वाशिंगटन। जल की अपर्याप्त आपूर्ति और ख़राब गुणवत्ता वाली जल निकासी प्रणालियों समेत, अनुपयुक्त जल प्रबन्धन के कारण मिट्टी का खारापन बढ रहा है। खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने इसे एक ऐसी समस्या बताया है जिससे वैश्विक ख़ाद्य सुरक्षा के लिये संकट बढ़ रहा है।
मृदा (soil) या मिट्टी के खारेपन से तात्पर्य मिट्टी में नमक के अत्यधिक स्तर का पाया जाना है, जिससे पौधों और वनस्पति (vegetation) का विकास प्रभावित होता है और यह जीवन के लिये ज़हरीला भी हो सकता है। ऐसा स्वाभाविक वजहों से हो सकता है, जैसेकि मरुस्थलों में जल की कमी और गहन वाष्पीकरण के कारण, या फिर मानवीय गतिविधियाँ भी मिट्टी में खारेपन की वजह बन सकती हैं।
‘विश्व मृदा दिवस’ (World Soil Day) हर वर्ष 5 दिसम्बर को मनाया जाता है, जिसके ज़रिये स्वस्थ मिट्टी की अहमियत को रेखांकित करने के साथ-साथ मृदा संसाधनों के टिकाऊ इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है।
यूएन एजेंसी के महानिदेशक क्यू डोन्गयू ने शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा, “मिट्टी, कृषि की नींव है और दुनिया भर में किसान, हमारे द्वारा खाये जाने वाले 95 फ़ीसदी भोजन के उत्पादन के लिये मिट्टी पर निर्भर हैं। इसके बावजूद, हमारी मृदाओं के लिये जोखिम पैदा हो गया है।”
यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि कृषि के टिकाऊ तौर-तरीक़ों के अभाव, प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन और बढ़ती विश्व आबादी के कारण, मृदा पर दबाव बढ़ रहा है, और दुनिया भर में चिन्ताजनक दर पर मृदाक्षरण हो रहा है।
एक अनुमान के अनुसार, 83 करोड़ हैक्टेयर से अधिक मृदा, पहले से ही खारेपन से प्रभावित है, जोकि विश्व में भूमि की कुल सतह का 9 फ़ीसदी, या मोटे तौर पर, भारत के आकार का चार गुना है। खारेपन से प्रभावित मिट्टी, सभी महाद्वीपों और हर प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में पाई जाती है। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में मध्य एशिया, मध्य पूर्व, दक्षिण अमेरिका, उत्तर अफ़्रीका और प्रशान्त क्षेत्र हैं।
मृदा संसाधनों के बेहतर प्रबन्धन के लिये, यूएन एजेंसी देशों को ज़रूरी समर्थन मुहैया करा रही है। उदाहरणस्वरूप, उज़बेकिस्तान में, यूएन एजेंसी की वैश्विक मृदा साझीदारी (Global Soil Partnership) के तहत, वैज्ञानिकों scientist) के साथ मिलकर जलवायु-स्मार्ट मृदा प्रबन्धन (smart soil management) तरीक़ों को विकसित किया जा रहा है। इससे, मिट्टी के खारेपन से प्रभावित इलाकों में फ़सलों (crops) को फिर से फलने-फूलने में मदद मिल सकती है।
इसके अलावा, यूएन एजेंसी (UN Agencies) ने भरोसेमन्द डेटा की उपलब्धता पर भी बल दिया है। अनेक देश इस विषय में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 142 देशों में से 55 प्रतिशत के पास मृदा विश्लेषण के लिये पर्याप्त क्षमता का अभाव है। इनमें से अधिकाँश देश अफ़्रीका (Africa) और एशिया (Asia) में स्थित हैं।
यूएन एजेंसी के मुताबिक़, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये, स्वस्थ मृदा की अहम भूमिका पर, पिछले महीने कॉप26 जलवायु सम्मेलन के दौरान भी चर्चा हुई। एजेंसी ने देशों से आग्रह किया है कि टिकाऊ मृदा प्रबन्धन के लिये मज़बूत संकल्प लेते हुए, मिट्टी से जुड़ी जानकारी व क्षमताओं को जल्द से जल्द बेहतर बनाया जाना होगा।
हुज़ैफ़ा अबरार March 20 2025 0 3885
हुज़ैफ़ा अबरार March 21 2025 0 3219
हुज़ैफ़ा अबरार March 03 2025 0 11211
एस. के. राणा March 06 2025 0 9213
एस. के. राणा March 07 2025 0 8880
एस. के. राणा March 08 2025 0 7992
हुज़ैफ़ा अबरार March 03 2025 0 11211
एस. के. राणा March 06 2025 0 9213
एस. के. राणा March 07 2025 0 8880
एस. के. राणा March 08 2025 0 7992
British Medical Journal February 25 2025 0 5772
सौंदर्या राय May 06 2023 0 77244
सौंदर्या राय March 09 2023 0 82637
सौंदर्या राय March 03 2023 0 80769
admin January 04 2023 0 81708
सौंदर्या राय December 27 2022 0 71757
सौंदर्या राय December 08 2022 0 61438
आयशा खातून December 05 2022 0 113553
लेख विभाग November 15 2022 0 84472
श्वेता सिंह November 10 2022 0 94962
श्वेता सिंह November 07 2022 0 83018
लेख विभाग October 23 2022 0 68021
लेख विभाग October 24 2022 0 69350
लेख विभाग October 22 2022 0 76182
श्वेता सिंह October 15 2022 0 82680
श्वेता सिंह October 16 2022 0 77687
फुंसी को खत्म करने के लिए सबसे पहले तुलती के पत्तों को पीसकर लेप तैयार कर लें और फिर इसे फोड़े-फुंसी
सेंट्रल टीबी डिविजन के निर्देशों के अनुक्रम में क्षय रोगियों के पूर्ण स्वस्थ होने के लिए गुणवत्तापूर
भाशय के कैंसर के विभिन्न प्रकार होते हैं। सबसे आम प्रकार एंडोमेट्रियम में शुरू होता है, जो गर्भाशय क
घोड़ों में पाई जाने वाली ग्लैंडर्स नामक बीमारी ने राजस्थान में दस्तक दे दी है और इसका संक्रमण फैलने
सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ भारत को पहली स्वदेशी वैक्सनी मिलने वाली है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और बा
गुर्दे की बीमारियाँ ज्यादातर मधुमेह, उच्च रक्तचाप और धमनियों के सख्त होने के कारण होती है। हालाँकि इ
इस कारण बच्चों को पिछले साल आवश्यक टीका नहीं मिल पाया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ द्वारा जा
देश के ड्रग कंट्रोलर ने 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों और किशोरों के लिए बायोलाजिकल-E की कोविड वैक्स
यूँ तो यह दुःख भरी घटना है कि अस्पताल में जगह ना मिलने से गर्भवती भारतीय महिला की मौत हो गई है लेकिन
बच्ची जन्म के बाद सांस नहीं ले पा रही थी, जिसके बाद डॉक्टर सुरेखा अपने मुंह से नवजात को तब-तक सांस द
COMMENTS