रात में किसी व्यक्ति के लिए गहरी नींद में सोना उसके समग्र स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। अब गहरी नींद में सोने के कुछ और फायदे भी सामने आ रहे हैं। 'Journal of Neurotrauma' में प्रकाशित एक नई स्टडी में पता लगा है कि अगर आप रात में गहरी नींद में सोते हैं तो इससे ब्रेन इंजरी को ठीक करने में काफी मदद मिल सकती है। इस स्टडी के फाइंडिंग में कहा गया है कि जो लोग रात में गहरी नींद लेते हैं, उनकी ब्रेन इंजरी को ठीक होने में तुलनात्मक रूप से कम समय लगता है। इस स्टडी के लिए एक नई तकनीक का प्रयोग किया गया है जिसे मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग कहते हैं।
इस स्टडी के लिए रिसर्च करने में एमआरआई का सहारा लिया गया है। उन्होंने ब्रेन के आसपास की नसों को और उसके पेरीवैस्कुलर स्पेस में वृद्धि का आंकलन किया है। जब उम्र बढ़ने लगती है तो इन स्पेस में वृद्धि होती है और इससे डिमेंशिया जैसी समस्या विकसित होती है। इस स्टडी में शामिल विशेषज्ञों के मुताबिक जिन लोगों को गहरी नींद नहीं आ पाती उनमें यह स्पेस बढ़ जाता है और ब्रेन इंजरी के सिम्टम्स बढ़ने लगते हैं। वास्तव में इस तरह के लोगों में आर्म्ड फोर्सेज के साथ-साथ आम लोग भी शामिल हैं। स्टडी में शामिल के सहायक प्रोफेसर जुआन पिएंटिनो, एम.डी., एमसीआर, बाल रोग (न्यूरोलॉजी) ने यह जानकारी दी है।
हाल में ही सामने आई नई स्टडी से यह जानकारी मिली है। एमआरआई के एनालिसिस के तरीके से यह समझने में मदद मिली है कि जब ब्रेन आराम कर रहा होता है तब इससे संबंधित परेशानी में काफी मदद मिलती है। इस तकनीक में ब्रेन के पेरीवैस्कुलर स्पेस में आने वाले बदलाव को नापा गया है। इसे ब्रेन का वेस्ट क्लीयरेंस सिस्टम या ग्लाईमेटिक सिस्टम भी कहा जाता है।
इस स्टडी के एक लेखक ने कहा कि ग्लाईमफेटिक सिस्टम के साइंटिफिक रिसर्च से ब्रेन इंजरी की कई समस्याओं को निपटाने में काफी मदद मिल सकती है। न्यूरो डे जेनरेटिव कंडीशन से निपटने में भी इससे काफी मदद मिल सकती है। इसमें अल्जाइमर से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं। जब आप गहरी नींद में सोते हैं तो दिमाग का बड़ा नेटवर्क मेटाबोलिक प्रोटीन को साफ कर देता है जो आमतौर पर दिमाग में बनता रहता है।
स्टडी के लेखक में से एक ने कहा, "कल्पना करें कि जब आपका दिमाग इस तरह के बेकार पदार्थ को जनरेट कर रहा हो और सब कुछ ठीक-ठाक काम कर रहा हो। अब आप इससे एक उल्टी स्थिति की कल्पना कर सकते हैं जब आपका दिमाग इस तरह के ज्यादा कचरे को पैदा कर रहा हो और उससे कम मात्रा में इसे हटा पा रहा हो। इस वजह से समस्या बढ़ सकती है." उन्होंने कहा कि नई स्टडी से यह साबित होता है कि सीनियर सिटीजन के लिए यह तकनीक काफी मददगार साबित हो सकती है। लंबी अवधि में इस तकनीक का प्रयोग कर इस बात का पता लगाने में भी मदद मिल सकती है कि डिमेंशिया जैसी समस्या का किस व्यक्ति को सामना करना पड़ सकता है।
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