लखनऊ। नेत्रदान के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने और लोगो को अपनी मौत के बाद नेत्रदान को प्रोत्साहित करने के लिए पूरे देश में ऐंटोड फार्मास्युटिकल्स विशेष अभियान चला रहा है। इसके लिए ऐंटोड फार्मास्युटिकल्स देश भर के प्रमुख नेत्र रोग विशेषज्ञों के साथ साझेदारी कर रहा है। सरकार द्वार भी हर साल 25 से 8 सितम्बर तक पंद्रह दिवसीय राष्ट्रीय नेत्रदान दिवस मनाया जाता है।
भारत में लगभग 68 लाख लोग कम से कम एक आंख में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस (blindness) से पीडि़त हैं और इनमें से 10 लाख लोग दोनों आंखों से अंधे हैं। हर साल देश में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीडि़त लगभग 75,000 लोग दुबारा अपनी देखने की क्षमता को पाने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इसकी वजह है कि देश में लोगों द्वारा कॉर्निया (cornea) कम दान दिया जाता है। आँख की बीमारियों से पीडि़त एक लाख मरीजों में से केवल 25,000 ही कार्निया ट्रांसप्लांटेशन (transplantation) कराने में सक्षम हो पाते हैं। दान की हुई कार्निया की कमी देश में एक गंभीर चिंता का विषय है।
प्रत्येक भारतीय को अपनी आंखें दान (eye donation) करने और वास्तविक बदलाव लाने को अपना परम कर्तव्य समझाने के लिए ऐंटोड ने इस अभियान (campaign) को चलाया है और इसको pledgemyeyes नाम दिया है। इस पहल का लक्ष्य देशभर में 20 मिलियन से अधिक लोगों को नेत्रदान से लाभ्वान्वित करना है। इस अभियान में कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ने भी इस नेक काम के लिए अपना पूरा समर्थन देने का संकल्प लिया है।
इसके अलावा भारत (India) में अंधेपन से पीडि़त 10 मिलियन लोगों में से दो मिलियन से ज्यादा लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से प्रभावित हैं और उनमें से 60प्रतिशत 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं। देश के कुछ प्रदेश नेत्रदान के मामले में भी पीछे हैं। महाराष्ट्र 74 नेत्र बैंकों के साथ पहले नम्बर पर है। कुछ आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र ने मार्च 2015 से जुलाई 2018 तक 23,311 नेत्रदान को अंजाम दिया है। इस दौरान तेलंगाना (दो नेत्र बैंक, 27,725 दान हुए), तमिलनाडु (38 नेत्र बैंक, 37,898 दान हुए) और गुजरात (29 नेत्र बैंक, 26,759 दान हुए ) हैं। पश्चिम बंगाल में 1865 और उड़ीसा में 1263 नेत्रदान की तुलना में असम में 2017-2018 के दौरान केवल 158 नेत्रदान ही हुए।
ऐंटोड (ENTOD) फार्मास्युटिकल्स के सीइओ (CEO) निखिल के मासुरकर ने कहा, "भारत में अंधापन होने का प्रमुख कारण कार्नियल ब्लाइंडनेस है लेकिन अगर कार्नियल ट्रान्सप्लान्टेशन किया जाए तो इस तरह के अंधेपन को रोका जा सकता है किन्तु अफ़सोस की बात यह है कि भारत में दान की हुई कार्निया की बहुत ज्यादा कमी है। इसलिए नेत्रदान के बारे में जागरूकता और नेत्रदान को परम कर्तव्य समझने की इच्छा होना समय की जरुरत बन गया है। राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के अवसर पर हम देश भर में नेत्रदान जागरूकता अभियान चलाएंगे। इसके लिए हमने आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया (EBAI) के सहयोग से एक ऑनलाइन वेबसाइट https://www.pledgemyeyes.org/ भी बनाई है। इस वेबसाइट के जरिए, कोई भी बिना किसी परेशानी के नेत्रदान के कर्तव्य को निभा सकता है और एक अंधे व्यक्ति को फिर से दुनिया देखने में मदद कर सकता है।"
केजीएमयू, यूपी सीईबी, डिपार्टमेंट ऑफ़ ऑप्थल्मोलोग्य के एसोसिएट प्रोफेसर और पूर्व डायरेक्टर डॉ अरुण के शर्मा का कहना है कि “लखनऊ, उत्तर प्रदेश में, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के नेत्र विज्ञान विभाग ने एक वर्ष में 1000 कॉर्नियल प्रत्यारोपण करने का मील का पत्थर हासिल किया। अक्टूबर 2021 तक, नेत्र विज्ञान विभाग के तहत संचालित केजीएमयू के नेत्र बैंक ने महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद 1035 प्रत्यारोपण किए। केजीएमयू यूपी सीईबी द्वारा एक और मील का पत्थर नवंबर 2020 में गॉट सेक्टर में भारत में उच्चतम प्रत्यारोपण की सुविधा प्रदान करता है। डेटा से यह भी पता चलता है कि विभाग द्वारा 2016 में 20 से 2017 में लगभग 367, 2018 में लगभग 707 और 2019 में लगभग 767 तक कॉर्नियल प्रत्यारोपण में लगातार वृद्धि हुई है। यह कॉर्निया पुनर्प्राप्ति और प्रत्यारोपण में बढ़ती जागरूकता और दक्षता के कारण संभव हुआ है।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए प्रोत्साहित करने में उचित जागरूकता एक लंबा रास्ता तय कर सकती है। ENTOD द्वारा PledgeMy Eyes पहल के समान अगर हमें देश में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के भारी बोझ से निपटना है तो हमें देश भर में इस तरह के और अधिक जन जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है”।
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