दुनियाभर में सालाना लाखों लोगों को मानव अंगों की जरूरत पड़ती है, लेकिन इनमें से 35 फीसदी मरीज अंग का इंतजार करते-करते मर जाते हैं। इन चुनौतियों का सामना करते हुए अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार मानव शरीर में सुअर की किडनी प्रत्यारोपित करने का सफल परीक्षण कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
किडनी ने यूरिन बनाने समेत अन्य अवशिष्ट पदार्थ को छानने का काम ठीक से किया और कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा। इस उपलब्धि से अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में पशु अंग इस्तेमाल (जेनोट्रांसप्लांट) करने की दिशा में एक लंबी छलांग लगाई है। इससे भविष्य में मानव की जान बचाने के लिए जरूरी अंगों की कमी दूर होने की उम्मीद जगी है।
किडनी प्रत्यारोपण का परीक्षण न्यूयॉर्क स्थित एलवाईयू लांगोन हेल्थ में किया गया। इस दौरान एक दिमागी रूप से मृत महिला के शरीर को वेंटीलेटर पर रखकर कडनी को बाहर से जोड़ा गया। दो दिन तक परीक्षण में पाया गया कि किडनी अच्छे तरीके से काम कर रही है। हालांकि अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने मनुष्यों में सुअर के अंगों का ट्रांसप्लांट शुरू करने से पहले और रिपोर्ट मांगी है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग का कमाल:
इस सफलता में जेनेटिक इंजीनियरिंग का बड़ा योगदान है। जिस सुअर की किडनी लगाई गई, उसके जीन में पहले से ही एडिटिंग कर दी गई थी। इसके कारण किडनी का मानव शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा रहा है। सुअर की कोशिकाओं में एक खास तरह की शुगर (अल्फा-गल) होती है,जो मानव में नहीं पाई जाती है। इसलिए इसके पहले जब भी सुअर की किडनी इंसान में लगाने की कोशिश की गई, तो तुरंत प्रतिकूल रिएक्शन देखने को मिला। लेकिन इस बार जीन एडिटिंग के जरिये सुअर की कोशिकाओं से उस शुगर को पहले ही निकाल दिया गया था।
पशु अंग के इस्तेमाल का प्रयास पुराना :
मानव शरीर में पशु अंगों के इस्तेमाल का प्रयास 300 साल से अधिक पुराना है। 17वीं शताब्दी में सबसे पहले पशु के खून को ट्रांसफ्यूजन के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास किया गया। अब तक मानव में बंदर से लेकर चिंपांजी जैसे एप के अंगों के इस्तेमाल का प्रयास किया जा चुका है। मानव में पशु अंग प्रत्यारोपित करने की पहली सफलता 1984 में मिली, जब ‘बेबी फे’ नामक एक अमेरिकी नवजात बच्ची में बैबून (बंदर) का दिल लगाया गया। हालांकि एक महीने में उसकी मौत हो गई।
सुअर के वाल्व-त्वचा का पहले से इस्तेमाल :
मनुष्यों में सुअर के दिल के वाल्व का दशकों से सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा खून पतला करने वाली दवा हिपैरिन भी सुअर की आंत से तैयार की जाती है। इसी तरह इसका चमड़ा भी जलने की स्थिति में इस्तेमाल किया जाता है। चीन के चिकित्सक सुअर का कार्निया आंख की रोशनी ठीक करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
सालाना पांच लाख भारतीयों को मानव अंग की जरूरत:
यूनाइटेड थेरेप्यूटिक्स के सीईओ मार्टिन रोथब्लाट ने कहा-इस सफलता से मनुष्यों में आने वाले दिनों में सुअर की किडनी धड़ल्ले से प्रत्यारोपित करने की उम्मीद जगी है। इससे वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों की जान बचाई जा सकेगी।
अकेले भारत में हर साल पांच लाख लोगों को मानव अंग की होती जरूरत होती है, जिनमें डेढ़ से दो लाख किडनी मरीज होते हैं। लेकिन केवल आठ हजार लोगों को ही किडनी मिल पाती है। इसी तरह अमेरिका में 1.07 लाख लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है, इनमें से 90 हजार मरीजों को किडनी की जरूरत है। लेकिन अमेरिका में लंबे इंतजार के कारण हर दिन 12 लोगों की मौत हो जा रही है।
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