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भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रगति की है, यह प्रगति निजी क्षेत्र तक सीमित है: डब्ल्यूएचओ

WHO ने जो रिपोर्ट जारी की है, वह सरकारी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा सवालिया निशान है। संगठन यह मानता है कि सरकारी क्षेत्र में जो इलाज की प्रक्रिया है, वह ठीक नहीं है और प्राइवेट सेक्टर का इलाज बेहद महंगा है।

विशेष संवाददाता
April 06 2022 Updated: April 06 2022 08:49
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भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रगति की है, यह प्रगति निजी क्षेत्र तक सीमित है: डब्ल्यूएचओ प्रतीकात्मक

नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नई रिपोर्ट में भारत के हेल्थ सेक्टर में हुई तरक्की को रेखांकित किया गया है। संगठन ने माना कि भारत ने हेल्थ सेक्टर में काफी तरक्की की है, हालांकि यह तरक्की सिर्फ प्राइवेट सेक्टर (private sector) में हुई है। सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र (government or public sector) में अभी काफी सुधार की गुंजाइश है।

यहां जारी अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अगर बीते दो सालों की बात करें तो यह देखा गया है कि भारत कोरोना (Corona) का मुकाबला तो कर रहा है पर उसे मौसमी बीमारियों (seasonal diseases) से भी जुझना पड़ रहा है। देश भर में हेल्थ सेक्टर (health sector) में किये गए कार्यों को गौर से देखें तो उसमें एक असामनता दिखती है। किसी राज्य ने बढ़िया काम किया तो कोई राज्य कुछ न कर सका। सरकारी क्षेत्र में सुविधाएं काफी कम हैं। निजी क्षेत्र में सुविधाएं तो हैं पर यहां इलाज (treatment) काफी महंगा (expensive) है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि भारत में भारतीयों को बहुत मुश्किल से गुणवत्तापूर्ण इलाज मिलता है।

हृदय रोग और स्ट्रोक सबसे ज्यादा जानलेवा

इस रिपोर्ट के अनुसार, बीते दो सालों में देश में मिश्रित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली देखने को मिल रही है, जो चुनौतियों को और गंभीर बना रही है। डब्ल्यूएचओ ने पाया कि देश में साल 2019 के दौरान सबसे ज्यादा मौतें हृदय रोग (heart disease), सीओपीडी (COPD) या क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और स्ट्रोक के कारण हुईं। इन्हें लेकर जागरूकता, जांच (investigation), उपचार (treatment) पर अभी से जोर देना बहुत जरूरी है।

जीवन प्रत्याशा में भी आया सुधार...47.7 से बढ़कर 69.6 वर्ष हुई

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय लोगों की जीवन प्रत्याशा (life expectancy) में बढ़ोतरी हुई है। 1970 में जीवन प्रत्याशा 47.7 वर्ष अपेक्षित थी जो साल 2020 में बढ़कर 69.6 वर्ष हुई। इसके अलावा साल 2003 से अब तक मातृ मृत्यु दर (MMR) को लेकर भी तेजी से सुधार दर्ज किया गया। प्रति एक लाख प्रसूति पर यह दर 301 से घटकर 130 रह गई। वहीं शिशु मृत्युदर (infant mortality rate) भी प्रति एक हजार शिशु पर 68 से घटकर 24 रह गई है।

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