लखनऊ। मेदांता सुपरस्पेशलिटी अस्पताल ने 101 किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक पूरे किए हैं। मेदांता अस्पताल की किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट की शुरुआत 2020 में मेदांता सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, लखनऊ के निदेशक डॉ राकेश कपूर और नेफ्रोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ आरके शर्मा के मार्गदर्शन में की गई थी।
डॉ राकेश कपूर (Dr Rakesh Kapoor) ने कहा, मेदांता (Medanta) इंस्टीट्यूट ऑफ किडनी एंड यूरोलॉजी, किडनी, ब्लैडर और प्रोस्टेट ग्लैंड सहित मूत्र प्रणाली के रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए एक अनूठा विभाग है, जहां इन सभी रोगों का निदान होता है। मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक विश्व स्तरीय केंद्र के रूप में, हम यूरोलॉजी (Urology) और नेफ्रोलॉजी (Nephrology) के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों द्वारा अपने रोगियों को विभिन्न किडनी विकारों, कैंसर और सौम्य मूत्र संबंधी रोगों के लिए शीर्ष उपचार प्रदान करने का निरंतर प्रयास करते हैं।
हमारा संस्थान दुनिया के प्रमुख केंद्रों में से एक है, जिसमें न्यूनतम इनवेसिव सर्जिकल तकनीकों का उपयोग किया जाता है। डायलिसिस (Dialysis), प्रत्यारोपण और क्रोनिक किडनी रोगों के लिए चौबीसों घंटे सेवाओं के साथ यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी के सभी क्षेत्रों में विश्व स्तरीय देखभाल प्रदान करता है। हर महीने करीब 1,600 डायलिसिस प्रक्रियाएं की जा रही हैं।
पिछले वर्षों में इस विभाग द्वारा 101 किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplants) किए गए हैं। जिसमें 15 साल के किशोर से लेकर 64 साल के बुजुर्ग तक का किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया है। साथ ही अस्पताल ने निम्न आय वर्ग के कई मरीजों को इलाज के लिए उन्हें सीएम राहत कोष से सहायता प्राप्त करने में भी मदद की है।
डॉ आरके शर्मा (Dr RK Sharma) ने एबीओ ट्रांसप्लांट (ABO transplant) के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, एबीओ इनकंपैटिबल विधि में ए-बी-ओ का मतलब ब्लड गुप से है। इस तकनीक से मरीज और डोनर के अलग-अलग ब्लड ग्रुप के होने पर भी किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकती है। खास बात यह है कि किडनी ट्रांसप्लांट से पहले मरीज व डोनर के एंटीबॉडीज का लेवल मानक के अनुरूप होना चाहिए। इसे डोनर के अनुरूप करने में दस दिन का समय लगता है। प्रतिदिन मरीज की बॉडी में प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से एंटीबॉडीज की मात्रा घटाई जाती है।
इसके साथ ही विधि सम्मत स्वैप डोनेशन (swap donation) प्रक्रिया से एक परिवार से दूसरे परिवार में भी किडनी ट्रांसप्लांट हो सकता है जिससे ब्लड मिसमैच (blood mismatch) की समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
किडनी खराब (kidney failure) होने से बचने के उपायों के बारे में बात करते हुए डॉ शर्मा ने कहा, 'आजकल लोगों की जीवनशैली बिगड़ती जा रही है।लोग खानपान पर ध्यान नहीं देते हैं, वहीं मौजूदा समय में डायबिटीज के सबसे ज्यादा केस अब हमारे देश में हैं। लंबे समय तक डायबिटीज होने से हाइपरटेंशन और मोटापा हो जाता है जिससे गुर्दे को खराब हो जाते हैं। हर व्यक्ति को हर साल स्वास्थ्य जांच करवानी चाहिए ताकि शरीर में कोई बीमारी विकसित हो रही हो तो उसका समय रहते निदान किया जा सके। आज कई लोग लंबे समय तक दर्द निवारक दवाओं का इस्तेमाल करते रहते हैं। इससे किडनी फेल भी हो जाती है।
मोटापा कम करने के लिए बाजार में कई दवाएं उपलब्ध हैं, इनका किडनी पर भी बुरा असर पड़ता है और किडनी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। गुर्दे की क्षति, एक बार हो जाने के बाद, इसे उलट नहीं किया जा सकता है। अंतिम चरण में गुर्दे की बीमारी या गुर्दे की विफलता तब होती है जब हमारे गुर्दे आपके शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए काम नहीं करते हैं। जब ऐसा होता है, तो मरीज को जीवित रहने के लिए डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है।
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