नयी दिल्ली। भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद (ICMR) जल्द स्वास्थ्य विभाग की मदद से बरेली, बदायूं और सोनभद्र में मलेरिया के मच्छरों पर रिसर्च शुरू करेगा। यूपी में पूरे साल में जितने मलेरिया के केस आते हैं, उनमें से 60 से 70 फीसदी तक मामले केवल इन्हीं तीन जिलों के होते हैं। दरअसल, इन इलाकों के मलेरिया के मच्छर (malaria mosquitoes) इतने ताकतवर हो चुके हैं कि दवाएं उन पर बेअसर हो रही हैं।
बीते सालों में प्रदेश में मलेरिया केसों की संख्या बढ़ी है। स्वास्थ्य विभाग (Health Department) का कहना है कि ऐसा जांच और सर्विलांस बढ़ाए जाने के कारण हुआ है। वर्ष 2019 की बात करें तो प्रदेश में तकरीबन 90 हजार मलेरिया (malaria) केस मिले थे। इनमें से 65 फीसदी से ज्यादा मामले केवल बदायूं और बरेली में मिले थे। इस मामले में तीसरे नंबर पर सोनभद्र था। उसके बाद मिले केसों में भी इन जिलों की हिस्सेदारी सर्वाधिक रही है। प्रदेश में यदि मलेरिया प्रभावित इलाकों की बात करें तो सोनभद्र, बरेली, बदायूं के अलावा मिर्जापुर, सोनभद्र, हरदोई, फिरोजाबाद सहित कई अन्य जिले इस मामले में अग्रणी हैं। जानकारों की मानें तो स्वास्थ्य विभाग के पास कर्मियों की भी कमी है। इस कारण प्रभावी सर्विलांस नहीं हो पा रहा। वहीं दूसरी ओर पब्लिक की लापरवाही भी इसके लिए जिम्मेदार है।
अक्सर लोगों को यह कहते हुए भी सुना जाता है कि मच्छरों की रोकथाम को किए जाने वाले उपाय कुछ समय तो प्रभावी रहते हैं। उसके बाद उनका असर खत्म होने लगता है और मच्छर इनके प्रयोग के बावजूद काटते रहते हैं। दरअसल, मलेरिया के मच्छरों के लिए प्रदेश की जलवायु खासी मुफीद है। 27 से 29 डिग्री के बीच का तापमान और 80 के करीब ह्यूमिडिटी इन मच्छरों के पनपने के लिए आदर्श स्थिति है।
ठीक इसी तरह मलेरिया के मच्छरों में भी मौजूदा दवाओं को लेकर प्रतिरोधक क्षमता (resistance) विकसित हो जाती है। केंद्र और राज्य की स्वास्थ्य इकाइयों के सर्वे में यह सामने भी आया है। बीते दिनों हुए विभाग और कई अन्य एजेंसियों की बैठक में तय किया गया है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा बदायूं, बरेली और सोनभद्र में मच्छरों पर रिसर्च की जाएगी। इसी रिसर्च के आधार पर उन दवाओं की जगह नई दवाएं विकसित की जाएंगी, जिनसे मलेरिया के मच्छर प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुके हैं।
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