लखनऊ। प्राइवेट डॉक्टर्स और एम्स दिल्ली से निराश होने के बाद 25 किलो पानीयुक्त फाइलेरिया (स्क्रोटल फाइलेरियासिस) से ग्रस्त मरीज को किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के चिकित्सकों ने नया जीवन प्रदान किया है।
मंगलवार को आयोजित प्रेसवार्ता में केजीएमयू के डा पंकज सिंह और डा सुरेश कुमार ने बताया कि हमीरपुर निवासी 50 वर्षीय व्यक्ति फाइलेरिया से पीड़ित था। सामान्यत: पैर में होने वाली बीमारी फाइलेरिया, शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। इस मरीज के अंडकोष के ऊपर की परत में 25 किलोग्राम पानी जमा हो गया था। हालत यह थी कि चलना तो दूर मरीज कपड़े तक नहीं पहन पाता था। एम्स दिल्ली में 2 महीने इलाज कराने के बाद मरीज ने लखनऊ के कई प्राइवेट अस्पताल से इलाज कराया। फायदा नहीं होने के कारण उसने केजीएमयू के सर्जरी विभाग में संपर्क किया। यहां उसे डॉ पंकज सिंह ने देखा इसके बाद डॉ सुरेश कुमार व डॉ पंकज सिंह की टीम ने 5 घंटे की जटिल सर्जरी की। दो माह के इलाज के बाद मरीज अपने आप से चलने और कपड़े पहनने में समर्थ है।
वेक्टर बोर्न डिजीज फाइलेरिया अक्सर पैरों में दिखाई पड़ती है जिसे हाथीपांव भी कहा जाता है लेकिन यही फाइलेरिया शरीर के अंडकोष समेत अन्य अंगों में भी हो सकता है। उक्त मरीज के बारे में उन्होंने बताया कि इसके अंडकोष की ऊपरी परत में बीते 8 साल से स्क्रोटल फाइलेरियासिस फाइलेरिया था। सामान्यत: इस बीमारी का इलाज करने में सर्जन रुचि नहीं रखते हैं यही वजह है कि मरीज की बीमारी अति गंभीर हो गई।
डॉ सुरेश ने बीमारी के कारणों के बारे में बताया कि फाइलेरिया लसिका तंत्र में होता है यानी अपशिष्ट पदार्थ निकालने वाली नसों में इसके विषाणु पनपते हैं और नस को अवरुद्ध कर देते हैं, जिस वजह से उस अंग में पानी का जमाव होने लगता है और यही पानी संक्रमण पैदा कर देता है। उन्होंने बताया कि अगर इस बीमारी में इलाज लिया जाता है तो इसके विषाणु सुप्तावस्था में चले जाते हैं।
डॉ पंकज सिंह ने बताया अब मरीज सामान्य व्यक्तियों की भांति कपड़े पहनकर सामान्य दिनचर्या व्यतीत करने लगा है। उन्होंने कहा बीमारी कोई भी हो, चिकित्सकों को समस्त लक्षण बताएं ताकि बीमारी गंभीर होने से बचाई जा सके। अगर इस मरीज को शुरुआती दिनों में उचित इलाज मिल जाता तो समस्या इतनी गंभीर न होती। इस मौके पर उपस्थित मरीज ने बताया एम्स के डॉक्टरों के जवाब देने के बाद जीवन की उम्मीद नहीं बची थी।
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