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जन्म के समय बच्चे के पास पीडियाट्रिशियन का होना क्यों जरूरी है?

ट्रेनिंग प्रोग्राम में फर्स्ट गोल्डन मिनट प्रोजेक्ट की जानकारी दी गई जिसमें प्रदेश भर से आए पीडियाट्रिशियन व नर्सों को पैदा होने वाले बच्चों के पहले महत्वपूर्ण एक मिनट के बारे में लाइव डेमो ट्रेनिंग दी गई।

रंजीव ठाकुर
June 04 2022 Updated: June 04 2022 03:43
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जन्म के समय बच्चे के पास पीडियाट्रिशियन का होना क्यों जरूरी है?

लखनऊ। मेदांता सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में एडवांस न्योनेटल रिसेसीटेशन प्रोग्राम का आयोजन किया गया। इसमें उत्तर प्रदेश के विभिन्न अस्पतालों से पीडियाट्रिशियंस व नर्सों (nurses) को ट्रेनिंग के लिए बुलाया गया।

ट्रेनिंग प्रोग्राम में फर्स्ट गोल्डन मिनट प्रोजेक्ट (First Golden Minute Project) की जानकारी दी गई जिसमें प्रदेश भर से आए पीडियाट्रिशियन (paediatricians) व नर्सों को पैदा होने वाले बच्चों के पहले महत्वपूर्ण एक मिनट के बारे में लाइव डेमो ट्रेनिंग दी गई। कार्यक्रम के समन्वयक मेदांता अस्पताल के नियोनेटल यूनिट (Neonatal Unit) के हेड एवं सीनियर कंसल्टेंट डॉ आकाश पंडिता थे।

डॉ आकाश पंडिता ने बताया कि ये प्रोग्राम इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स एंड नेशनल न्यूनेटोलॉजी फोरम की ओर से आयोजित किया जाता है। चार वर्ष के बाद ये ट्रेनिंग कार्यक्रम लखनऊ में आयोजित हुआ है। इसे इस बार मेदांता सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल (Medanta Superspecialty Hospital) ने आयोजित करवाया है।

डॉ पंडिता ने बताया कि कई बार पैदा होते समय नवजात रोते नहीं है इसका कारण होता है कि किसी न किसी वजह से उनके ब्रेन में ऑक्सीजन (oxygen) नहीं पहुंच पाती है। इसे बर्थ एस्फिक्सिया (asphyxia) कहते हैं। ऐसे में अगर कोई ट्रेंड पीडियाट्रिशिन मौजूद न हो तो बच्चे की जान बचाना मुश्किल हो जाता है।

उन्होंने जानकारी दी कि निओनेटल डेथ (neonatal death) के प्रमुख कारण हैं प्रीमैच्योरिटी इंफेक्शन बर्थ एस्फिक्सिया होते हैं। यूपी में बर्थ एस्फिक्सिया से नवजातों की मरने का प्रतिशत  20 से 25 प्रतिशत तक है। उन्होंने ट्रेनिंग में बताया कि डिलीवरी (delivery) कराने के बाद बच्चे का पहला मिनट गोल्डन मिनट होता है।

अगर बच्चा पैदा होने के बाद रोया नहीं तो ये बर्थ एक्फेक्सिया के कारण होता है। ऐसे में नवजात के लिए ये गोल्डन पीरयड होता है ये एक मिनट बर्बाद हो गया तो उसकी मौत भी हो सकती है। अगर बच्चा किसी तरह से बच भी जाता है तो वह मानसिक रूप से अक्षम हो जाता है। साथ ही कहा कि डिलीवरी के समय एक प्रशिक्षित पीडियाट्रिशियन व नर्स की जरूरत होती है। अगर पैदा होने पर बच्चे को ये समस्या हो

इसके बाद पीडियाट्रिशियन को बुलाया जाए तो वो एक मिनट का गोल्डन समय चला जाता है। ऐसे में बच्चे की जान बचाना बेहद मुश्किल हो जाता है।

डॉ पंडिता ने बताया हमारे हॉस्पिटल में हर डिलीवरी के समय एक प्रशिक्षित पीडियाट्रिशियन व ट्रेंड नर्सेस मौजूद रहती हैं। साथ ही हमारे यहां नियोनेटल केयर की पूरी यूनिट भी है। हमारा हॉस्पिटल समय समय पर इस तरह की वर्कशाप आयोजित करता रहता है।

हमारा मकसद अभिभावकों को भी जागरूक करना है कि वो जब भी डिलीवरी के लिए जाएं तो हॉस्पिटल में इन हाउस पीडियाट्रिशियन्स भी देंखे ताकि नवजात को किसी भी तरह की समस्या होने पर रेफर करने की नौबत न आए। अमूमन 90 फीसद डिलीवरी में नवजात को रिससिटेशन (resuscitation) की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन 10 फीसद मामलों में पड़ती है। बर्थ एस्फिक्सिया नार्मल डिलीवरी में भी हो सकता है।

इसके अलावा उन्होंने जानकारी दी कि बर्थ एस्फिक्सिया से ग्रसित बच्चे को 72 घंटे तक हाइपोथर्मिया की थेरेपी दी जाती है। शहर में मेदांता हास्पिटल मात्र ऐसा हॉस्पिटल है जहां ये सुविधा मौजूद है। कार्यक्रम में प्रदेश भर से 50 से ज्यादा पीडियाट्रिशियन व नर्सेस ने भाग लिया।

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