ज़कार्ता। इंडोनेशिया में शोधकर्ताओं ने डेंगू के मच्छरों से लड़ने के लिए मच्छरों की ही एक दूसरी प्रजाति को पालने का तरीका निकला है। इन मच्छरों के अंदर एक तरह का बैक्टीरिया होता है जो डेंगू के वायरस से लड़ सकता है। इस शोध की शुरुआत विश्व मच्छर कार्यक्रम (डब्ल्यूएमपी) ने की थी।
शोध के मुताबिक वोल्बाचिया एक सामान्य बैक्टीरिया है जो कीड़े-मकोड़ों की 60 प्रजातियों में पाया जाता है। इनमें कुछ मच्छर, फल मक्खियां, कीट-पतंगे, ड्रैगनफ्लाई और तितलियां भी शामिल हैं। लेकिन यह डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छरों में नहीं नहीं पाया जाता है। डब्ल्यूएमपी के एक सदस्य ने बताया, "सैद्धांतिक रूप से हम 'अच्छे' मच्छरों को पाल रहे हैं। डेंगू वाले मच्छर वोल्बाचिया वाले मच्छरों के साथ प्रजनन करेंगे जिसे वोल्बाचिया मच्छर यानी 'अच्छे' मच्छर पैदा होंगे।
अगर वो लोगों को काट भी लेंगे तो उससे लोगों को कुछ होगा नहीं" सफल प्रयोग 2017 से डब्ल्यूएमपी द्वारा ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय और इंडोनेशिया के गदजा मादा विश्वविद्यालय में कराए जा रहे एक संयुक्त अध्ययन के तहत इंडोनेशिया के योग्यकर्ता शहर के कुछ डेंगू से प्रभावित इलाकों में प्रयोगशालाओं में पाले गए वोल्बाचिया मच्छरों को छोड़ा जा रहा है।
इस परीक्षण के नतीजे जून में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे थे। नतीजों में देखा गया था कि वोल्बाचिया वाले मच्छरों को छोड़ने से डेंगू के मामलों में 77 प्रतिशत गिरावट और अस्पताल में भर्ती कराने के मामलों में 86 प्रतिशत तक की गिरावट आई।
डब्ल्यूएमपी के मुख्य शोधकर्ता आदि उतरीनी ने बताया, "हमें इस तकनीक पर पूरा भरोसा है, विशेष रूप से उन इलाकों के लिए जहां एडीज एजिप्टी मच्छर संक्रमण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है" उतरीनी इंडोनेशिया के डेंगू मिटाओ कार्यक्रम पर 2011 से काम कर रहे हैं।
lतेजी से बढ़ती समस्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वैश्विक स्तर पर डेंगू के मामले हाल के दशकों में काफी तेजी से बढ़े हैं और अब दुनिया की करीब आधी आबादी को डेंगू होने का खतरा है। अनुमान है कि दुनिया में हर साल डेंगू के करीब 10 करोड़ से 40 करोड़ मामले सामने आते हैं। डब्ल्यूएमपी के परीक्षण में अपने परिवार को स्वेच्छा से भर्ती कराने वाले 62 वर्षीय स्री पुरवानिंग्सि ने बताया, "मेरे तीनों बच्चों को डेंगू हो चुका है और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था। मैं हमेशा यही सोचता रहता हूं कि मेरे गांव को स्वस्थ और साफ कैसे रखा जाए।"
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