लखनऊ। मातृत्व स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने पर सरकार व स्वास्थ्य विभाग का पूरा जोर है। इसके तहत हर जरूरी बिन्दुओं का खास ख्याल रखते हुए जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है ताकि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर (maternal and child mortality rate) को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके। समुदाय में इस बारे में पर्याप्त जागरूकता लाने और इसके लिए मौजूद हर सुविधाओं का लाभ उठाने के बारे में जागरूकता के लिए ही हर साल 11 अप्रैल को सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है।
संयुक्त निदेशक-मातृत्व स्वास्थ्य उत्तर प्रदेश व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मंजरी टंडन का कहना है कि गर्भवती (pregnant) की प्रसव पूर्व मुफ्त जांच के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हर माह की नौ तारीख को स्वास्थ्य केन्द्रों पर विशेष आयोजन होता है। जहाँ एमबीबीएस (MBBS) चिकित्सक द्वारा गर्भवती की सम्पूर्ण जांच नि:शुल्क (free check up) की जाती है और कोई जटिलता नजर आती है तो उन महिलाओं को चिन्हित कर उन पर खास नजर रखी जाती है, ताकि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाया जा सके।
(संयुक्त निदेशक-मातृत्व स्वास्थ्य उत्तर प्रदेश व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मंजरी टंडन)
इसके अलावा पहली बार गर्भवती होने पर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana) के तहत सही पोषण और उचित स्वास्थ्य देखभाल के लिए तीन किश्तों में 5000 रूपये दिए जाते हैं ।
इसके अलावा संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana) है, जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने पर ग्रामीण महिलाओं को 1400 रूपये और शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1000 रूपये दिए जाते हैं ।
प्रसव के तुरंत बाद बच्चे की उचित देखभाल के लिए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (Janani Shishu Suraksha Program) है तो यदि किसी कारणवश मां की प्रसव के दौरान मृत्यु हो जाती है तो मातृ मृत्यु की समीक्षा भी होती है। सुरक्षित प्रसव के लिए समय से घर से अस्पताल पहुँचाने और अस्पताल से घर पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस की सेवा भी उपलब्ध है ।
जटिलता वाली गर्भवती (एचआरपी) की पहचान :
गर्भवती को पहले से कोई बीमारी हो:
वर्तमान गर्भावस्था में यह दिक्कत तो नहीं :
क्या कहते हैं विशेषज्ञ:
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मंजरी टंडन का कहना है कि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनायें चल रहीं हैं । इनका प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें । आशा कार्यकर्ता इसमें अहम् भूमिका निभा रहीं हैं । उनका कहना है कि मां-बच्चे को सुरक्षित करने का पहला कदम यही होना चाहिए कि गर्भावस्था के तीसरे-चौथे महीने में प्रशिक्षित चिकित्सक से जांच अवश्य करानी चाहिए ताकि किसी भी जटिलता का पता चलते ही उसके समाधान का प्रयास किया जा सके । इसके साथ ही गर्भवती खानपान का खास ख्याल रखे और खाने में हरी साग-सब्जी, फल आदि का ज्यादा इस्तेमाल करे, आयरन और कैल्शियम की गोलियों का सेवन चिकित्सक के बताये अनुसार करे । प्रसव का समय नजदीक आने पर सुरक्षित प्रसव के लिए पहले से ही निकटतम अस्पताल का चयन कर लेना चाहिए और मातृ-शिशु सुरक्षा कार्ड, जरूरी कपड़े और एम्बुलेंस का नम्बर याद रखना चाहिए । समय का प्रबन्धन भी अहम् होता है क्योंकि एम्बुलेंस को सूचित करने में विलम्ब करने और अस्पताल पहुँचने में देरी से खतरा बढ़ सकता है ।
गर्भावस्था की सच्ची सहेली बनीं आशा:
आशा कार्यकर्ता गर्भ का पता चलते ही गर्भवती का स्वास्थ्य केंद्र पर पंजीकरण कराने के साथ ही इस दौरान बरती जाने वाली जरूरी सावधानियों के बारे में जागरूक करने में सच्ची सहेली की भूमिका अदा करती हैं । इसके साथ ही प्रसव पूर्व जरूरी जांच कराने में मदद करती हैं । संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करतीं हैं और प्रसव के लिए साथ में अस्पताल तक महिला का साथ निभाती हैं ।
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