घुटनों के दर्द से देश दुनिया की बहुत बड़ी आबादी प्रभावित है और वर्तमान में इस लाइफस्टाइल डिज़ीज़ ने लगभग हर घर में घर कर लिया है। अब घुटनों के दर्द से निजात दिलाने वाले हाइलूरोनिक एसिड इंजेक्शन के प्रभाव भी सवालिया निशान के घेरे में है।
घुटनों में ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis) एक पुरानी बीमारी है जिसमें जोड़ो में सूजन (swelling) और दर्द (pain) रहता है। लगभग 560 मिलीयन लोग पूरी दुनिया में इससे प्रभावित हैं। 70 के दशक से ऑस्टियोआर्थराइटिस से निदान हेतु विस्कोसुप्लेमेंटेशन (Viscosupplementation) का उपयोग किया जाता है लेकिन अब यह सवालों के घेरे में आ गया है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (British Medical Journal) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इससे घुटनों के दर्द पर कोई फर्क नहीं पड़ता है बल्कि इससे नुकसान होने का खतरा बना रहता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एण्ड केयर एक्सीलेंस, इंग्लैंड (National Institute for Health and Care Excellence, England) द्वारा इसके प्रयोग को लेकर चेतावनी दी गई है जबकि अमेरिकी देशों में हेल्थकेयर सेक्टर अभी भी इसका प्रयोग कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं (International researchers) ने 1970 से अब तक किए गए अध्ययनों की समीक्षा करने का निर्णय लिया था।
इस शोध में 21163 ऑस्टियोआर्थराइटिस रोगियों (osteoarthritis patients) पर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में देखा गया कि फेक ट्रीटमेंट (fake treatment) जिसे प्लेसिबो (placebo) कहते हैं और विस्कोसुप्लेमेंटेशन के बीच कितना अंतर है। इस अध्ययन में पाया गया कि इनके बीच ज्यादा अंतर नहीं है, अर्थात यह दवा भी एक तरह से फेक ट्रीटमेंट का हिस्सा है। इस अध्ययन से यह भी पता चला कि सन 2009 से इस बात प्रमाणित हो जाती है कि यह इंजेक्शन घुटनों के दर्द (knee pain) पर प्रभाव नहीं डाल रहा है।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि ऑस्टियोआर्थराइटिस के निदान में विस्कोसुप्लेमेंटेशन का उपयोग कारगर नहीं और फेक ट्रीटमेंट की तरह इससे नैतिक चिंताएं (ethical concerns) बढ़ रही है।
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