मुंबई। मुंबई स्थित हेल्थटेक स्टार्ट-अप, हेस्टैकएनालिटिक्स ने देश भर में टीबी संक्रमणों की संख्या में 49% की खतरनाक वृद्धि की जानकारी दी है। ये ऐसे मामले हैं जो बड़े पैमाने पर बिना निदान के रहते हैं। यह स्थिति लोगों में इस बीमारी के बारे में जागरूकता की बढ़ती आवश्यकता और देश में सटीक निदान सेवाओं के विस्तार की आवश्यकता की ओर इशारा करती है। हेस्टैकएनालिटिक्स को भारत सरकार के विज्ञान व तकनीक मंत्रालय, हेल्थकेयर (healthcare) क्षेत्र के दिग्गज जैसे डॉ. वेलुमणि और निजी संस्थान जैसे जीई हेल्थकेयर (GE Healthcare) और इंटेल इंडिया स्टार्ट अप प्रोग्राम (Start Up Program) का समर्थन प्राप्त है।
तपेदिक (tuberculosis) के सटीक और समय पर निदान को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर टिप्पणी करते हुए, हेस्टैक एनालिटिक्स के सह-संस्थापक और सीईओ, डॉ अनिर्वन चटर्जी ने कहा, “हेस्टैक एनालिटिक्स में हमारा लक्ष्य उन तकनीकों को नया करना और सक्षम करना है जो वर्तमान डायग्नोस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र में अंतराल और चुनौतियों को कम करती हैं। जीनोमिक्स ऑन्कोलॉजी (oncology), तपेदिक और संक्रामक रोगों (infectious diseases) जैसे चिकित्सा क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा का चेहरा बदल रहा है क्योंकि डब्ल्यूजीएस (WGS) की तकनीक ने सही रोगजनकों की पहचान करने और बीमारी के समय पर निदान में मदद करने के लिए सफल समाधान दिए हैं। सरकार और बिरादरी के समर्थन से जीनोम सीक्वेंसिंग जैसी अगली पीढ़ी की मेडटेक की शक्ति का उपयोग करके, हम इस विश्व टीबी दिवस के साथ 2025 तक एक टीबी मुक्त भारत प्राप्त करने में मदद करने में योगदान करने का संकल्प लेते हैं।”
रिपोर्ट की राज्यवार जानकारी से अनुमान लगता है कि यूपी 2017 से हर साल टीबी के करीब आधा मिलियन मामलों की रिपोर्ट कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि इस समय दुनिया भर में लगभग 4.1 मिलियन लोग तपेदिक (ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी) से पीड़ित हैं, लेकिन ये मामले अभी भी बिना निदान और बिना रिपोर्ट के बने हुए हैं। 2020 में टीबी से कुल 1.5 मिलियन (15 लाख) लोगों की मृत्यु हुई। इससे यह दुनिया भर में मृत्यु का 13वां प्रमुख कारण बन गया और कोविड -19 के बाद दूसरा प्रमुख संक्रामक किलर है।
वैसे तो भारत 2025 तक टीबी मुक्त होने के मिशन पर है, लेकिन हेस्टैक एनालिटिक्स की रिपोर्ट बताती है कि देश में दुनिया भर के सबसे ज्यादा तपेदिक के मामले हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा, 65% मामले आबादी के उस वर्ग 15-45 में दर्ज किए गए हैं जो आर्थिक रूप से सबसे अधिक उत्पादक माना जाता है। इसका हानिकारक प्रभाव न केवल अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है बल्कि नियत समय में इसका समाधान नहीं किया गया तो स्थिति काफी बिगड़ सकती है।
अपनी रिपोर्ट में हेस्टैकएनालिटिक्स ने देश में टीबी के बढ़ने और फैलने में योगदान देने वाले कारणों पर प्रकाश डाला है और इसके प्रभाव को कम करने के लिए उपयुक्त नैदानिक उपायों को अपनाने की सिफारिश करता है क्योंकि भारत इस बीमारी के उन्मूलन की दिशा में काम करना जारी रखे हुए है।
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