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मोतियाबिन्द आपरेशन हर मौसम में आसान व कारगर।

आंखों के प्राकृतिक लेंस के धुंधले पडऩे को ही कैटरेक्ट या आम बोलचाल की भाषा में मोतियाबिंद कहा जाता है।

लेख विभाग
January 18 2021 Updated: January 23 2021 04:02
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मोतियाबिन्द आपरेशन हर मौसम में आसान व कारगर। मोतियाबिन्द ग्रसित आँख

- डा. रीतेश सिंह, परामर्शदाता नेत्र चिकित्सा
- डा.महिपाल सचदेव, परामर्शदाता नेत्र चिकित्सा  
इंदिरा गांधी आई हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर, लखनऊ

बढ़ती उम्र में आंखों की कई बीमारियां होती हैं जिसमें कैटरेक्ट यानी मोतियाबिंद की समस्या आम होती है। मोतियाबिंद को लेकर काफी सारी भ्रांतियां हैं। लोगों का मानना है कि इसका आपरेशन बड़ा ही दुखदायी है जो केवल ठंडे मौसम में ही किया जाता है। यह पूरी तरह से गलत है। इसका आपरेशन कभी भी यानि किसी भी मौसम में किया जा सकता है। मौसम की मार से इसके इलाज पर कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। भारत में इसके एक करोड़ दस लाख मरीज हैं। गांवों में इसको लेकर काफी अज्ञानता है। जिसके चलते आधे से ज्यादा लोग अंधेपन का शिकार हो जाते हैं और समय रहते उनका इलाज नहीं हो पाता है।

मोतियाबिंद क्या है

आँख का मानवीय क्रिस्टेलाइन लेंस स्पष्ट और पारदर्शी है। उम्र बढऩे के साथ-साथ आंखों का लेंस धुंधला और अपारदर्शी हो जाता है जिससे सामान्य दृष्टि प्रभावित होती है। क्रिस्टेलाइन लेंस में होने वाली कोई भी अपारदर्शिता जिससे दृष्टि कम होती है, मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहलाती है। इसका आखिरी और एक मात्र इलाज सर्जरी ही है।

मोतियाबिंद के लक्षण

1. धुंधला दिखाई देना।
2. रंग का फीका दिखना या रंग साफ दिखाई न देना।
3. तेज रोशनी या सूरज की रोशनी के प्रति आंखों का सेंसिटिव होना।
4. रात में कम दिखाई देना।
5. रात में आंखों में अधिक परेशानी होना आदि।

कैसे होती है मोतियाबिंद की सर्जरी 

फैकोनिट मोतियाबिंद सर्जरी की नवीनतम तकनीक है जो आज कल इस्तेमाल में है। इस तकनीक की वजह से मोतियाबिंद सर्जरी में बस कुछ घंटों के बाद मरीज अपने घर लौट जाता है। फैकोनिट में अल्ट्रासाउंड ऊर्जा का इस्तेमाल कठोर सफेद मोतिया के टुकड़ों में विभक्त करने के लिए किया जाता है। जिन्हें एक छोटा सा लगभग एक एमएम का चीरा लगाकर बाहर निकाल लिया जाता है। फिर जरुरत के मुताबिक पावर वाला एक मुडऩे वाला (फोल्डेबुल) लेंस (आईओएल) निकाले गये स्वाभाविक लेंस की जगह स्थापित कर दिया जाता है। आपरेशन के दौरान समय नहीं लगता है लेकिन दोनों आंखों के आपरेशन के सर्जरी के बीच आम तौर पर दो महीने का अंतर होना चाहिए। परन्तु मरीज की सुविधा के अनुसार तीन से पांच दिनों के अंतर पर भी यह सर्जरी कर दी जाती है।

सभी की आंखों में एक प्राकृतिक लेंस होता है। किसी कारणवश इस लेंस पर एक पतली परत बनने लगती है। जिससे यह लेंस धुंधला पडऩे लगता है। ऐसी स्थिति में नजर कमजोर होने लगती है। दरअसल, आंखों के प्राकृतिक लेंस के धुंधले पडऩे को ही कैटरेक्ट या आम बोलचाल की भाषा में मोतियाबिंद कहा जाता है। के अनुसार सामान्य तौर पर यह समस्या उम्र अधिक हो जाने पर ही होती है। वैसे, कई बार कैटरेक्ट की वजह उम्र बढऩे के साथ किसी प्रकार का कोई ट्रौमा या फिर मेटाबोलिक डिसओर्डर जैसे डायबिटीज, हाइपोथायरॉयड या आंखों में सूजन भी हो सकती है।

सर्जरी के बाद बरतें सावधानियां 

1. सलाह के अनुसार, दवाइयों का उपयोग चार से छह सप्ताह तक करें।
2. अपने शुगर और बीपी को नियंत्रित रखने का प्रयास करें।
3. सिर धोते समय विशेष सावधानी बरतें। यानी इसके बारे में डाक्टर से जरूर जानकारी ले लें।
4. अगर आप घर से बाहर जा रहे हैं तो आंखों पर डार्क कलर के ग्लासेज पहनना ना भूलें।
5. पौष्टिक भोजन का सेवन करें।

उपचार की तकनीक

मोतियाबिन्द सर्जरी के दौरान आंखों के प्राकृतिक लेंस निकाल लिए जाते हैं और इनकी जगह आंखों में कृत्रिम लेंस प्रत्योरापित कर दिए जाते हैं। यह कृत्रिम लेंस ही इंट्राओक्यूलर लेंस कहलाते हैं, जिन्हें लघु रूप में आई ओ एल भी कहा जाता है। आई ओ एल रेटिना पर रोशनी की किरणें केंद्रित करने में मदद करता है। जिससे एक प्रतिमा बनती है तथा हम इसे देखने में सक्षम होते हैं। अब कैटरेक्ट के उपचार से संबंधित कई नई तकनीकें बाजार में उपलब्ध हैं। यदि रोगी का 'मल्टीफोकल आई ओ एल फेकोइमल्सीफिकेशन के साथ किया जाता है, तब कैटरेक्ट सर्जरी के बाद चश्मा पहनने की जरुरत नहीं पड़ती है। वहीं दूसरी ओर, यदि  'फेकोइमल्सीफिकेशन मोनोफोकल आई ओ एल के साथ करते हैं, तब कुछ भी पढ़ाई करते वक्त चश्मे का प्रयोग जरूरी हो जाता है। एक अन्य नई तकनीक है, जिसमें फेकोइमल्सीफिकेशन को फोल्डेबल आईओएल के साथ किया जाता है। इस तकनीक का प्रयोग कई आई सेंटर्स में किया जाता है। इसके अलावा, कुछ पुरानी तकनीकें जैसे-एसआईसीएस, ईसीसीई का प्रयोग आज भी कई जगहों पर किया जा रहा है।

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