ऐसे दौर में, जब अधिकांश मरीज एलौपैथ की तरफ अग्रसर हैं, डा. सौरभ सिंह होम्योपैथ की अलख जगा रहे हैं। जो लोग एलौपैथ से ठीक नहीं हुए, वो होम्योपैथ से ठीक हो रहे हैं।
हेल्थजागरण ने ट्रीटमेंट करने के दौरान डा. सौरभ की एक खास अदा देखी है। वे मरीजों से उनके मर्ज के बारे में तो पूछते ही हैं, उनसे बातें भी खूब करते हैं। गप्पें खूब लड़ाते हैं। शादी हुई की नहीं? घर का माहौल कैसा है? पिताजी-माताजी कैसे हैं? खाने में क्या अच्छा लगता है? क्या खराब लगता है? बिजनेस कैसा चल रहा है? नौकरी कैसी चल रही है? कोई टेंशन तो नहीं है? है तो कब से है? कारण क्या है तनाव का...? आदि-आदि।
ये वो सवाल हैं जो आम आदमी अमूमन बताना नहीं चाहता लेकिन डा. सौरभ हैं कि अपने ही स्टाइल में इसे पूछ लेते हैं और जवाब भी निकलवा लेते हैं। दरअसल, होम्योपैथी की यही खासियत है। किसी भी मर्ज को तीन तरीके से जानने और समझने की कोशिश होती है। उन्हीं तीन तरीकों में एक है आपके मेंटल हेल्थ को जानना और समझना। डॉ सौरभ इस काम को बेहद शानदार तरीके से कर रहे हैं। यही वजह है कि मरीज तेजी से ठीक हो रहे हैं और भीड़ बढ़ती जा रही है।
डा. सौरभ कुमार सिंह से www.healthjagaran.com के संपादक ने कई विषयों पर भी लंबी बातचीत की। पेश है, संपादित अंशः-
हेल्थ जागरण - आप अपने बारे में कुछ बताएं।
डा. सौरभ - मेरा जन्म 1991 में बलिया में हुआ। पिताजी शिक्षक हैं। उनकी तमन्ना थी कि मैं डाक्टर बनूं। जब बड़ा हुआ तो मेडिकल के क्षेत्र में आने की इच्छा हुई। मैं देखता था कि लोग बीमार होते हैं और डाक्टर के पास जाकर वह धीरे-धीरे ठीक होने लगते थे। मेरे मन में यह बात घर कर गई। पिताजी की चाह और मेरी भी इच्छा का परिणाम है कि मैं आज डाक्टर बन पाया।
हेल्थ जागरण - आपने क्या पढ़ाई की, डिग्री कहां से ली और कब ली?
डा. सौरभ - मैंने government medical collage, azamgarh से 2019 में डिग्री ली। मैंने BHMS की डिग्री ली। कालेज के दिनों में ही मैं अपने सीनियर्स के साथ बैठता था। उनके रिसर्च को देखता था। जब वो प्रैक्टिस में आए तो मैंने उनके साथ भी बहुत कुछ सीखा। मरीजों के साथ चिकित्सकों का व्यवहार कैसा होना चाहिए, यह मैंने अपने वरिष्ठों से सीखा। उनका सिखाया हुआ ही आज मेरे काम आ रहा है। जो पेशेंट मुझसे मिल कर जाते हैं, उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होती है।
हेल्थ जागरण - ऐसा माना जाता है कि होम्योपैथ का इलाज बहुत लंबा चलता है...
डा. सौरभ - देखिए सर, ये मिथ बन गया है कि होम्योपैथ का इलाज लंबा चलता है। वास्तव में ऐसा है नहीं। आप होम्योपैथी डाक्टर के पास आते ही तब हैं जब आपको एलोपैथ से राहत नहीं मिलती और मर्ज आपका बढ़ जाता है। आप मर्ज का पता लगते ही जब होम्यपैथ में आते हैं, तब यह कम वक्त में ही आपको क्योर कर देता है। मरीज बीमारियों को जटिल बना देता है। होम्योपैथ में इतनी ताकत है कि किसी को बुखार आया हो तो सामने बैठे-बैठे 5 घंटे में बुखार खत्म हो जाता है। किसी को अस्थमा का सीवियर अटैक आया हो तो भी होम्योपैथ कुछ घंटों में ही राहत दे देता है। होम्योपैथ का दुखड़ा यही है कि मरीज हमारे पास इनीशियल स्टेज में नहीं पहुंचता। अगर वह इनीशियल स्टेज में आ जाए तो लंबा वक्त लगने का कोई कारण है ही नहीं।
हेल्थ जागरण - ये मिथ तोड़ेगा कौन?
डा. सौरभ - हम लोग तोड़ रहे हैं। मैं अपने हर क्योर मरीज को सोशल मीडिया पर डाल रहा हूं। होम्योपैथ का मनोविज्ञान से गहरा नाता है। हम मरीज का प्री और पोस्ड वीडिओ भी रखते हैं। वह टेस्टीमोनियल देता है कि वह ठीक हो रहा है। इसे भी हम लोग सोशल मीडिया पर लेकर जा रहे हैं। तो मिथ तो टूट रहे हैं। एलोपैथ में जो मरीज किन्हीं कारणों से ठीक नहीं हो पाते, वो होम्योपैथ में ठीक हो जाते हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि हम उसकी बीमारी को तात्कालिक रूप से ठीक नहीं करते वरन कोशिश करते हैं कि उसे जड़ से ही खत्म कर दें। कई दवाईयां लंबी चलती हैं पर उनका कोई साइड इफ्केट नहीं होता। इसलिए, लोगों को यह समझना होगा कि अगर किसी बीमारी को जड़ से खत्म करना है तो होम्योपैथ से बेहतर कुछ है ही नहीं। इसी खासियत के कारण होम्योपैथ पूरे विश्व में नंबर दो की चिकित्सा पद्धति है।
हेल्थ जागरण - मैंने आब्जर्व किया कि आप आप पेशेंट से बातें बहुत करते हैं...क्या यह जरूरी है?
डा. सौरभ - बिल्कुल सर। इसके पीछे मनोविज्ञान है। होम्योपैथ से आप मनोविज्ञान को हटा दें तो रिजल्ट बेहतर नहीं मिलेगा। बीमारी को ट्रेस करने की तीन विधाएं हैं। एक तो मरीज खुद ही बता देगा कि उसे दिक्कत क्या है। दूसरा, उसकी शारीरिक स्थिति से भी आपको पता चल जाएगा कि दिक्कत क्या है। तीसरा है मनोविज्ञान। आप जब उससे बात करेंगे तभी पता चल सकेगा कि उसके दिमाग में क्या है। उसके दिमाग में चल क्या रहा है। बातचीत में हम यही समझना चाहते हैं कि उसका मेंटल स्टेटस क्या है। हम दवा दें और उसके दिमाग में चलता रहे कि फालतू की दवा है, कोई असर होगा कि नहीं, पता नहीं तो यकीन मानें उस दवा का उस पर असर नहीं के बराबर ही होगा। इसलिए, हम पेशेंट के मनोविज्ञान को समझने की भरपूर कोशिश करते हैं। यही वजह है कि हम पहली बार में पेशेंट का ज्यादा वक्त लेते हैं। अब पेशेंट को समझने के लिए वक्त तो देना ही पड़ेगा।
हेल्थ जागरण - आप नई पीढ़ी के हैं। होम्योपैथ को लेकर नई पीढ़ी की सोच में कोई बदलाव देखने को मिला आपको?
डा. सौरभ - बिल्कुल सर। नई पीढ़ी की सोच बदल रही है। नई पीढ़ी के लोग हर किस्म की बीमारी को समझने के लिए ज्यादा वक्त दे रहे हैं। वो बहुत करीने से चीजों को समझ रहे हैं। हर माह एक से दो वर्कशाप भी हम लोग आयोजित कर रहे हैं और बच्चों को राइट होम्योपैथी के बारे में बता रहे हैं। इसका असर तब और दिखेगा, जब ये प्रैक्टिस में जाएंगे।
हेल्थ जागरण - होम्योपैथ को लेकर सरकारी रूख के बारे में क्या कहेंगे?
डा. सौरभ - कई बार लगता है कि सरकार होम्योपैथ को लेकर दोहरा रुख अपनाती है। जितना ध्यान एलौपैथ पर दिया जाता है, उतना होम्योपैथ पर नहीं। सरकार ने आयुर्वेद पर भी बहुत ध्यान दिया है लेकिन होम्योपैथ तो हाशिए पर है। बेशक, होम्योपैथ में पहले की तुलना में थोड़ा सुधार आया है पर ये हमारे खुद के शोध का परिणाम है। जबकि होम्योपैथ विश्व की नंबर 2 चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथ की प्रैक्टिस करने वाला होम्योपैथ की ही प्रैक्टिस करेगा। उधर, आयुर्वेद पढ़ कर आने वाला एलोपैथ की प्रैक्टिस कर रहा है। गड़बड़ी वहीं हो रही है। कोरोना पीरियड में होम्यौपैथ का रिकार्ड शानदार रहा है। लोग मास्क लगाकर जिंदगी बचाते रहे जबकि आगरा में होम्योपैथ की प्रैक्टिस करने वालों ने बिना मास्क के ही मरीजों का ट्रीटमेंट किया।
हुज़ैफ़ा अबरार March 20 2025 0 3885
हुज़ैफ़ा अबरार March 21 2025 0 3219
हुज़ैफ़ा अबरार March 03 2025 0 11211
एस. के. राणा March 06 2025 0 9213
एस. के. राणा March 07 2025 0 8880
एस. के. राणा March 08 2025 0 7992
हुज़ैफ़ा अबरार March 03 2025 0 11211
एस. के. राणा March 06 2025 0 9213
एस. के. राणा March 07 2025 0 8880
एस. के. राणा March 08 2025 0 7992
British Medical Journal February 25 2025 0 5772
सौंदर्या राय May 06 2023 0 77244
सौंदर्या राय March 09 2023 0 82637
सौंदर्या राय March 03 2023 0 80769
admin January 04 2023 0 81708
सौंदर्या राय December 27 2022 0 71757
सौंदर्या राय December 08 2022 0 61438
आयशा खातून December 05 2022 0 113553
लेख विभाग November 15 2022 0 84472
श्वेता सिंह November 10 2022 0 94962
श्वेता सिंह November 07 2022 0 83018
लेख विभाग October 23 2022 0 68021
लेख विभाग October 24 2022 0 69350
लेख विभाग October 22 2022 0 76182
श्वेता सिंह October 15 2022 0 82680
श्वेता सिंह October 16 2022 0 77687
डॉ. मजहर हुसैन, निदेशक (चिकित्सा स्वास्थ्य) ने भी दवा सुरक्षा को ध्यान रखने पर जोर दिया और कहा कि मर
खून पतला करने की दवा ले रहीं करीब एक चौथाई प्रेगनेंट महिलाओं की हालत गंभीर हो रही हैं। इन्हें डिलीवर
इस मॉर्डन अस्पताल में 500 से ज्यादा पक्षियों के इलाज लिए वार्डों में पिंजरे लगाए गए हैं। साथ ही 300
16 और 17 साल आयुवर्ग के प्रत्येक किशोर को आने वाले दिनों में टीके की तीसरी खुराक दी जाएगी। ऐसे किशोर
मरीजों का इलाज गोपनीयता की सुरक्षा के साथ गुणवत्तापूर्ण तरीके से किया जाता है। आईवीएफ विशेषज्ञ डा. ग
अंडों में बहुत सारा प्रोटीन पाया जाता है। अंडा खाने तथा लगाने दोनों में उपयोग कर सकते है। अंडा लगान
नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार कोरोनारोधी टीके की बूस्टर खुराक ओमीक्रोन के असर को खत्म कर देत
मार्च 2020 से दुनिया भर में करीब 50 लाख बच्चों ने कोरोना के कारण माता-पिता या देखभाल करने वाले को खो
अस्पतालों के इमरजेंसी डिपार्टमेंट और एम्बुलेंस सेवाओं में काम कर रहे डाक्टरों, नर्सों और पेरामेडिकल
Shellios Technolabs नाम के एक स्टार्टअप ने एंटी पॉल्यूशन हेलमेट बनाया है. इस हेलमेट का नाम PUROS है।
COMMENTS