लखनऊ। लेप्रोसी (कुष्ठरोग) एक स्थायी संक्रामक रोग है, जिसका कारण बैक्टीरियम माइकोबैक्टीरियम लेप्री है। यह रोग विश्व के अधिकांश भागों से गायब हो चुका है। 2005 में भारत ने घोषणा की थी कि उसने लेप्रोसी को सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्या के तौर पर खत्म कर दिया है। दुर्भाग्य से, देश के विभिन्न भागों में इसके नये मामले सामने आते रहे और आज विश्व में लेप्रोसी के नये मरीजों में से आधे से ज्यादा (लगभग 60%) भारत में हैं। 2020-2021 की नेशनल लेप्रोसी इरेडिकेशन प्रोग्राम (एनएलईपी) रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में लेप्रोसी के 8921 नये मामले पाये गये और राज्य में कुल 7248 मामले दर्ज हुए। यह स्थिति चिंताजनक है और इस रोग के विरूद्ध नई लड़ाई का आह्वान करती है, ताकि 2030 तक ज़ीरो लेप्रोसी का लक्ष्य हासिल किया जा सके।
लेप्रोसी में बैक्टीरिया संक्रमित लोगों की नाक और मुँह से छोटी बूंदों द्वारा फैलते हैं। अगर इसका इलाज न हो, तो यह रोग मरीज के हाथों और पैरों की नसों और माँसपेशियों को प्रभावित करता है, जिससे आखिरकार भारी विकृतियाँ और स्थायी विकलांगता हो जाती है, जो कि लेप्रोसी से जुड़े लांछन की प्रतीक बन चुकी हैं।
द लेप्रोसी मिशन ट्रस्ट की स्पेशलिस्ट और लेप्रोलॉजिस्ट डॉ. नीता मैक्जीमस के अनुसार, ‘’उत्तर प्रदेश के लखनऊ, लखीमपुर, सीतापुर और उन्नाव क्षेत्रों में परिवहन सेवाएं बाधित हैं, जिससे स्वास्थ्यरक्षा तक पहुँच कठिन हो जाती है और उपचार का पालन नहीं हो पाता है। इस कारण इन क्षेत्रों में लेप्रोसी के मामलों का बोझ ज्यादा है। लेप्रोसी के फैलने और इलाज से जुड़ी गलत धारणाएं अक्सर विकलांगता के पहले से भारी बोझ को बढ़ा देती हैं। इसके अलावा, लेप्रोसी पर जागरूकता के अभाव और लांछन के चलते इसका पता लगाना और इलाज करना कठिन हो जाता है।‘’
कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया। आइसोलेशन, सामाजिक दूरी और आवाजाही पर शुरूआती प्रतिबंधों के संदर्भ में दिशा-निर्देशों ने स्वास्थ्यरक्षा सेवाओं तक पहुँचने में मरीजों के लिये चुनौती खड़ी कर दी और सीमित एक्टिव सर्विलांस के कारण कम मामलों का पता चल पाया।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि अगर लेप्रोसी का सही समय पर पता चल जाए, तो ज्यादातर मामले 6 से 12 माह के बीच ठीक किये जा सकते हैं। नोवार्टिस द्वारा वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) को दान की गई मल्टी-ड्रग-थेरैपी (एमडीटी) सरकार द्वारा निशुल्क प्रदान की जाती है, जिसने अपनी पेशकश के बाद से लेप्रोसी के 16 मिलियन मरीजों का सफल उपचार किया है। 2020-2021 की एनएलईपी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 90.3% मामलों को उपचार से ठीक किया गया है।
लेप्रोसी को प्रभावी ढंग से ठीक कर सकने वाले उपचार की उपलब्धता का आशय इससे है कि हमें ऐच्छिक सूचना चाहिये। इसके लिये एक मजबूत सामुदायिक जागरूकता अभियान चाहिये, जो इस रोग से जुड़े लांछन और भेदभाव से निपटे और संक्रमितों को इलाज के लिये आगे आने के लिये प्रोत्साहित करे। इसके अलावा, प्रांत-व्यापी जाँच कार्यक्रम होने चाहिये, ताकि हाइपोपिगमेंटेड एनेस्थेटिक पैचेस की जल्दी पहचान कर सही इलाज किया जा सके। लेप्रोसी को काबू करने के लिये इसका जल्दी पता लगाकर इलाज करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
लेप्रोसी से निपटने के लिये रणनीतिक भागीदारियों की आवश्यकता समझाते हुए, वैशाली अय्यर, कंट्री हेड- कम्युनिकेशंस, एंगेजमेंट एवं सीएसआर, नोवार्टिस इन इंडिया ने कहा, ‘’नोवार्टिस में हम 30 साल से ज्यादा समय से लेप्रोसी से लड़ रहे हैं। साल 2000 से हम डब्ल्यूएचओ के जरिये विश्व में लेप्रोसी की दवाओं की पूरी तरह निशुल्क आपूर्ति के लिये दान कर रहे हैं, जिससे विश्व पर इस बीमारी का बोझ 95% कम हुआ है। 2020 में हमने अपने संकल्प को नया किया और डब्ल्यूएचओ के साथ 2025 तक के लिये अपने समझौते को बढ़ाया। हमारा मानना है कि इस तरह के गठजोड़ लेप्रोसी के विरूद्ध हमारी लड़ाई के लिये महत्वपूर्ण होंगे और हम सरकार तथा अन्य महत्वपूर्ण साझीदारों के साथ गठजोड़ कर 2030 तक ज़ीरो लेप्रोसी के साझा लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं।‘’
मरीजों को एमडीटी देने के अलावा, प्रोफाइलेक्सिस जैसे एप्रोचेस पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि संक्रमण की श्रृंखला टूटे और ज़ीरो लेप्रोसी का लक्ष्य हासिल हो।
विशेषज्ञों का कहना है कि लेप्रोसी के खात्मे के लिये एक मजबूत एकीकृत रणनीति और कार्यान्वयन योजना चाहिये। इसमें गुणवत्तापूर्ण सेवाओं के लिये स्वास्थ्यरक्षा कर्मियों और अन्य पेशेवरों का क्षमता निर्माण, जागरूकता निर्मित करने के लिये साझीदारों की प्रतिबद्धता, प्रभावी सर्विलांस, निदान और जाँच के लिये डिजिटल टूल्स को अपनाना और अंत में, सार्वजनिक निजी भागीदारियों के माध्यम से सहयोग शामिल है। लेप्रोसी और उससे जुड़े लांछन को दूर किया जा सकता है, अगर सही समय पर इलाज हो।
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