नई दिल्ली। वेरीकोसील पुरुष के वृषण और स्क्रोटम ( अंडकोश की थैली) की नसो की बिमारी हैं। कुछ कारणवश जब इन नासो में सूजन आ जाती है तब वेरीकोसील की समस्या पैदा हो जाती है। इस समस्या से ग्रस्त लोगों को कभी भयानक दर्द तथा कभी संतानहीनता की दिक्कत आ जाती है।
वैरिकोसील (varicocele ) मामलों में वर्तमान में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है। ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि इसके बारे में लोगों को जागरूक किया जाए। साथ ही यूरोलॉजी (urology) से जुड़ी सभी किस्म की बीमारियों के इलाज के अलग-अलग तरीकों के बारे में भी जानकारी दी जाए। हाल के वक्त में सर्जरी से जुड़े नए-नए उपकरण (equipment) आए हैं जिनकी मदद से वैरिकोसील से पीड़ित मरीजों (patients) का इलाज बेहतर हो गया है। लेकिन इलाज के इन तरीकों के बारे में कम जानकारी होने के कारण ज्यादा लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है।
इस बीमारी (disease) के इलाज के लिए अभी कोई दवा उपलब्ध नहीं है। इसका एकमात्र इलाज सिर्फ सर्जरी (surgery) के जरिए ही किया जाता है। नई दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (hospital) में यूरोलॉजी रीनल ट्रांसप्लांट एंड रोबोटिक्स विभाग के चेयरमैन (chairman) डॉक्टर अनंत कुमार ने इलाज के उपलब्ध मॉड्यूल के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि तकनीक की तरक्की और साइंस के नए-नए आविष्कारों ने वैरिकोसील के इलाज के भी नए तरीके दे दिए हैं।
वैरिकोसील क्टोमी, लैप्रोस्कोपिक सर्जरी, परक्यूटीनियस एंबोलाइजेशन जैसे हाई टेक इलाज की व्यवस्था मैक्स अस्पताल साकेत में उपलब्ध है। ये वो प्रक्रियाएं हैं जो वैरिकोसील के इलाज में सबसे सफल साबित हुई हैं। देश के एक जिम्मेदार और लीडिंग हेल्थ केयर (health care) प्रोवाइडर होने के नाते मैक्स अस्पताल साकेत में स्टेट ऑफ आर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही एडवांस ट्रीटमेंट (treatment) की सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया की मदद से मरीजों की तुरंत रिकवरी हो रही है और ऑपरेशन के बाद की दिक्कतें भी नहीं होती हैं।
हालांकि वैरिकोसील किस कारण होता है इसकी पहचान करने के लिए अभी तक कोई सटीक जानकारी नहीं है। लेकिन ये माना जाता है कि हार्मोनल असंतुलन और अनुचित ऊंचाई और वजन अनुपात के कारण ये होता है. पेल्विक एक्सरसाइज (excercise), हाइड्रेटिंग (hydrating) ड्रिंक्स पीने से इससे बचाव किया जा सकता है, साथ ही ब्लड प्रेशर लेवल लगातार चेक कराते रहें, जिससे पता चल सके कि अंडकोष में ब्लड की सप्लाई सही मात्रा में हो रही है या नहीं।
यूरोलॉजी के क्षेत्र में विकसित हुई तकनीक ने सर्जरी को बहुत ही आसान, सुरक्षित और कम से कम चीर-काट वाला बना दिया है। इससे मरीज की तुरंत रिकवरी होती है। साथ ही ऑपरेशन के बाद उसे कोई दिक्कत नहीं होती और वो तुरंत अस्पताल से डिस्चार्ज भी हो जाता है।
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