वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस अर्थात विश्व आयोडीन अल्पता दिवस (जीआईडीडी) हर वर्ष 21 अक्टूबर को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य आयोडीन के पर्याप्त उपयोग के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना और आयोडीन की कमी के परिणामों पर प्रकाश डालना है।
वर्तमान समय में विश्व भर में आयोडीन अल्पता विकार प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गई है। आज के परिदृश्य में विश्व की एक तिहाई आबादी को आयोडीन अल्पता विकार से पीड़ित होने का ख़तरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ (World Health Organization) (WHO) के अनुसार लगभग 54 देशों में आयोडीन अल्पता (iodine deficiency) अभी तक मौजूद है, इस स्थिति में लोगो के मध्य आयोडीन की अल्पता के परिणामस्वरूप होने वाले रोगो के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना महत्वपूर्ण हो गया है।
आयोडीन - Iodine
आहारीय आयोडीन मानव शरीर के अत्यन्त आवश्यक भौतिक तत्त्व है। ये अवटु ग्रंथि के सम्यक, कार्यविधि के लिए आवश्यक है जो शक्ति का निर्माण करती है, हानिप्रद कीटाणुओं को मारती है और इसके हार्मोन थांयरांक्सीजन की कमी पूरी करती है। आयोडीन मन को शांति प्रदान करती है, तनाव कम करती है, मस्तिष्क को सतर्क रखती है और बाल, नाखून, दांत और त्वचा को उत्तम स्थिति में रखने में मदद करता है।
आयोडीन का महत्व - Importance of Iodine
आयोडीन सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो कि मानव वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। आयोडीन बढ़ते शिशु के दिमाग के विकास और थायराइड प्रक्रिया के लिए अनिवार्य एक माइक्रोपोशक तत्व है, आयोडीन हमारे शरीर के तापमान को भी विनियमित करता है, विकास में सहायक है और भ्रूण के पोशक तत्वों का एक अनिवार्य घटक है, शरीर में आयोडीन को संतुलित बनाने का कार्य थाइरोक्सिन हार्मोंस करता है जो मनुष्य की अंतस्रावी ग्रंथि थायराइड ग्रंथि से स्रावित होता है, आयोडीन की कमी से मुख्य रुप से घेंघा रोग होता है।
आयोडीन युक्त खाद्य पदार्थ आयोडीन का सबसे सामान्य स्रोत नमक है। इसके अतिरिक्त आयोडीन युक्त कुछ खाद्य प्रदार्थ इस प्रकार है :
1 - दूध
2 - अंडा
3 - समुद्री शैवाल
4 - शेल्फिश
5 - समुद्री मछली
6 - समुद्री भोजन
7 - मांस
8 - दालें-अनाज।
आयोडीन अल्पता से होने वाले रोग - Iodine deficiency diseases
आयोडीन की कमी से कई रोग उत्पन्न होने का भय रहता है।आयोडीन की कमी से होने वाले रोग निम्नलिखित है:
1 - थायरॉयड ग्रंथि का बढ़ना।
2 - मानसिक बीमारी: मंदबुद्धि, मानसिक मंदता, बच्चों में संज्ञानात्मक विकास की गड़बड़ी और मस्तिष्क की क्षति।
3 - तंत्रिका-पेशी और स्तैमित्य (मांसपेशियों की जकड़न)।
4 - एन्डेमिक क्रेटिनिज़म (शारीरिक और मानसिक विकास का अवरुद्ध होना)।
5 - मृत जन्म और गर्भवती महिलाओं में स्वतः गर्भपात।
6 - जन्मजात असामान्यता जैसे कि बहरा-गूंगापन (बात करने में असमर्थता) और बौनापन।
7 - देखने, सुनने और बोलने में दोष।
8 - आयोडीन की कमी से चेहरे पर सूजन, गले में सूजन (गले के अगले हिस्से में थाइराइड ग्रंथि में सूजन)
9 - थाइराइड की कमी (जब थाइराइड हार्मोन का बनना सामान्य से कम हो जाए)
10 - मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में बाधा वज़न बढ़ना, रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ना और ठंड बर्दाश्त न होना जैसे आदि रोग होते हैं।
11 - गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी से गर्भपात, नवज़ात शिशुओं का वज़न कम होना,शिशु का मृत पैदा होना और जन्म लेने के बाद शिशु की मृत्यु होना आदि होते हैं,
12 - एक शिशु में आयोडीन की कमी से उसमें बौद्धिक और शारीरिक विकास समस्यायें जैसे मस्तिष्क का धीमा चलना, शरीर का कम विकसित होना, बौनापन, देर से यौवन आना, सुनने और बोलने की समस्यायें तथा समझ में कमी आदि होती हैं।
आयोडीन अल्पता विकार निवारण की दिशा में भारत सर्कार द्वारा उठाए गए कदम
भारत सरकार द्वारा आयोडीन अल्पता विकार निवारण (Iodine Deficiency Disorders) की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदमम उठाये गए है। वर्ष 1962 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय गलगण्ड नियंत्रण कार्यक्रम का आरंभ किया और वर्ष 1992 में इसका नाम परिवर्तित करके राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (National Iodine Deficiency Disorder Control Program) कर दिया गया था।इस कार्यक्रम में आयोडीन युक्त नमक उपलब्ध् कराने, आयोडीन न्यूनता विकृति सर्वेक्षण/पुनर्सर्वेक्षण, आयोडीन वाले नमक पर प्रयोगशालाओं में नजर रखने, स्वास्थ्य शिक्षा और प्रचार पर ध्यान दिया जाता है। राज्यस्तर पर कार्यक्रम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों /केंद्रशासित प्रदेशों, आईडीडी नियंत्रण प्रकोष्ठ और आईडीडी निगरानी प्रयोगशाला के अतिरिक्त सर्वे और स्वास्थ्य शिक्षा और लोगों द्वारा आयोडीन युक्त नमक के उपयोग हेतु प्रचार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
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