- डॉ. महिपाल सचदेव
निदेशक, सेंटर फार साइट, नई दिल्ली
युवावस्था में हमारे शरीर में कई महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं जैसे शारीरिक अंगों का विकास, मुहांसों में बढ़ोतरी आदि। इस अवस्था में आंखों में भी बदलाव हो सकते हैं, इसमें गोलाकार कॉर्निया पतला होकर शंकु के आकार में होता है, यही केराटोकोनस है। पिछले कुछ समय से इसका इलाज होने लगा है।
दरअसल, केराटोकोनस के लक्षण किशोरावस्था में ही दिखने लगते हैं और 20 से 30 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते बेहद घातक रूप ले सकते हैं। केराटोकोनस आंखों की वह अवस्था होती है, जिसमें कॉर्निया का आकार, जो आमतौर पर गोलाकार होता है, विकारग्रस्त होकर शंकु के आकार में तब्दील हो विकसित होने लगता है। इस प्रकार पीड़ित की दृष्टि कम होने लगती है। यह दोनों आंखों को प्रभावित करता है, लेकिन किसी आंख को थोड़ा कम और किसी में ज्यादा।
केराटोकोनस एक ऐसी आनुवांशिक अवस्था है, जो कई पीढ़ियों को छोड़ आगे की किसी भी पीढ़ी को शिकार बना सकती है। इसका आगमन अक्सर किशोरावस्था में होता है। इसके साथ कई एलर्जी भी जुड़ी होती हैं जैसे तेज बुखार, एग्ज़ीमा, अस्थमा आदि।
इससे पीड़ित अक्सर घटती दृष्टि और बार-बार चश्मे के नंबर में बदलाव का शिकार होते हैं। उन्हें अक्सर अजीब-सी आकृतियां व छवियां दिखती हैं। वे प्रत्यावर्तन संबंधित बदलावों की शिकायत करते हैं। प्रकाश में भी असहजता महसूस करते हैं। उन्हें फोटोफोबिया की भी शिकायत रहती है। उन्हें आंखों में किसी बाहरी पदार्थ के चुभने का भी एहसास होता है। इससे नजदीक की नज़र कमजोर हो जाती है, जिसे चश्मे या काॅन्टेक्ट लैंस से भी ठीक करना संभव नहीं होता है। लंबे समय तक यही माना जाता रहा कि ऐसे मरीजों को ठीक करने की कोई उम्मीद नहीं होती, परंतु आधुनिक चिकित्सा ने चमत्कार कर दिखाया और अब ऐसे मरीज ठीक हो सकते हैं।
कॉर्नियल टोपोग्राफी :अत्याधुनिक टोपोग्राफी प्रणाली जैसे पेंटाकैम व ओर्बस्कैन संपूर्ण कोर्निया की बनावट की जांच कर लेता है, जिससे केराटोकोनस के उभरने का आसानी से पता चल जाता है। इन जांचों की मदद से केराटोकोनस की बढ़त को मापने में भी मदद मिलती है, जिससे उपयुक्त उपचार का चुनाव करने में आसानी होती है।
आधुनिक उपचार : केराटोकोनस के इलाज के दो पहलू हैं। पहला कदम है, काॅर्निया के पतले होते जाने को रोकना। एक बार ऐसा होने पर रिफ्रेक्टिव दोष को ठीक करके नज़र में सुधार संभव है। रेफ्रेक्टिव दोष को ठीक करने के लिए जो विकल्प मौजूद हैं, उनमें प्रमुख हैं- नज़र का चश्मा, रिजिड गैस परमिएबिल कान्टेक्ट लेंस, इनटैक्स एवं फेकिक आईओएल। इन उपचार योजनाओं में से आपके लिए कौनसी उपयुक्त रहेगी, इसका फैसला नेत्र विशेषज्ञ जांच के बाद करेगा।
कोलैजन क्रासलिंकिंग से काॅर्निया को मजबूत करने की विधि केराटोकोनस रोगियों के लिए उम्मीद की एक किरण बनकर उभरी है। इस थेरैपी का उद्देश्य कार्निया की संरचना मजबूत कर कार्निया के पतले होते जाने को रोकना है। यह कैसे होता है? कार्निया कोलेजन नामक प्रोटीन बंडलों से बनी होती है। ये प्रोटीन बंडल आपस में रासायनिक रूप से जुड़े होते हैं। इससे काॅर्निया का आकार स्थिर रहता है। केराटोकोनस कार्निया में कोलेजन तंतुओं के बीच जुड़ाव कम होता है, जिसके चलते काॅर्निया असाधारण रूप से पतला हो जाता है।
कोलैजन क्रासलिंकिंग के दौरान काॅर्निया की ऊपरी परत हटा दी जाती है। इससे नजर की विकृति दूर होती है और कार्निया प्रत्यारोपण की नौबत नहीं आती। कोलैजन क्रासलिंकिंग विधि से कार्निया को स्थिर करने में तीन से छह माह लग जाते हैं। कार्निया स्थिर होने के बाद प्रत्यारोपण योग्य कान्टेक्ट लेंस के जरिए रेफ्रेक्टिव दोष सुधार सकते हैं। फेकिक आईओएल एक प्रकार का लेंस है, जो आंख के अंदर प्राकृतिक लेंस के सामने एक छोटा-सा चीरा लगाकर प्रत्यारोपित किया जाता है। साधारण काॅन्टेक्ट लेंस के विपरीत इसके रखरखाव की जरूरत नहीं होती।
इंट्रास्ट्रोमल कार्नियल रिंग्स या इन्टैक्स केराटोकोनस रोगियों के लिए एक रोमांचक व नया विकल्प है। प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे छल्ले विषेशतौर पर मेडिकल प्लास्टिक से तैयार किए जाते हैं और इन्हें ऑपरेशन करके काॅर्निया की सतह के नीचे रखा जाता है। अपने अनोखे डिजाइन के कारण, ये कार्निया को सही आकार देते हैं। इससे रोगी की नजर में सुधार हो जाता है।
वैधानिक सलाह - इलाज केवल प्रक्षिक्षित चिकित्सक से ही कराएं।
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