भारत में हृदय रोग बेहद आम हैं। 1985 से 2015 के बीच हृदय रोग से होने वाली मौतों की संख्या दोगुनी हो चुकी हैं। 2010 में कोरोनरी हृदय रोग के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 20 लाख से ज़्यादा हो गई। हृदय रोग महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम प्रभावित करता है लेकिन जैसे हीं महिलाएं मीनोपॉज (menopause) की अवस्था में पहुँचती हैं वैसे हीं हृदय रोग भी उनमें अपना जगह बनाने लगता है। वैसे भी आयु के साथ हृदय रोग (heart disease) का खतरा बढ़ता जाता है, लेकिन यहाँ सवाल यह है कि महिलाएं क्यों?
पुरुष और महिला में हृदय रोग का प्रसार - Prevalence of heart disease in men and women
इस संबंध में हुए कई अध्ययनों से पता चलता है कि आमतौर पर पुरुष में कम उम्र में सीवीडी (CVD) विकसित होता है और महिलाओं की तुलना में कोरोनरी हृदय रोग (CHD) का खतरा उन्हें अधिक होता है।
अंतर क्यों - Why the difference
मीनोपॉज क्या है - What is menopause
इसे महिलाओं के जीवन में एक ऐसे चरण के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां से उनका मासिक धर्म (menstruation) आना बंद हो जाता है। जब किसी महिला को लगातार 12 महीने के बीच कोई मासिक धर्म नहीं आता तब मीनोपॉज होना माना जाता है। महिलाओं के जीवन में ये चक्र 40 से 60 साल के उम्र में आता है।
मीनोपॉज और हृदय रोग के बीच संबंध - link between menopause and heart diseas
विभिन्न अध्ययनों के अनुसार 50 से पहले मीनोपॉज तक पहुंचने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा बढ़ गया है।
जो महिलाएं समय से पहले मीनोपॉज का अनुभव करती हैं अर्थात जिनको 40 साल से पहले मीनोपॉज हो जाता है, उन्हें अन्य महिलाओं की तुलना में 60 वर्ष से पहले नॉन -फेटल कार्डीओवैस्क्यलर (nonfatal cardiovascular disease) रोग का जोखिम रहता है।
हृदय रोग के अन्यकारक
मीनोपॉज के आसपास महिलाओं की फिजियोलॉजी - Physiology of women around menopause
हम ये जानते हैं कि महिला का शरीर पोस्ट-मेनोपॉज कम एस्ट्रोजन बनाता है। इसके साथ ही एस्ट्राडियोल (estradiol) और एस्ट्रोन (estrone) का संचारण स्तर भी नीचे चला जाता है। ये दो एस्ट्रोजन बायप्रोडक्ट्स लिवर के माध्यम से वसा के मेटाबोलिज्म (metabolism) को उत्प्रेरित करने के लिए होते हैं।
एक बार जब इनका स्तर कम हो जाता है, तो महिलाएं शरीर में वसा संरचना और वैस्क्यलर रीमॉडेलिंग में प्रतिकूल बदलाव का अनुभव करती हैं जो सीवीडी के जोखिम को भी बढ़ाता है। कम एस्ट्रोजन का स्तर ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (luteinizing hormone) और फॉलिसल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (follicle stimulating hormone) के उच्च स्तर को भी जन्म देता है। यह पूरी प्रक्रिया खराब वसा के उच्च स्तर (total cholesterol, LDL levels) को उत्तेजित करती है और अच्छे (एचडीएल) को कम करती है।
मीनोपॉज आपकी कमर परिधि (waist circumference) को बढ़ाने के साथ-साथ आपके बॉडी मास इंडेक्स (body mass index) को भी प्रभावित करती है।
मीनोपॉज तो आना हीं है, ऐसे में क्या करें - What to do
आप मीनोपॉज को रोक तो नहीं सकते, लेकिन फिर भी आप बहुत कुछ कर सकते हैं।
उचित आहार (कैल्शियम, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर) आपको हार्मोनल परिवर्तनों को दूर करने में मदद करेगा
इसमें फाइटोएस्ट्रोजन को शामिल करें। जैसे –
ये मीनोपॉज के कारण, लक्षणों और समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं।
किसी भी तरह की फिजिकल एक्टिविटी में शामिल होना आपके लिए बेहद जरूरी है। जैसे –
यदि ये संभव नहीं हैं तो तेज चलना कभी कोई नुकसान नहीं करता।
कार्डिएक केयर- अपने प्रसूति रोग विशेषज्ञ, चिकित्सक या हृदय रोग विशेषज्ञ से मिलें। अपने लक्षणों पर चर्चा करें। यदि आवश्यक हो तो हार्मोनल थेरेपी शुरू करें। जितनी बार संभव हो डॉक्टर से मिलें। डॉक्टरों की टीम आपकी देखभाल के लिए तत्पर है।
मैं बहुत सारी महिला हृदय रोगियों से मिलता हूँ। उनमें से अधिकांश लोग अपने हृदय स्वास्थ्य के बारे में भ्रमित हैं और उनमें इस विषय पर स्पष्टता की कमी है। हम इस संबंध में जितना बात करेंगे उतना अधिक जानेंगे और हम उतने हीं एक स्वस्थ मीनोपॉज के करीब होंगे। अपने शरीर और हृदय के परिवर्तनों से अवगत रहें। याद रखें; मदद मांगने के लिए कभी शर्मिंदा न हों।
लेखक - डॉ. हेमंत मदान (प्रो), डायरेक्टर और सीनियर कंसलटेंट – कार्डियोलॉजी – अडल्ट, कार्डियोलॉजी – पीडिऐट्रिक | धर्मशीला नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, दिल्ली और नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम
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