नई दिल्ली। कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट के सबवैरिएंट BA.2 को लेकर दुनिया भर में चिंता बढ़ती जा रही है। नेचर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, BA.2 कोविड-19 के एंटीबॉडी ट्रीटमेंट में जुटे डॉक्टर्स को दोबारा सोचने पर मजबूर कर सकता है। यह रिपोर्ट कई अध्ययनों पर आधारित है। इससे पता चला कि BA.2 को बेअसर करने के लिए सोट्रोविमैब की क्षमता में भारी गिरावट देखी गई है, जो कि कोरोना के कुछ उपचारों में से एक है।
NYU ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम ने पाया कि ओमिक्रॉन BA.2 रेजेनरॉन, एली लिली, सोट्रोविमैब और इवुशेल्ड चिकित्सीय मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से निष्प्रभावी नहीं हुआ। रिसर्चर्स बताते हैं कि रिजल्ट SARS-CoV-2 के खिलाफ व्यापक रूप से बेअसर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की पहचान करने में कठिनाई पाते हैं।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी वैगेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन (Columbia University Vagelos College of Physicians and Surgeons) के शोधकर्ताओं की एक अन्य टीम ने पाया कि BA.2 ने मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने वाले 19 में से 17 के लिए प्रतिरोध दिखाया, जिसने BA.1 के खिलाफ असर दिखाया था। दोनों अध्ययनों की अभी तक एक साथ समीक्षा नहीं की गई है और ये प्री-प्रिंट में उपलब्ध हैं।
प्रयोगशाला में मिले नतीजों का ह्यूमन ट्रीटमेंट के दौरान क्या होगा असर
कोलंबिया विश्वविद्यालय के वायरोलॉजिस्ट और अध्ययन के सह-लेखक डेविड हो ने कहा कि प्रयोगशाला में मिले नतीजे ह्यूमन ट्रीटमेंट के दौरान अलग भी हो सकते हैं। हो ने कहा, "हम सिर्फ इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं कि BA.2 प्रयोगशाला में सोट्रोविमैब के लिए काफी प्रतिरोधी है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या आप रोगियों में बीए.2 को पूरी तरह से कवर कर सकते हैं।"
भारत, चीन और डेनमार्क में BA.2 के मामले बढ़ रहे
BA.1 अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों में वैरिएंट ऑफ कंसर्न बना हुआ है। भारत, चीन और डेनमार्क में BA.2 के मामले बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि ओमिक्रॉन का बीए.2 वैरिएंट मूल से ज्यादा गंभीर नहीं है। WHO के सीनियर अधिकारी मारिया वान केरखोव ने कहा कि BA.2 की तुलना में BA.1 से रोग की गंभीरता में कोई अंतर नहीं मिला है। इनमें गंभीरता का स्तर समान है, जो कि अस्पताल में भर्ती होने के जोखिम से जुड़ा है।
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