जिनेवा। मादक पदार्थों एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) ने अपनी नई समीक्षा रिपोर्ट में आगाह किया है कि तस्करी के ज़रिये लाए गए, फ़र्ज़ी और घटिया चिकित्सा उत्पादों के कारण, सब-सहारा अफ़्रीका क्षेत्र में हर साल लगभग पाँच लाख लोगों की मौत होती है, जिस पर विराम लगाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
रिपोर्ट ‘Trafficking in Medical Products in the Sahel’ बताती है कि निगरानी तंत्र की कमी और दवाओं के अभाव का अनेक अवसरवादी तत्व फ़ायदा उठा रहे हैं।चिकित्सा उत्पादों (medical products) की आपूर्ति और मांग में उपजे इस असन्तुलन के जानलेवा नतीजे सामने आए हैं।
यूएन (UN) के अटलांटिक-पार संगठित अपराध (trans-Atlantic organized crime) से ख़तरे की समीक्षा पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, सब-सहारा अफ़्रीका में फ़र्ज़ी और घटिया एंटी-मलेरिया दवाओं के कारण हर वर्ष दो लाख 67 हज़ार लोगों की मौत होती है। इसके अलावा, बच्चों में गम्भीर न्यूमोनिया (pneumonia) के उपचार में इस्तेमाल में लाई जाने वाली नक़ली और घटिया एंटीबायोटिक (antibiotics) दवाएँ, एक लाख 69 हज़ार लोगों की जान जाने की वजह बताई गई है।
यूएन (UN) विशेषज्ञों का कहना है कि इन उत्पादों की तस्करी का प्रभावित देशों पर प्रत्यक्ष आर्थिक असर भी हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि सब-सहारा अफ़्रीका में मलेरिया के उपचार के लिए फ़र्ज़ी और घटिया उत्पादों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए हर वर्ष एक करोड़ 20 लाख से लेकर चार करोड़ 47 लाख डॉलर का ख़र्च होता है।
फ़र्जी उत्पाद ज़ब्त - Counterfeit Products Seized
इस चुनौती पर पार पाने के लिए अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान (International campaigns) शुरू किए गए और पश्चिमी अफ़्रीका में जनवरी 2017 और दिसम्बर 2021 के दौरान 605 टन से अधिक चिकित्सा उत्पाद ज़ब्त किए गए हैं। आमतौर पर इन उत्पादों की प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मार्गों के ज़रिये, मुख्यत: समुद्री मार्ग से तस्करी (smuggle) की जाती है।
बताया गया है कि गिनी की खाड़ी, कोनाक्री (Guinea), टेमा (Ghana), लोमे (Togo), कोन्टुनू (Benin) और अपापा (Nigeria) में बन्दरगाह, सहेल देशों – बुर्किना फ़ासो, चाड, माली, मॉरीटेनिया और निजेर - में चिकित्सा उत्पादों के लिए मुख्य प्रवेश द्वार हैं। क़ानूनी आपूर्ति चेन (legal supply chains) से अलग हटकर, ये उत्पाद अक्सर बड़े निर्यातक देशों से सहेल क्षेत्र तक आते हैं, जिनमें चीन, बेल्जियम, फ़्रांस और भारत हैं. अन्य उत्पादों को पड़ोसी देशों में तैयार किया जाता है। पश्चिमी अफ़्रीका पहुँचने के बाद, तस्कर इन चिकित्सा उत्पादों को बसों, कारों और ट्रकों के ज़रिये सहेल क्षेत्र तक पहुँचाते हैं, और इस गतिविधि में तस्करी के मौजूदा मार्गों को ही चुना जाता है, ताकि सीमा चौकियों पर जाँच से बचा जा सके।
आतंकी गुट भी संलिप्त - Terrorist groups also involved
आतंकवादी और ग़ैर-सरकारी सशस्त्र गुटों के सहेल में चिकित्सा उत्पादों की तस्करी में संलिप्त होने की जानकारी मिली है, लेकिन उनकी मिलीभगत सीमित है। ये गुट अपने क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में टैक्स लगाते हैं या फिर दवाओं (drugs) का ग़लत इस्तेमाल स्वयं करते हैं। अल-क़ायदा और बोको हराम जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा ग़ैर-चिकित्सा उद्देश्यों के लिए दवाओं के इस्तेमाल पर समाचार रिपोर्ट, आइवरी कोस्ट और नाइजीरिया में वर्ष 2016 से सामने आती रही हैं।
यूएन रिपोर्ट बताती है कि जाँचकर्ताओं ने ऐसे विविध प्रकार के तत्वों को उजागर किया है, जोकि ग़ैरक़ानूनी चिकित्सा उत्पादों के व्यापार में शामिल हैं। इन तस्करों में औषधि-निर्माता कम्पनियों के कर्मचारी, लोक अधिकारी, क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों के सदस्य, स्वास्थ्यकर्मी समेत अन्य लोग हैं।
अहम उपायों पर ज़ोर - Emphasis on important measures
तस्करी की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मंडराते ख़तरों से निपटने के लिए राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक मज़बूत और समन्वित कार्रवाई पर बल दिया गया है। इससे वैध आपूर्ति मार्गों से मेडिकल उत्पादों की सुलभता बेहतर बनाई जा सकेगी, और इन आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाले व्यवधानों से निपट पाना भी सम्भव होगा। अफ़्रीकी संघ (African Union) ने अफ़्रीका में दवाओं के नियामन (drug regulation) में एकरुपता लाने की दिशा में प्रयास किए हैं, जोकि सुरक्षित व पहुँच के भीतर दवाओं की सुलभता बेहतर बनाने और नियामन क्षमता में सुधार पर केन्द्रित है।
यह प्रयास अफ़्रीका के लिए औषधि विनिर्माण योजना (Drug Manufacturing Plan) पर फ़्रेमवर्क का ही एक हिस्सा है. इसके अलावा, मॉरीटेनिया से इतर सहेल क्षेत्र में स्थित सभी देशों ने अफ़्रीकी चिकित्सा उत्पाद एजेंसी (African Medical Products Agency) को स्थापित करने की सन्धि का अनुमोदन किया है। इसके साथ ही, चिकित्सा उत्पादों की तस्करी पर विराम लगाने के लिए मौजूदा क़ानूनी प्रावधानों में आवश्यकता अनुसार बदलाव लाने होंगे।
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