लखनऊ। यूपी की 99 प्रतिशत से ज्यादा आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। उससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि इस खतरे की वास्तविकता के सही आकलन के लिए पर्याप्त निगरानी केंद्रों का अभाव है। क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक ताजा रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब सरकार से ज्यादा इसे आम लोगों का मुद्दा बनाने की जरूरत है, ताकि वे वायु प्रदूषण रूपी अदृश्य कातिल से निपट सकें। क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा यूपी में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर मंगलवार को आयोजित वेबिनार में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक सिंधु-गंगा के मैदान हवा के लिहाज से देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र हैं।
इस विशाल भूभाग के हृदय स्थल यानी उत्तर प्रदेश की 99.4% आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि जन स्वास्थ्य के हित में किसी सुनिश्चित बिंदु पर एक्यूआई की गंभीरता के आधार पर प्रदूषण के स्रोतों के नियमन को शीर्ष प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों के पास किसी भी प्रदूषणकारी तत्व के संघनन का कोई रिकॉर्ड नहीं होता, लेकिन वहां रहने वाले लोग पार्टिकुलेट मैटर तथा अन्य प्रदूषणकारी तत्वों के उच्च स्तर के संपर्क में होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए जलाने वाली लकड़ी और कोयले पर निर्भर होते हैं। उत्तर प्रदेश का वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क शहरों के साथ-साथ गांवों में भी फैलाया जाना चाहिए ताकि वहां भी वायु की गुणवत्ता सुधर सके।
वायु प्रदूषण की निगरानी बहुत जरूरी
आईआईटी कानपुर में सिविल इंजीनियर विभाग के अध्यक्ष और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे तब तक कोई सरकार, वैज्ञानिक और थिंक टैंक वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं कर सकता।
वायु प्रदूषण की निगरानी बहुत जरूरी है। इसे किसी भी तरह से कम नहीं आंक सकते। हमें अधिक घना मॉनिटरिंग नेटवर्क बनाना होगा। लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर सूर्यकांत ने वेबिनार में कहा कि हमारे फेफड़े ही वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंग हैं।
वायु प्रदूषण को लेकर पिछले पांच साल से सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले नगरों को लेकर प्रकाशित होने वाली रिपोर्टों में भारत के शहर शीर्ष पर आते रहे हैं। यह शर्मनाक है। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर शहर टॉप टेन में होते हैं। इस राज्य के करीब 7 शहर ऐसे हैं, जो वायु प्रदूषण के उच्च स्तरों के मामले में हमेशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करते हैं।
चिंताजनक स्थिति
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि यह अपने आप में बहुत चिंताजनक बात है कि हम वायु प्रदूषण को लेकर उतने संजीदा ही नहीं हैं, जितना कि हमें होना चाहिये। जानलेवा मुसीबत हमारे दरवाजे तक पहुंच चुकी है और तरह-तरह से अपनी मौजूदगी का संकेत भी दे रही है, मगर सरकार और आम जनता के रूप में हम नजरें फेरकर बैठे हैं। वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों के नेटवर्क को मजबूत और दक्षतापूर्ण बनाने के प्रति हमारी उदासीनता और प्रदूषण को लेकर हमारी लापरवाही बारूद के ढेर पर बैठकर आग से खेलने जैसी है।
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