लखनऊ। देश में लिविंग डोनर की कमी होने का खामियाजा बहुत से मरीजों को भुगतना पड रहा है। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष 40 से 50 हजार लिवर के मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। लेकिन स्वस्थ लिविंग डोनर या कैडेवर से स्वस्थ लिवर न मिल पाने के चलते जरूरत के हिसाब से मुश्किल से 10 फीसदी मरीजों का ही ट्रांसप्लांट संभव हो पाता है। देश में आवश्यकता के मुकाबले महज 10 फीसदी लोगों का समय से ट्रांसप्लांट हो पाता है।
हेल्थ जागरण ने अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के कंसलटेंट, लीवर ट्रांसप्लांट एंड एचपीबी सर्जरीज, डॉ आशीष कुमार मिश्र से लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर खास बातचीत की।
हेल्थ जागरण - लिवर ट्रांसप्लांट जरूरत कब होती है?
डॉ आशीष कुमार मिश्र - शराब के सेवन की अधिकता, डायबिटीज और मोटापे की बढ़ती प्रवृति से न केवल लिवर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है बल्कि स्वस्थ लिविंग डोनर भी मिलने में मुश्किलें आती है। लिवर सिरोसिस भी बड़ा कारण होता है। लिवर सिरोसिस की वजह से ट्रांसप्लांट की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। लिवर सिरोसिस कई कारणों से होता है, जिसमें मुख्यत: खानपान में लापरवाही या कोई गम्भीर बीमारी शामिल है।
हेल्थ जागरण - लिविंग डोनर मिलने में क्यों दिक्क़ते आती है?
डॉ आशीष कुमार मिश्र - एक तो अनेक भ्रांतियां हैं। कई बार लिविंग डोनर को भी कुछ समय तक मेडिकल सुपरविजन में रखना पड़ता है ताकि ट्रांप्लान्ट के लिए उसका लिवर पूरी तरह स्वस्थ हो जाए। लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट जीवित व्यक्ति या रिश्तेदार का लिवर का लगभग एक तिहाई हिस्सा निकालकर मरीज के शरीर मे ट्रांसप्लांट किया जाता है। डोनर का लिवर महज कुछ महीनों में वापस अपने वास्तविक आकार में वृद्धि कर जाता है। डोनर के शरीर पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, केवल कुछ समय तक डॉक्टरों द्वारा बताई गई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। लिवर डोनेट करने को लेकर समाज मे कई भ्रांतियां हैं जिसके कारण लिवर डोनर मिलने में कई बार दिक्कतें आती हैं। लिविंग डोनर के लिए लिवर डोनेट करना बिल्कुल भी हानिकारक नही है, 4 से 6 हफ्ते में ही लिवर अपने वास्तविक आकार में दोबारा विकसित हो जाता है।"
हेल्थ जागरण - मरीज और डोनर को कितने समय तक मेडिकल आब्जर्वेशन रखा जाता है?
डॉ आशीष कुमार मिश्र - अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में 45 वर्षीय विकट सिंह का सफल लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। वे बेहद गंभीर हालत में अपोलोमेडिक्स लाये गए थे। वे लगभग बेहोशी की हालत में थे । लिवर इतना खराब हो चुका था कि उसका असर उनके दिमाग, फेफड़े और किडनी पर पड़ने लगा था। इस कंडीशन को मेडिकल भाषा में एन्सेफ्लोपैथी कहा जाता है। वे काफी जगह इलाज करवा चुके थे लेकिन हालत में सुधार नहीं आया बल्कि स्थिति और बिगड़ती चली गईं।"
डॉ मिश्रा ने बताया कि उनका बेटा लिवर डोनेट करने को तैयार हुआ। इसके बाद हमने ट्रांसप्लांट करने के लिए बेटे के लिवर से 60 से 65 हिस्से का लोब लिया। मरीज के ट्रांसप्लांट की सर्जरी 16 से 17 घंटे चली थी, वहीं डोनर की सर्जरी 6 से 7 घंटे चली। ट्रांसप्लांट के बाद मरीज और डोनर दोनों को ऑब्जर्वेशन में रखा गया।
हेल्थ जागरण - लिवर को स्वस्थ रखने की लिए क्या करना चाहिए?
डॉ आशीष कुमार मिश्र - शराब के सेवन की अधिकता, डायबिटीज और मोटापे की बढ़ती प्रवृति से लिवर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मैदे से बनी चीजों के सेवन से भी लिवर प्रभावित होता है।
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