दो सप्ताह से खांसी व बुखार रहना, लगातार वजन कम होना और रात में पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं तो उनकी टीबी की जाँच करायी जाएगी।
यह निर्णय ऐसे वक्त में लिया गया है जब नेशनल लेवल वर्चुअल प्रशिक्षण (national level virtual training) में यह बात निकलकर आई है कि उत्तर प्रदेश में हर साल करीब 8000 गर्भवती में टीबी के लक्षण पाए जाते हैं (8000 pregnant women are found to have symptoms of TB)। इन गर्भवती की समय से टीबी की जाँच और इलाज से गर्भवती के साथ ही गर्भस्थ शिशु को भी सुरक्षित बनाया जा सकेगा। इससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर (maternal and child mortality rate) में भी कमी लायी जा सकेगी।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश (NHM UP) की मिशन निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने इस सम्बन्ध में प्रदेश के सभी जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को आवश्यक निर्देश भी जारी किये हैं। इसके तहत प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं (15 से 49 वर्ष) के लिए सामूहिक टीबी प्रबन्धन का फ्रेम वर्क (TB management) इसी साल फरवरी में तैयार किया गया था। इसी क्रम में सूबे के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों, स्वास्थ्य उप केन्द्रों, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर गर्भवती की सिम्टोमेटिक स्क्रीनिंग (symptomatic screening of pregnant) करायी जाए।
सिम्टोमेटिक स्क्रीनिंग में जिन गर्भवती में टीबी के लक्षण (TB symptoms in pregnant) नजर आयें उनको टीबी जांच केन्द्रों पर अवश्य रेफर किया जाए। जाँच में जिन गर्भवती में टीबी की पुष्टि होती है उनका समय से उपचार शुरू किया जाएगा ताकि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाया जा सके। निर्देश के क्रम में जनपद स्तर पर किये जाने वाले प्रबन्धन के बारे में कहा गया है कि जनपद स्तरीय गर्भवती में टीबी प्रबन्धन के लिए सहयोगात्मक ढांचा तैयार किया जाए।
इसके लिए जनपद के अधिकारियों और कर्मचारियों का क्षमता वर्धन किया जाए और मातृत्व शिशु सुरक्षा कार्ड (MCP Card) पर स्क्रीनिंग लक्षणों को दर्ज किया जाए । इस सारी प्रक्रिया की समीक्षा और अनुश्रवण के लिए जरूरी सूचकांक एचएमआईएस पोर्टल (HMIS) और निक्षय पोर्टल के आंकड़ों के आधार पर तय किये गए हैं।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ सुजाता देव (Sujata Dev, gynecologist and obstetrician at KGMU) का कहना है कि गर्भवती की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, ऐसे में उनके संक्रामक बीमारियों की चपेट में आने की गुंजाइश ज्यादा होती है। उच्च जोखिम गर्भावस्था (HRP) वाली महिलाओं को तो खासतौर पर टीबी के संक्रमण से सुरक्षित बनाने की जरूरत है।
इसलिए गर्भवती में अगर टीबी के लक्षण नजर आते हैं तो समय से जाँच और उपचार शुरू करने से जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि गर्भवती चार जरूरी प्रसव पूर्व जांच जरूर कराएँ और गर्भावस्था के दौरान अपने खानपान का भी पूरा ख्याल रखें। आयरन और कैल्शियम की जरूरी गोलियों का भी सेवन जरूर करें। गर्भवती को छाती रोग विशेषज्ञ से जांच कराकर टीबी का इलाज जारी रखना चाहिए।
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