लखनऊ। पीठ के दर्द को आम दर्द मानकर नजरअंदाज न करें। इसे मामूली समझना या फिर पेन किलर खाकर टाल देना गंभीर बीमारी दे सकता है। डॉक्टरों की मानें तो हाल के दिनों में ऐसे केसों की संख्या में इजाफा हुआ है जो पीठ दर्द को मामूली मानकर अनदेखा करते रहे। समस्या बढ़ने पर डॉक्टर के पास पहुंचे तो स्पाइनल टीबी निकलकर सामने आई।
केजीएमयू के न्यूरोलाजी विभाग के प्रोफेसर डॉ राजेश वर्मा के मुताबिक दो--तीन सप्ताह तक पीठ में दर्द रहने के बाद भी आराम न मिले तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। आंकड़ों के मुताबिक डॉक्टर के पास पहुंचने वाले पीठ दर्द के केसों में से 10 फीसदी मरीजों में रीढ़ की हड्डी की टीबी का पता चलता है। इसका सही समय पर इलाज न करवाने वाले लोगों में स्थायी रूप से अपाहिज होने का खतरा भी बना रहता है। इसकी पहचान भी जल्दी नहीं हो पाती है।
उन्होंने बताया कि सामान्य टीबी का इलाज 6 महीने में हो जाता है, लेकिन स्पानइल टीबी के दूर होने में 12 से 18 महीने का वक्त लग सकता है। गौरतलब है कि टीबी के कीटाणु फेफड़े से खून में पहुंचते हैं और कई बार रीढ़ की हड्डी तक इसका प्रसार हो जाता है।
यूं होती है बीमारी की शुरुआत
डॉ राजेश का कहना है कि रीढ़ की हड्डी में होने वाली टीबी इंटर वर्टिबल डिस्क में शुरू होती है। फिर रीढ़ की हड्डी में फैलती है। समय पर इलाज न किया जाए तो लकवा होने की आशंका रहती है। यह युवाओं में ज्यादा पाया जाती है। इसके लक्षण भी साधारण हैं, जिसके कारण अक्सर लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। रीढ़ की हड्डी में टीबी होने के शुरुआती लक्षण कमर में दर्द रहना, बुखार, वजन कम होना, कमजोरी या फिर उल्टी है। इन परेशानियों को लोग अन्य बीमारियों से जोड़ कर देखते हैं लेकिन रीढ़ की हड्डी में टीबी जैसी गंभीर बीमारी का संदेह बिल्कुल नहीं होता। पिछले कुछ साल में कुछ ऐसे मामले सामने आए है, जिसमें गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में स्पाइनल टीबी देखी गई।
इलाज है संभव
डॉ. राजेश का कहना है कि इस बीमारी का पता सीबीसी ब्लड काउंट, एलीवेटेड राइथ्रोसाइट सेडिमेटेशन, ट्यूबक्र्युलिन स्किन टेस्ट के जरिए लगाया जाता है। इसके अलावा रीढ़ की हड्डी का पहले एमआरआई, सीटी स्कैन और फिर बोन बायोप्सी जांच के जरिए भी टीबी के संक्रमण का पता लगाया जाता है। अगर शुरुआती दौर में ही बीमारी की पहचान कर ली जाए तो दवाईयों से इलाज संभव है। यदि संक्रमण ज्यादा फैला हो या पस की समस्या अधिक हो तो ऐसे में ऐसपिरेशन प्रक्रिया के जरिये पस को बाहर निकाल दिया जाता है। कई बार टीबी के कारण रीढ़ की हड्डी को ज्यादा नुकसान पहुंचने लगता है। ऐसी गंभीर स्थिति में सर्जरी ही इसका एकमात्र इलाज होता है। ऑपरेशन के बाद व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है लेकिन इसके बाद भी उसे नियमित चेकअप और खानपान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
बाल नाखून छोड़कर किसी भी हिस्से में हो सकती है टीबी
डीटीओ डॉ. कैलाश बाबू के अनुसार बाल और नाखून छोड़कर टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते या इलाज बीच में छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ की हड्डी गल जाती है, जिससे स्थायी अपंगता आ जाती है। किसी भी आयु वर्ग के लोग रीढ़ की हड्डी के टीबी का शिकार हो सकते हैं। टीबी बैक्टीरिया शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे दिमाग, पेट और अन्य हड्डियों को भी प्रभावित कर सकती है।
मुख्य लक्षण
• पीठ में अकड़न
• रीढ़ की हड्डी में असहनीय दर्द
• रीढ़ की हड्डी में झुकाव
• पैरों और हाथों में हद से ज्यादा कमजोरी और सुन्नपन
• हाथों और पैरों की मांसपेशियों में खिंचाव
• यूरिन पास करने में परेशानी
• रीढ़ की हड्डी में सूजन
• सांस लेने में दिक्कत
ऐसे होगा बचाव
• टीबी के संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छता जरूरी है। भोजन से पहले हाथों को ठीक से धोना जरूरी है
• शरीर की इम्यूनिटी बेहतर बनाए रखें
• हेल्दी डायट लें
• खांसी आने से पहले मुंह को ढककर रखें
• खांसी के मरीज के साथ भोजन करने से परहेज करें
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