जेनेवा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का एक नया विश्लेषण दर्शाता है कि दुनिया भर में क़रीब एक अरब लोग, मानसिक विकार के किसी ना किसी रूप से पीड़ित हैं। हर सात पीड़ितों में से एक किशोर है। वैश्विक महामारी कोविड-19 के पहले वर्ष में मानसिक अवसाद और व्यग्रता (anxiety) में 25 फ़ीसदी से अधिक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपने इस नए विश्लेषण को इस सदी की सबसे बड़ी समीक्षा बताया है और सदस्य देशों से बदतर होते हालात से निपटने के लिये ज़रूरी उपाय करने का आग्रह किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “हर किसी के जीवन में कोई व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य (mental health) अवस्था के साथ रह रहा है। अच्छा मानसिक स्वास्थ्य, अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य की ओर ले जाता है। यह रिपोर्ट इस बदलाव के लिये एक मज़बूत उदाहरण पेश करती है।”
रिपोर्ट में, सभी स्तरों पर सकारात्मक व सतत विकास में मानसिक स्वास्थ्य की अहम भूमिका को ध्यान में रखते हुए, सर्वोत्तम उपायों व उदाहरण भी साझा किये गए हैं।
वर्ष 2019 में क़रीब एक अरब लोग, मानसिक विकार के साथ रह रहे थे, जिनमें कुल किशोरवय आबादी का 14 फ़ीसदी हिस्सा भी हैं। 50 वर्ष की उम्र से पहले प्रति 100 मौतों में से एक से अधिक के लिये आत्महत्या को ज़िम्मेदार बताया गया है।
बाल्यावस्था में यौन दुर्व्यवहार (childhood sexual abuse) और डराए-धमकाए जाने (Bullying) से पीड़ित होना, मानसिक अवसाद की बड़ी वजहों में बताया गया है। मानसिक विकार विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आम आबादी की तुलना में, गम्भीर मानसिक स्वास्थ्य अवस्था के साथ जीवन गुज़ार रहे लोगों की औसतन 10 से 20 साल पहले मौत हो जाती है।
वैश्विक स्तर पर सामाजिक और आर्थिक विषमताएँ (social and economic inequalities), सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति (public health emergencies), युद्ध और जलवायु संकट (war and climate crises), मानसिक स्वास्थ्य के लिये ढाँचागत जोखिम बताए गए हैं।
क्षेत्रवार भिन्नताएँ
मानसिक स्वास्थ्य अवस्था के साथ रह रहे लोगों के साथ भेदभाव, उन्हें कथित रूप से कलंकित किया जाना, या उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन, समुदायों व देखभाल व्यवस्थाओं में बड़े स्तर पर व्याप्त है। 20 देशों में आत्महत्या की कोशिश को अब भी एक अपराध के रुप में दर्ज किया जाता है।
अनेक देशों में, सर्वाधिक निर्धन और वंचित समूहों के लिये मानसिक बीमारी (mental illness) का जोखिम सबसे अधिक होता है, और उनके पास उपयुक्त देखभाल सेवा पाने की सम्भावना भी सबसे कम होती है।
कोविड-19 महामारी से पहले ही, सीमित संख्या में ही लोगों को कारगर, पहुँच के भीतर और गुणवत्तापरक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ सुलभ थीं। उदाहरणस्वरूप, विश्व भर में मनोविकार के कुल पीड़ितों में से 71 प्रतिशत को मानसिक स्वास्थ्य सेवा नहीं मिल पाती है।
मनोविकार की अवस्था में रहने वाले 70 प्रतिशत लोग, उच्च-आय वाले देशों में रहते हैं। निम्न-आय वाले देशों में केवल 12 प्रतिशत मरीज़ों को ही मानसिक स्वास्थ्य इलाज हासिल है। ज़्यादातर देशों में मानसिक अवसाद के रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवा पहुँच से बहुत दूर है।
उच्च-आय वाले देशों में, मानसिक अवसाद के साथ जीवन गुज़ारने वाले एक-तिहाई लोगों को ही औपचारिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल मिल पाती है। उच्च-आय वाले देशों में उपयुक्त देखभाल 23 फ़ीसदी और निम्न, निम्नतर और मध्य आय वाले देशों में यह घटकर तीन फ़ीसदी रह जाती है।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने यह रिपोर्ट नवीनतम तथ्यों, सर्वोत्तम उपायों के उदाहरण और व्यक्तियों के निजी अनुभवों के आधार पर तैयार की है, जो बताती है कि किन क्षेत्रों में, बदलाव की आवश्यकता है और ये बदलाव किस प्रकार सुनिश्चित किया जा सकता है।
रिपोर्ट में सभी हितधारकों से एक साथ मिलकर काम करना, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती से निपटने के लिये मज़बूत संकल्प लेना, मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पर्यावरण को नए सिरे से आकार देना और उन प्रणालियों को पुख़्ता बनाना शामिल है, जिनसे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की जाती है।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के सभी 194 सदस्य देशों ने, मानसिक स्वास्थ्य कार्रवाई योजना (Comprehensive mental health action plan 2013–2030, का समर्थन किया है, जिसके तहत मानसिक स्वास्थ्य में रूपान्तरकारी बदलाव लाने के लिये लक्ष्य स्थापित किये गए हैं।
अहम अनुशंसाएँ
पिछले एक दशक में कुछ हद तक प्रगति दर्ज की गई है, मगर इसकी गति धीमी है। पिछले कई दशकों से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे नज़रअन्दाज़ किया जाता रहा है और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। इसके मद्देनज़र, रिपोर्ट में सभी देशों से मानसिक स्वास्थ्य कार्रवाई योजना को लागू करने की दिशा में तेज़ी से क़दम बढ़ाने का आग्रह किया है।
इस क्रम में, अनेक अनुशंसाएँ भी साझा की गई हैं, जिनके तहत मानसिक स्वास्थ्य के प्रति रवैयों में बदलाव लाना, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों से निपटना और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये प्रणालियों को मज़बूत करना है।
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