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डिप्रेशन और आत्महत्या को रोका जा सकता है: डॉ सुमित्रा अग्रवाल  

युवाओ की जि़ंदगी में आगे बढऩे का दबाव होता है, पढ़ाई का दबाव, अच्छी जॉब का दबाव, शादी का दबाव, आर्थिक समस्या का दबाव। ऐसी बहुत समस्याएं युवाओ की जि़ंदगी में होती है। चिंताओं से ही तनाव बढ़ता है और तनाव से ही मन की परिस्थिति बेहद खराब हो जाती है।

लेख विभाग
December 05 2022 Updated: December 05 2022 15:31
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डिप्रेशन और आत्महत्या को रोका जा सकता है: डॉ सुमित्रा अग्रवाल   प्रतीकात्मक चित्र

मौजूदा समय में ख़ास तौर पर युवा पीढ़ी में डिप्रेशन की समस्याएं कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। ख़ास तौर पर 18 से 36  साल के युवाओं में आत्महत्या का ग्राफ बढ़ रहा जो चिंता का विषय है। वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 8 लाख से भी ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते है। इन 8 लाख में 35000 लोग भारतीय है। हर 5 में से एक इंसान डिप्रेशन का मरीज होता है।

डिप्रेशन के कारण - Reasons for depression
युवाओ की जि़ंदगी में आगे बढऩे का दबाव होता है, पढ़ाई का दबाव, अच्छी जॉब का दबाव, शादी का दबाव, आर्थिक समस्या का दबाव। ऐसी बहुत समस्याएं युवाओ की जि़ंदगी में होती है। चिंताओं (Worries) से ही तनाव (stress) बढ़ता है और तनाव से ही मन की परिस्थिति बेहद खराब हो जाती है।

डिप्रेशन के लक्षण - Symptoms of depression

  • सिर दर्द
  • गुमसुम रहना, किसी से बात नहीं करना
  • चिड़चिड़ापन
  • किसी भी चीज में मन न लगना
  • सारा दिन नकरात्मकता विचार में डूबे रहना
  • जि़ंदगी जीने की जज्बा का कम होना
  • वजन बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है।
  • अधिक नहाना या बिलकुल नहीं नहाना।
  • अनिद्रा या बहुत अधिक सोना।
  • भूखे रहना या अत्यधिक खाना।

इन लक्षणों (symptoms) को अनदेखा नहीं करना चाहिए और तुरंत अच्छे डॉक्टर से मिलना चाहिएं। जब डॉक्टर (doctors) काउंसलिंग करते हैं  तब आधी से भी ज्यादा नकरात्मक ऊर्जा (negative energy) कम होने लगती है। समस्याएं का कारण पता करके उस समस्या का हल निकालना लाभदायक होता है।

महिलाओं (women) की अपेक्षा पुरुषो में डिप्रेशन और आत्महत्या (suicide) के केस ज्यादा देखे गए है। एक शोध में पता चला है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष डिप्रेशन के शिकार ज्यादा होते है। औरतें अपनी बातें आमतौर पर अपनी मां या दोस्त से कह कर अपना मन हल्का कर लेती है और कई बार रोकर भी अपने मन की व्यथा को व्यक्त कर लेती है।

पुरुष अपनी बातो को किसी के सामने बयां नहीं करते - Men do not tell their words in front of anyone

ऐसी ही एक कहानी है महान साइंटिस्ट की वे अपने सुसाइड नोट में चौकाने वाली बात लिखे थे। साइंटिस्ट ( Scientist) मन में ही सोचते है और लिखते है की वे आत्महत्या करेंगे और सुसाइड पॉइंट तक जाने में अगर कोई इंसान उन्हें रोक लेगा और उनकी बाते सुनेगा तब वह अपना निर्णय बदल देंगे और आत्महत्या नहीं करेंगे साइंटिस्ट की जिंदगी बचाई जा सकती थी, न केवल साइंटिस्ट बल्कि हर सुसाइड करने वाले की जिंदगी बचाई जा सकती थी। 

मनुष्य का एक स्वभाव है कि वो सामने वाले को हमेशा अपने मापदंड पर आकता  है जो की सही नहीं है। हर व्यक्ति स्वतंत्र है और अपने जीवन के क्रम को स्वयं जी रहे है किसी भी दो लोगो की जीवन एक सामान नहीं है। अपने घरों में भी हर व्यक्ति की जीवनचर्या (lifestyle) अलग है, सोच-विचार और जीने का ढंग अलग है। आत्महत्या से लोगो को बचाने के लिए सब को चेष्टा करनी होगी और निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना होगा।

1. कोई भी मरना नहीं चाहता, बचा लिए जाने पर हर सुसाइड करने वाले का यही कहना है कि वे मरना नहीं चाहते थे पर मज़बूर होकर ऐसा कठोर कदम उठाये थे।

2. अपने प्रियजनों से संवेदनात्मक (empathy) साथ व्यवहार करें। खासतौर से पुरुषो के साथ स्नेह, प्रेम और सहानभूति (sympathy) से व्यवहार करें। जो पुरुष कम बोलते है उनके साथ खासतौर पर प्रेमपूर्वक, सकारात्मक बातें करे क्योंकि यही वह लोग होते है जो अपने कष्टों को बता नहीं पातें है और परिवार के होते हुए भी एकांकी का जीवन बिताते बिताते एक दिन आवेश में गलत कदम उठाते है।

3. जिनके साथ रहते है अगर अचानक वह ज्यादा सोने लगे, या कम सोने लगे, बहुत ज्यादा खाने लगे या खाना छोड़ दे, घंटो नहाने लगे या नहाना बंदकर दे, चुपचाप अकेले में रहने लगे (living alone), उनके स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए और उनसे बात करनी चाहिए।

4. कुछ भी सही गलत नहीं होता, ये सिर्फ दृष्टिकोण (perspective) की बात है। अपने मापदण्ड पर लोगो को सही गलत ठहरना बंद किया जाना चाहिए।

5. प्रेम और सद्भावना ( love and goodwill) से मन को जिता जा सकता है और डिप्रेशन को भी और फिर आत्महत्या जैसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं रह जायेगा।

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