लखनऊ। महामारी के इस संकट के समय में अपनी चुनौतियों का समाधान का मार्गदर्शन करने वाली डिजिटल पुस्तक द रियल क्राइसेस का विमोचन किया गया है। कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया के द्वारा विमोचन की गयी यह पुस्तक पांच दशकों से संकट का सामना कर रही मानव जाति के लिये प्रासंगिक है। इस पुस्तक में कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया (केएफआई) के संस्थापक जिद्दू कृष्णमूर्ति के लेखों की 1934 से 1985 तक पांच दशकों की बातचीत और लेखन के अंश समाहित हैं और इसे मौजूदा महामारी के जवाब में प्रकाशित की है। जो डब्लूडब्लूडब्लू डॉट केएफआईऑनलाईन डॉट ओआरजी पर नौ भारतीय भाषाओं, हिंदी, तमिल, मराठी, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु, बंगाली, और ओड़िया के साथ ही अंग्रेजी में उपलब्ध कराया गया है।
जिद्दू कृष्णमूर्ति (1895 - 1986) 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली धार्मिक शिक्षकों में से एक थे। उन्हें हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण वक्ताओं में से एक और मानवीय चेतना पर सबसे गहरा प्रभाव डालने वाले के रूप में माना जाता है। आंध्र प्रदेश के मदनापेल्ली में जन्में जिद्दू कृष्णमूर्ति, ने निरंतर दुनियाभर की कई यात्राएं कीं, अपने हजारों श्रोताओं से बातचीत की, लेखन कार्य किया, सदी के सबसे तीव्र बुद्धिजीवियों के साथ चर्चाएं की, और उन लोगों के साथ चुपचाप बैठे रहे जो उनसे उनकी दयालुता और उपचारात्मकता की याचना करते थे। उन्होंने बड़ी सूक्ष्मता के साथ मनुष्य के मन के कामकाज करने के तरीकों को उजागर किया और इस बात को चिह्णित कि यह कैसे कार्य करता है और हमारे सभी संकटों की उत्पत्ति का आधार है। अपनी शिक्षाओं को किसी भी प्रकार की त्रुटि के बिना भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने और उपलब्ध कराने के लिए, उन्होंने भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और स्पेन में चार संस्थानों की स्थापना की।
कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया ने हाल ही में एक डिजिटल किताब, द रियल क्राईसेस प्रकाशित की है जो महामारी के इस संकट के समय में अपनी चुनौतियों के हल की खोज करने में रूचि रखने वाले किसी भी मनुष्य का मार्गदर्शन करेगी। यह प्रासंगिक प्रश्नों को प्रस्तुत करती है, जैसे कि ’’ मनुष्य, जो हजारों-हज़ार वर्षों से जीवित है, ऐसे दुख और संघर्ष का सामना क्यों करता है...? यदि आप अधिक -जनसंख्या, नैतिकता की कमी के आसान स्पष्टीकरणों को परे रखते हैं - जो तकनीकी ज्ञान और स्पष्ट वार्तालाप की कमी के कारण जन्म लेते हैं - तो फिर इस दुख का मूल कारण क्या है? ऐसा क्यों है कि ऐसे देश में जहां अच्छाई, दयालुता, हत्या न करने की, क्रूर नहीं बनने की परंपरा है... वहां ऐसा क्यों है कि सबकुछ पूरी तरह से गलत हो गया है? ’
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