लखनऊ। देश में कैंसर के बढ़ते मामलों को देखते हुए डायग्नोस्टिक केंद्रों और कैंसर के इलाज के लिए बेहतर संसाधनों की सख्त जरूरत हो गई है। शुरुआती चरणों में कैंसर के इलाज का परिणाम बहुत ही, कम खर्चीला और उपचार संबंधी बहुत ही कम मृत्यु दर के रूप में सामने आता है। इस सच्चाई की अनदेखी करने पर हम कैंसर के खिलाफ जंग हार जाते हैं।
मैक्स हॉस्पिटल साकेत नई दिल्ली में मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर के चेयरमैन डॉ हरित चतुर्वेदी ने कहा विकसित देशों में जहां कैंसर के 70 फीसदी से ज्यादा मामले शुरुआती चरण में पकड़ में आ जाते हैं वहीं हमारे यहां 70 फीसदी मामलों की पहचान एडवांस्ड स्टेज में ही हो पाती है। ऐसी स्थिति में किसी स्पेशियल्टी हॉस्पिटल में ऑपरेशन पर जितना खर्च होता है, उसके पांच फीसदी से कम में ही शुरुआती लक्षणों वाले मरीज का इलाज हो जाता है। इससे अस्पतालों से लेकर कैंसर केयर सेंटरों पर मरीजों का बोझ भी कम होगा, जिन्हें इमेजिंग से लेकर एंडोस्कोपी और बायोप्सी संबंधी उपकरणों से लैस होना पड़ता है।
चिकित्सा की मानक प्रक्रिया यह होनी चाहिए कि 80 फीसदी से अधिक मरीजों का 72 घंटे के अंदर इलाज हो जाना चाहिए। एक और बड़ी समस्या यह है कि एडवांस्ड स्टेज के कैंसर और मरीज के आखिरी छह महीने की बीमारी के इलाज पर ही संसाधनों का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। यही राशि यदि कैंसर से बचाव और शुरुआती डायग्नोसिस पर खर्च की जाए तो बड़े पैमाने पर मरीजों और समाज के लिए अत्यंत लाभकारी होगा। यह जानकारी सुकून देती है कि कैंसर के लगभग 60 फफीसदी मामलों से बचा जा सकता है। इसमें तंबाकू सेवन के कारण दो-तिहाई से अधिक मरीज शामिल हैं जबकि खानपान, लाइफ स्टाइल से होने वाले कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, लीवर कैंसर आदि के टीके के कारण एक तिहाई मामलों से बचा जा सकता है। आईटी और जनसंचार साधनों के जरिये लोगों को शिक्षित करने से कैंसर के मामलों की स्थिति आश्चर्यजनक रूप से सुधर सकती है।
डॉ हरित चतुर्वेदी ने कहा कैंसर उपचार के क्षेत्र में एक विरोधाभास यह नजर आता है कि हम पहले से बेहतर स्थिति में पहुंच रहे हैं लेकिन हमें अभी भी इस मामले में लंबा सफर तय करना है। मैं अक्सर महसूस करता हूं कि हम किसी खास हिस्से को बमुश्किल सुरक्षित रख पाते हैं। उचित समय पर और संपूर्ण इलाज की सुविधा आबादी के 15 फीसदी से अधिक लोगों तक नहीं पहुंच पाई है। इस चुनौती को देखते हुए हम आशंकित हैं कि भौगोलिक स्थितियों, जीवनदर, बढ़ती अर्थव्यवस्था और लाइफ स्टाइल आदि में बदलाव के कारण अगले दशक में कैंसर के मामले दोगुने हो जाएंगे। सौभाग्य की बात है कि पिछले दो दशक में हमने प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों और संपूर्ण सुविधा वाले कैंसर केंद्रों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी है।
दरअसल पिछले दस वर्षों के दौरान हमारे पास पिछली सदी के मुकाबले प्रोफेशनल चिकित्सकों की अधिक संख्या हो गई है। जब तक किसी कैंसर उपचार केंद्र पर समग्र चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो उसे संपूर्ण नहीं माना जा सकता है। अब वक्त आ गया है कि हम कैंसर के मामले कम करने की योजना को अपना मुख्य उददेश्य बनाएं।
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